गोंड जनजाति - gond tribe

 गोंड जनजाति - gond tribe


गोंड जनजाति की, उप-जनजातियां इस प्रकार हैं- अरख, आरख अगारिया, असुर, बड़ी मारिया, छोटी मारिया, भटोला, भीमा, भुता, कोइली, भुती, भार, बिसोनहारन, मारिया, दंडायी मारिया, धुरु, धुर्वा, डोरला, गायकी, गट्टा, गावारी, हिल मारिया, कंद्र, कलंगा, खाटोला, कोइतार, कोया, खिरवार, खैरवार, कुचा मारिया, कुचाकी मारिया, मड़िया, माना, मानेवार, मोंधया, मुड़िया, मुरिया, नगारची, नागवंषी, ओझा, राज, सोंझारी, झारेका, ठाटिया, ठोटया, डारोई हैं।


गोंड, जनजाति, भारत की जनजातीय संरचना में प्रमुख स्थान रखती है। गोंड जनजाति ग्राविड़ियन परिवार की जनजाति है। मध्यकाल में, मध्य भारत के गढ़ा (जबलपुर) को गोंड शासकों की राजधानी के तौर पर उल्लेख मिलता है। गोंड, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के आदिलाबांद से लेकर आंध्र प्रदेश के तेलगांना क्षेत्र तक फैले हुए हैं। अलग-अलग स्थानों पर इनकी अलग-अलग उप जनजातियों की बहुलता है। जैसे मण्डला के गोंड, बस्तर के मुरिया एवं मारिया, आदिलाबाद के राजगोंड, बारंगल के कोयास इत्यादि


वंशानुगत आधार पर गोंड कुल एवं वंश परंपरा के आधार पर वर्गीकृत होते हैं। गोंड जनजाति, संख्यात्मक आधार पर एक प्रमुख जनजाति तो है ही, साथ ही यह बहुत बड़े क्षेत्र तक निवासरत जनजाति भी है, उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक इस जनजाति का सकेंद्रण है। क्षेत्र के अनुसार इनके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में भिन्नता भी दिखाई देती है, जैसे परिवार, विवाह, नातेदारी एवं धार्मिक गतिविधियों में भिन्नता । जैसे दक्षिण भारत के गोंड, अन्य समुदायों की तरह पुनर्विवाह को अनुमति देते हैं, पर वे देवर भाभी विवाह (Levirate Marriage) की अनुमति नहीं देते, परंतु उत्तर भारत के गोंड न सिर्फ इसकी अनुमति देते हैं, बल्कि इसको प्राथमिकता देते हैं। सामान्यतः ये एक विवाही समुदाय हैं, परंतु परंपरागत आधार पर इनमें बहुविवाह, प्रायः (बहुपत्नी विवाह) भी पाया जाता है। परिवार का स्वरूप एकल परिवार का है, विवाह के पश्चात युवक अपना अलग परिवार बनाता है, जो प्रायः मूल परिवार के आस-पास ही घर बनाकर रहता है।


गोंड, समुदाय की बोली "गोंडी" है, जो द्रविड़ियन भाषा परिवार की बोली है। ये आपस में गोंडी में वार्तालाप करते हैं, परंतु वर्तमान में ये हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी प्रयोग करते हैं। गोंड जनजाति के परंपरागत परिधानों में महिलाओं की गहरे रंग की साड़ी, एवं पुरुषों के सफेद धोती एवं रंगीन कुर्ते बहुत आकर्षक परिधान हैं, परंतु आधुनिकीकरण एवं अन्य प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप अन्य समुदायों की तरह इनके बीच भी अन्य परिधान लोकप्रिय हैं।


ये गैर-शाकाहारी समुदाय हैं, अर्थात इनके भोजन में मछली, व मांस प्रमुख स्थान रखते हैं, अनाज में चावल एवं ज्वार परंपरागत रूप से प्रमुख स्थान रखते रहे हैं, परंतु वर्तमान में लोक वितरण प्रणाली से मिलने वाले अनाज तथा अन्य खाघ सामग्री भी इनके खाघ सामग्री में शामिल है। वैसे जनजातीय धर्म प्रकृतिवाद पर आधारित है, परंतु गोंड, हिंदू धर्म की धार्मिक गतिविधियों का भी अनुसरण करते हैं। आज इनके घरों में शिव, एवं देवी आराधना, सत्संग, गुरुदीक्षा जैसी प्रक्रियाएँ भी देखी जा सकती है।


गोंड, जनजाति की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, वे मुख्यतः कृषक हैं, परंतु इसके अतिरिक्त मजदूरी, छोटे-मोटे व्यवसाय (जैसे किराना दुकान चलाना, ढाबों/ होटलों में काम करना) एवं नौकरी भी इनकी अर्थव्यवस्था में शामिल है। पशुपालन भी इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गोंड जनजाति, में परंपरागत रूप से उनकी पंचायत व्यवस्था होती है, प्रत्येक उप-समुदाय की अपनी परंपरागत पंचायत व्यवस्था होती है, जिसका प्रमुख मुखिया होता है एवं कुछ व्यक्ति उसके सहयोगी होते हैं। इसके अतिरिक्त भारत शासन की पंचायतीराज व्यवस्था ने इनको राजनैतिक सहभागिता को सुनिश्चित किया है।


गोंड जनजाति की अपनी समृद्ध संस्कृति है जिसमें कला, कारीगरी, गोदना, दीवार एवं फर्स पर कलाकृतियों का निर्माण, मिट्टी के बर्तन एवं बांस के बास्केट आदि का निर्माण, बाद्य यंत्रों का निर्माण, नृत्य एवं लोकगीत एवं संगीत प्रमुख हैं।