परिकल्पना का महत्त्व - Importance of Hypothesis

 परिकल्पना का महत्त्व - Importance of Hypothesis


किसी भी अध्ययन को वैज्ञानिक बनाने में परिकल्पना की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। परिकल्पना के महत्व को स्पष्ट करते हुए जहोदा और कुक ने लिखा है कि "परिकल्पनाओं का निर्माण तथा सत्यापन करना ही वैज्ञानिक अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य होता है।" इसी प्रकार गुड़े और हॉट का कथन है कि "अच्छे अनुसंधान में परिकल्पना का निर्माण करना सर्वप्रमुख चरण है।" वास्तविकता यह है कि कोई भी सामाजिक अनुसंधान परिकल्पना के अभाव में व्यवस्थित नहीं किया जा सकता। परिकल्पना एक प्रकार का प्रकाश स्तंभ है जो अध्ययनकर्ता को दिशा निर्देश देता है तथा उसे व्यर्थ की सूचनाओं के संग्रह से रोकता है। इस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में परिकल्पना के महत्व अथवा कार्यों को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है: 


(1) अध्ययन की दिशा का निर्धारण


परिकल्पना की उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए पी.वी. यंग का कथन है कि "परिकल्पना से अनुसंधानकर्ता ऐसे तथ्यों को एकत्रित करने से बच जाता है जो बाद में अध्ययन विषय के लिए व्यर्थ सिद्ध होते हैं।" वास्तव में, सर्वेक्षण और अनुसंधान के लिए बहुत अधिक समय और धन की आवश्यकता होती है। परिकल्पना की सहायता से जब अध्ययन को एक उचित दिशा मिल जाती है तो अध्ययनकर्ता भी व्यर्थ के परिश्रम समय और व्यय से बच जाता है। 


(2) अध्ययन क्षेत्र को सीमित करने में सहायक :


परिकल्पना द्वारा अध्ययन क्षेत्र को इस प्रकार सीमित करना संभव हो जाता है

कि अनुसंधानकर्ता अपना ध्यान अध्ययन के एक विशेष पहलू अथवा कुछ विशेष तथ्यों पर ही केंद्रित कर सके। वास्तव में, प्रत्येक अध्ययन विषय के बहुत से पहलू हो सकते हैं। यदि अध्ययनकर्ता सभी पहलुओं को एक साथ लेकर अध्ययन करना प्रारंभ कर दे तो किसी भी पहलू की गहराई में जाकर तथ्यों के एकत्रित नहीं किया जा सकता। अध्ययन की वैज्ञानिकता के लिए अध्ययन क्षेत्र का सीमित होना आवश्यक है जो परिकल्पना की सहायता से ही संभव हो सकता है। लुंडबर्ग के शब्दों में, "परिकल्पना के प्रयोग से अध्ययन क्षेत्र सीमित हो जाता है और अध्ययनकर्ता गहराई में जाकर विषय का अध्ययन करने में सफल हो सकता है।"


(3) उपयोगी तथ्यों के संकलन में सहायक: 


किसी भी सामाजिक घटना अथवा समस्या का अध्ययन करते समय अध्ययनकर्ता के सामने अनेक प्रकार के तथ्य आते हैं।

कभी-कभी उन तथ्यों की उपयोगिता अथवा अनुपयोगिता को न समझ पाने के कारण अध्ययनकर्ता उपयोगी तथ्यों को छोड़ व्यर्थ के तथ्यों के संकलन में लग जाता है। इसके फलस्वरूप, संपूर्ण अध्ययन अव्यवस्थित और अवैज्ञानिक बन जाता है। इस स्थिति में "परिकल्पना की सहायता से यह निश्चित करना आसान हो जाता है कि किन तथ्यों को एकत्रित किया जाए और किन्हें सरलता से छोड़ा जा सकता है।" इसका तात्पर्य यह है कि परिकल्पना ही वह महत्वपूर्ण आधार है जो अध्ययनकर्ता पर नियंत्रण बनाए रखकर अध्ययन को वैज्ञानिक बनाने में सहायता देता है। 


(4) तथ्यों को व्यवस्थित करने में सहायक


तथ्यों के एकत्रण मात्र से शोध पूरी नहीं हो जाती, जब तक उन्हें शोध के किसी परिकल्पना सांचे में नहीं जमाया जाता तब तक यह कार्य बखूबी नहीं करती है।

परिकल्पना विभिन्न प्रकार के तथ्यों के बीच संबंध स्थापित कर उन्हें एक आकार या रूप प्रदान करती है। 


(5) पुनरावृत्ति की संभावना :


प्राकृतिक अनुसंधानों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बार-बार अनुसंधान करने के पश्चात भी निष्कर्ष में समरूपता बनी रहती है। जबकि सामाजिक अनुसंधान में उसी समाज में दोबारा जांच संभव नहीं हो पाती है। अतः पुनरावृति की संभावना परिकल्पना के निर्माण से पूरी हो सकती है। 


(6) तर्कसंगत निष्कर्षों में सहायक :


आरंभ में ही यह स्पष्ट किया जा चुका है की परिकल्पना वह मान्यता है जिसके द्वारा अनुसंधान कार्य आरंभ करने से पहले ही एक कामचलाऊ निष्कर्ष प्रस्तुत कर दिया जाता है।

यह निष्कर्ष सत्य है अथवा असत्य, इसका परीक्षण बाद में एकत्रित तथ्यों के आधार पर किया जाता है। तथ्यों के आधार पर यदि परिकल्पना से संबंधित निष्कर्ष सही प्रमाणित होता है जो उसे एक सामान्य नियम के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यदि परिकल्पना का सावधानी से निर्माण किया जाए तो यह उपयुक्त और तर्कसंगत निष्कर्ष निकालने में अत्यधिक सहायक होती हैं। 


(7) सिद्धांतों के निर्माण में योगदान :


सामाजिक अनुसंधान का अंतिम उद्देश्य सिद्धांतों का निर्माण करना होता है।

इस कार्य में परिकल्पना की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रमाणित हुई है। जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है, परिकल्पना का निर्माण साधारणतया किसी पूर्व स्थापित सिद्धांत के आधार पर होता है। एक अनुसंधानकर्ता जब नई परिस्थितियों के संदर्भ में किसी पुराने सिद्धांत की सार्थकता को देखने का प्रयत्न करता है तो परिकल्पना उसके इस कार्य को बहुत सरल बना देती है। परिकल्पना की सहायता से जो सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाते हैं, वे नए सिद्धांतों का निर्माण करने में भी अत्यधिक सहायक होते हैं।


इस प्रकार स्पष्ट होता है कि किसी भी अनुसंधान परिकल्पना का महत्व केंद्रीय है। यही कारण है कि सामाजिक घटनाओं से संबंधित कोई भी अनुसंधान कार्य ऐसा नहीं होता जिसमें किसी न किसी परिकल्पना को आधार मानकर तथ्यों को एकत्रित ना किया जाए।