वैयक्तिक अध्ययन की सीमाएँ - Limitations of Individual Study

 वैयक्तिक अध्ययन की सीमाएँ - Limitations of Individual Study


इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैयक्तिक अध्ययन अपने गुणात्मक प्रकृति के कारण बहुत महत्वपूर्ण विधि प्रमाणित हुई है। परन्तु साथ-साथ यह भी स्वीकार किया गया है कि इसकी कुछ अंतनिर्हित सीमाएँ हैं, जो इसे दोष रहित स्थापित नहीं कर पाती। ब्लूमर (1939) ने तो यहाँ तक कह दिया कि वैयक्तिक अध्ययन विधि स्वतन्त्र रूप से अपर्याप्त और अवैज्ञानिक होने के साथ ही सिद्धान्तों के निर्माण में अव्यवहारिक सिद्ध हुआ है। ब्लूमर का यह कथन वैयक्तिक अध्ययन को केवल एक पूरक विधि के रूप में ही उपयोगी मानता है।


वैयक्तिक अध्ययन विधि के अन्तर्गत तैयार किये गये अभिलेखों द्वारा प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, निर्णय, असामान्य घटनाओं इत्यादि पर आवश्यकता से अधिक बल दिये जाने की विशेष प्रवृत्ति के कारण अचेतन रूप से पूर्वाग्रह की त्रुटियाँ हो जाती हैं।

आंकड़ों की प्रकृति भावानात्मक होने के कारण इनकी वस्तुनिष्ठ रूप से जाँच नहीं की जा सकती है। निदर्शन का प्रयोग न किये जाने के कारण प्रतिनिधित्वपूर्णता की कमी होती है तथा किये जाने वाले सामान्यीकरण विश्वसनीय नहीं होते क्योंकि ये कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तियों से प्राप्त की गई सूचना पर आधारित होते हैं। इस विधि के अन्तर्गत कोई ऐसी तकनीक नहीं होती जिसके द्वारा वैयक्तिक दस्तावेजों की प्रमाणिकता की जाँच हो सके। अध्ययन के लिए जिन इकाइयों का चुनाव किया जाता है उनका प्रतिचयन किसी वैज्ञानिक प्रणाली द्वारा न करके सुविधापूर्वक रूप से कर लिया जाता है।


रीड बेन (1929) ने सामाजिक अनुसंधानों में वैयक्तिक अध्ययनों द्वारा सार्थक वैज्ञानिक सामग्री उपलब्ध कराने में सन्देह व्यक्त करते हुए कहा कि, अवैयक्तिकता, सार्वभौमिकता, गैरनैतिकता, गैर व्यावहारिक तथा घटनाओं की पुनरावृत्ति की दृष्टि से जीवन अभिलेख महत्वपूर्ण नहीं होते।' रीड बेन ने इसकी निम्नांकित सीमाओं/ कमियों का उल्लेख किया है :


1. जितना अधिक तारतम्य स्थापित होगा उतना ही ज्यादा सम्पूर्ण प्रक्रिया वस्तुगत होगी।


2. विषय स्व-न्याय प्रतिपादक हो जाता है न कि तथ्यात्मक।


3. उत्तरदाता की साहित्यिक चाह उसे बहका सकती है।


4. उत्तरदाता वास्तविकता की तुलना में आत्म-औचित्य पर अधिक बल दे सकता है।


5. अनुसंधानकर्ता स्वयं यह देखना चाहता है कि उसके उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।


6. जीवन दस्तावेज प्रदान करने वाले अधिकतर उत्तरदाता समस्याग्रस्त होते हैं।


7. अनुसंधानकर्ता प्रायः उत्तरदाता की सहायता करता है।


8. बहुसंख्यक चरों के समग्र में वैयक्तिक परिस्थितियाँ प्रायः अतुलनीय होती हैं।


9. जीवन दस्तावेजों के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का विकास किया जाना होता है।


उपरोक्त सीमाओं के होते हुए भी, वैयक्तिक अध्ययन की कमियों पर अनुसंधानकर्ताओं को विशेष रूप से प्रशिक्षित कर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस विशेष प्रशिक्षण का यह प्रमुख उत्तरदायित्व होना चाहिए, कि. सुप्रशिक्षित व्यक्ति किसी-न-किसी स्रोत का प्रयोग करते हुए आंकड़ों को एकत्रित करें, उनकी जाँच करें, उन्हें प्रतिदर्शित एवं विश्लेषित करें। सुप्रशिक्षित व्यक्तियों से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे इस विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से वैयक्तिक अध्ययन के अन्तर्गत अन्वेषण एवं अभिलेखन के क्रमबद्ध ढंगों को विकसित करते हुए उनका अधिक से अधिक उपयोग करने में सक्षम होंगे।