सामाजिक व्यवस्था पर पारसन्स के विचार - Parsons's views on social order

सामाजिक व्यवस्था पर पारसन्स के विचार - Parsons's views on social order


पारसन्स का प्रमुख ग्रंथ (सोशल सिस्टम) 1952 में प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथ में पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था पर व्यापक रूप से विचार प्रस्तुत किया है। इन्हीं विचारों के आधार पर उसका सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत प्रसिद्ध हो गया है। वस्तुतः पारसन्स के क्रिया सिद्धांत और सामाजिक व्यवस्था सिद्धांत में परस्पर घनिष्ठ संबंध है। इस आधार पर पारसन्स के क्रिया सिद्धांत को सामाजिक व्यवस्था सिद्धांत का पूरक माना जा सकता है।


सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा को सर्वप्रथम पारसन्स ने स्पष्ट करने की चेष्टा की है।

सामाजिक व्यवस्था की परिभाषा करते हुए पारसन्स ने लिखा है “एक सामाजिक व्यवस्था एक ऐसी दशा या स्थिति में परस्पर अंत-क्रिया करने वाले वैयक्तिक कर्ताओं की बहुलता में निर्मित होती है जिसका कम से कम एक भौतिक या पर्यावरण कर्ताओं की बहुलता मे निर्मित होती है जिसका कम से कम एक भौतिक या पर्यावरण संबंध पक्ष होता है। ऐसे कर्ता जो अधिकतम संतुष्टि की प्रवृत्ति से प्रेरित होते हैं और एक-दूसरे के साथ उनकी स्थितियों के साथ जिनके संबंध की परिभाषा एवं निर्णय संस्कृति द्वारा निर्मित और सामान्य सहभागी प्रतीकों की व्यवस्था द्वारा होती है।


इस प्रकार पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था के मुख्य तत्वों के प्रति उल्लेख करते हुए सामाजिक व्यवसथा की अवधारणा को विश्लेषित किया है।

पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था को एक स्थिति, सामाजिक परिस्थिति, भौतिक या पर्यावरण संबंधी व्यवस्था बताया है। उसके अनुसार सांस्कृतिक सामाजिक व्यवस्था में प्रतीकों का संचयन होता है। इसके द्वारा व्यक्तियों को अधिकतम संतुष्टि होती है। पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था को इसीलिए अंतःक्रियात्मक संबंधों का जाल कहा है। इसलिए एक व्यवस्था में परस्पर अंतःक्रिया होना आवश्यक है। सामाजिक दृष्टि से सामाजिक व्यवस्था व्यक्तियों की परस्पर अंतः क्रियाओ का एक ढाँचा है। ये अंतःक्रियाएँ सांस्कृतिक सहभागी प्रतीकों के माध्यम से सामाजिक पर्यावरण के नियमों के अनुसार होती है। इस प्रकार पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा को इसके तत्वों के विश्लेषण द्वारा समझाया है। उसकी अवधारणा को समझने के लिए पारसन्स द्वारा विश्लेषिण एवं प्रतिपादित सामाजिक व्यवस्था के तत्वों को समझना आवश्यक है।