पारसन्स का दृष्टिकोण - Parsons' perspective

पारसन्स का दृष्टिकोण - Parsons' perspective


पारसन्स ने यह बात जोर देकर कही कि सामाजिक प्रणाली और सामाजिक वास्तविकता के प्रति उपयोगितावादी और आदर्शवादी दोनों दृष्टिकोण इकतरफा है। उपयोगितावादी दृष्टिकोण सामाजिक प्रणालियों को मनुष्यों (व्यक्तियों) की तर्कसंगत अतः प्रेरणाओं का परिणाम मानता है और इसके द्वारा अपनी आवश्यकताओं और लालसाओं को क्रमबद्ध व्यवस्थाओं में संघटित करता है। वे व्यवस्थाएँ संविदात्मक परंपरता के द्वारा संगत हितों पर आधारित है। संविदात्म परंपरता का एक अच्छा उदाहरण राज्य शासन व्यवस्था है. जो संगठित अधिकार तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। इस क्रमबद्ध व्यवस्था का एक और उदाहरण बाजार व्यवस्था है, जो आर्थिक हितों के संविदात्मक संबंधों पर आधारित है।


पारसन्स के अनुसार उपयोगितावादी समाज वैज्ञानिकों द्वारा विश्लेषित क्रमबद्ध व्यवस्थाओं में नैतिक मूल्यों की भूमिका पर ध्यान नहीं दिया गया है। इसी तरह, सामाजिक प्रणाली की आदर्शवादी पद्धति में मूल्यों और विचारों को अधिक महत्व दिया जाता है और सामाजिक आचरण को बहुत कम वेबर भी इसी परंपरा से संबद्ध है। उसके अनुसार, पूँजीवाद को आरंभिक अवस्था में प्रोटेस्टेट नैतिकता से मदद मिला।

वेबर और कट्टर आदर्शवादियों में इतना ही अंतर है कि वेबर ने कभी यह नहीं कहा है कि पूँजीवाद का कारण प्रोटेस्टेट नैतिकता मात्र है, लेकिन इतना तो मानना ही होगा कि वेबर ने (तर्कसंगत आत्मसंयम) या (लौकिक आत्मसंयम) से संबंधित कुछ मूल्यों का विस्तार से वर्णन किया, परंतु उसने उपयोगी वस्तुओं की खोज या आवश्कताओं की भूमिका उपेक्षा की। 


टालकट पारसन्स के अनुसार सामाजिक प्रणाली की आदर्शवादी और उपयोगितावादी दोनों विचारधाराओं में पूर्वमान्यता के अनुसार मानव अंतः प्रेरणा में कुछ विशिष्टताओं की कल्पना विद्यमान है। पूर्वमान्य से हमारा अभिप्राय है, जो पहले से ही विद्यमान है। सामाजिक प्रणाली के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण की विशेषता आवश्यकताओं के नियमन में तर्कसंगत का होना हैं और आदर्शवादी दृष्टिकोण की विशेषता आधारभूत मूल्यों और विचारों के प्रति वचनबद्धता है।


इस प्रणाली के अंतर्गत उपयोगितावादी दृष्टिकोण में व्यक्ति की धारणा तो है, लेकिन वह केवल कुछ विशिष्ट योग्यताओं का अभूत रूप हैं (जो उसके पूर्व अनुभवों पर आधारित विशेषता है)।

आदर्शवादी दृष्टिकोण की स्थिति भी लगभग वैसी ही है। बस केवल अंतर इतना है कि उसमें पूर्व अनुभवाश्रित दृष्टि से मानी गई विशेषताओं में भिन्नता है। आदर्शवादी यह मानते हैं कि मनुष्य विश्वव्यापी मानसिक परिकल्पना के अनुरूप कार्य करते हैं।


प्रत्यक्षवादियों का विचार इससे एकमद अलग है। उनकी यह धारणा है कि वास्तविक मानव क्रिया स्थिति के पूर्ण ज्ञान के परिणामस्वरूप होती है। इस प्रकार उनके विचारों में सुनिश्चितता है और लचीलेपन का अभाव होता है। उनके यहाँ कार्य करने का एक ही तरीका है और वह सही तरीका है। परिणामस्वरूप उनकी सामाजिक क्रिया में मूल्यों की जगह नहीं होती और गलतियों या विभिन्नता की कोई गुजाइश नहीं होती। इस प्रकार, उपयोगितावादी आदर्शवादी और प्रत्यक्षवादी विचारधाराओं के समर्थको में सभी ने कुछ महत्वपूर्ण बातें कही है, लेकिन हर महत्वपूर्ण बात के अनोखेपन से ही पारसन्स को एतराज है। उपयोगितावादियों का ध्यान केवल व्यक्ति की तर्कसंगत रुचि पर है, लेकिन वे सामूहिक रुचि की बात भूल जाते हैं। आदर्शवादी मूल्यों की बात करते हैं। लेकिन वे मूल्यों पर अनुभवाश्रित वास्तविकताओं से पड़ने वाले दबाव को भूल जाते हैं। अंत में, प्रत्यक्षवादी स्थिति के पूर्ण ज्ञान को महत्व देते हैं, लेकिन वे मूल्यों गलतियों और परिवर्तनों की भूमिका को नजर अंदाज कर देते हैं।


इन ऊपर दी गई बातों को ध्यान में रखते हुए पारसन्स ने सामाजिक प्रणालियों के अध्ययन के लिए एक अन्य दृष्टिकोण सामने रखा जिसे उसने (क्रियात्मक दृष्टिकोण) कहा।