पिछड़ी जाति से संबंधित प्रमुख आयोग - Major Commission related to Backward Castes

पिछड़ी जाति से संबंधित प्रमुख आयोग - Major Commission related to Backward Castes


पिछड़ी जाति से संबंधित कुछ प्रमुख आयोगों के बारे में संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है-


● काका कालेलकर आयोग


29 जनवरी 1953 को राष्ट्रपति ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में एक आयोग को गठित किया। सामाजिक तथा शैक्षणिक तौर पर पिछड़ी जातियों वर्गों के बारे में जानकारी प्राप्त करना तथा उन्हें सूचीबद्ध करना इस आयोग का प्रमुख उद्देश्य था। यह आयोग काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित होने के कारण काका कालेलकर आयोग के नाम से विख्यात हुआ। यह आयोग अखिल भारतीय स्तर का प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-


1. आयोग कुछ ऐसी कसौटियों को निर्धारित करे, जिनके आधार पर सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े समूहों को चिन्हित किया जा सके।


2. पिछड़ी जातियों/वर्गों की एक सूची तैयार करे।


3. पिछड़े समूहों की कठिनाइयों तथा विभिन्न अवस्थाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करे।


4. पिछड़ी जातियों की समस्याओं को दूर करने तथा उनके कल्याण हेतु आवश्यक प्रावधानों की तलाश करना और उनसे सरकारों को अवगत कराना। 5. पिछड़ी जातियों के लिए सहायतापरक कदम किस प्रकार उठाए जाएं।


6. इस आयोग के गठीत होने के लगभग दो वर्षों के उपरांत इसने अपना प्रतिवेदन केंद्र सरकार को प्रस्तुत किया। इस प्रतिवेदन के अनुसार देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या को पिछड़ी जातियों में के शामिल किया गया। आयोग ने इन जातियों के सामाजिक व आर्थिक कल्याण हेतु अनेक सुझाव भी प्रस्तावित किए। इसके अलावा इस आयोग ने पिछड़ेपन' को परिभाषित करने हेतु निम्न कसौटियों को निर्धारित किया-


a. जातीय संस्तरण में निम्न सामाजिक प्रस्थिति


b. शैक्षणिक प्रगति में अभावग्रस्तता


c. राजकीय सेवाओं के प्रतिनिधित्व में अपर्याप्तता


d. व्यापार व उद्योग क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व में अपर्याप्तता


आयोग ने पिछड़े वर्गों के निर्धारण में जातीय आधारों को महत्व दिया तथा सुझ प्रस्तुत किया कि प्रथम श्रेणी की सेवाओं में 25 प्रतिशत, द्वितीय श्रेणी की सेवाओं में 33.5 प्रतिशत तथा त्रित्या व चतुर्थ प्रकार की सेवाओं में 40 प्रतिशत स्थान पिछड़े समूह के लोगों के लिए आरक्षित किए जाने चाहिए। साथ ही मेडिकल, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में 70 प्रतिशत स्थान पिछड़ी जातियों के लिए सुरक्षित किए जाएं। इसके अलावा आयोग ने एक मंत्रालय बनाने का भी सुझाव दिया, जो पिछड़ी जातियों के कल्याणार्थ कार्य करे।


● मण्डल आयोग


जनता दल ने 1977 में लोकसभा के चुनावों के दौरान अपने घोषणा पत्र में पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी तथा शैक्षणिक सेवाओं में 25 प्रतिशत के स्थान पर 33 प्रतिशत स्था को आरक्षित करने की बात की थी। अतः सत्ता में आने के पश्चात जनता दल की सरकार ने बी.पी. मण्डल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया, जो पिछड़े वर्गों के लिए निम्न कार्य कर सके-


i. सामाजिक तथा शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों को परिभाषित हेतु कुछ कसौटियों को निर्धारित करना।


ii. पिछड़े वर्गों के कल्याण हेतु किस प्रकार के कदम उठाएं जाएं, इससे संबंधित सुझाव प्रस्तुत करना।


iii. जिन क्षेत्रों (केंद्र. राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों) में पिछड़े वर्ग से संबंधित लोगोंका प्रतिनिधित्व पर्याप्त रूप में नहीं है, उन क्षेत्रों में आरक्षण से जुड़ी सुविधाओं की संभावनाओं को तलाशना । iv. संकलित किए गए तथ्यों के आधार पर प्रतिवेदन व सुझाव प्रस्तुत करना ।


आयोग ने 30 अप्रैल 1982 को प्रतिवेदन भारत सरकार को प्रस्तुत किया। इस प्रतिवेदन में आयोग ने सरकारी तथा गैर-सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की बात कही। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों, बैंकों, सरकारी सहायता प्राप्त निजी प्रतिष्ठानों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में भी पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की बात कही तथा सरकार से इन सिफ़ारिशों के क्रियान्वयन हेतु कानूनी प्रावधानों को लाए जाने की भी सिफ़ारिश की। आयोग द्वारा पिछड़ी जातियों में 3743 जातियों को शामिल किया गया तथा बताया गया कि कुल जनसंख्या में इनकी आबादी 50 प्रतिशत है। आयोग ने सभी स्तरों पर पदोन्नति हेतु भी 27 प्रतिशत स्थान को आरक्षित रखने का सुझाव दिया तथा कहा कि आरक्षण के कोटे को तीन वर्ष की अवधि तक अग्रेषित कर दिया जाय और उसके बाद ही स्थान न भरने की दशा में आरक्षण कोटे से हटाया जाय। इसके अलावा आयोग ने अनुसूचित जाति तथा जनजाति की ही भांति पिछड़ी जातियों के लिए आयु सीमा की छूट देने तथा उनकी भी एक सूची बनाने का सुझाव प्रस्तुत किया।


इसके अलावा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा पिछड़ी जातियों से संबंधित विभिन्न आयोगों की स्थापना की गई है, जिनमें से प्रमुख निम्न हैं-


नेर आयोग


केरल सरकार द्वारा पी. डी. नेहर की अध्यक्षता में एक आयोग को गठित किया। इस आयोग ने 1970 में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया तथा इसके अनुसार शैक्षणिक उपलब्धियों, आर्थिक स्थिति, सरकारी सेवाओं में सहभागिता को सामाजिक पिछड़ेपन के निर्धारक कसौटियों के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए। वर्तमान समय में केरल में 25 प्रतिशत स्थान पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं।


हवानूर पिछड़ा वर्ग आयोग


कर्नाटक सरकार द्वारा 1972 में एल.जे. हवानूर की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने एक बृहत सर्वेक्षण के पश्चात पिछड़ी जातियों तथा समुदायों की एक सूची बनाई तथा इनके लिए 32 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने की बात कही। सरकार द्वारा कुछ अन्य जातियों को इस सूची में शामिल किया गया तथा आरक्षण के स्थान को 32 प्रतिशत के स्थान पर 40 प्रतिशत कर लागू किया।


मुंगेरी लाल आयोग


बिहार सरकार द्वारा मुंगेरी लाल आयोग की स्थापना किया गया। 1978 में इस आयोग द्वारा की गई।

सिफारिश के अनुसार बिहार सरकार द्वारा 128 जातियों को पिछड़ी जातियों मेंशामिल कर दिया गया। 

आस आयोग के सुझावों के आधार पर ही सरकारी सेवाओं में पिछड़ी जातियों के तौर पर चिन्हित की गई जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। महाराष्ट्र में 14 प्रतिशत, तमिलनाडू में 50 प्रतिशत स्थान पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षित किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों तथा समुदायों के लिए 15 प्रतिशत स्थान आरक्षित रखे जाने का प्रावधान किया गया है।