सामाजिक नियंत्रण के संयंत्र - social control plant

सामाजिक नियंत्रण के संयंत्र - social control plant


पारसन्स ने लिखा है कि सामाजिक नियंत्रण के सर्वाधिक आधारभूत संयंत्रों को संस्थाओं के द्वारा समन्वित सामाजिक व्यवस्थायों अंतःक्रिया की सामान्य क्रियाओं में देखे जा सकते हैं। पारसन्स के इस विचारधारा से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक समाज की एक निश्चित व्यवस्था होती है और इस व्यवस्था में ही सामाजिक नियंत्रण के साधन पाए जाते हैं। उसने सामाजिक नियंत्रण के निम्न साधन बतलाये हैं।


(1) संस्थाएँ - पारसन्स के अनुसार संस्थाएँ सामाजिक नियंत्रण के सबसे मौलिक साधन हैं। संस्थाएँ व्यक्ति की क्रियाओं को एक निश्चित दिशा प्रदान करती हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति संतुलित व्यवहारों को अपनाता है। संतुलित व्यवहारों के परिणामस्वरूप समाज में संतुलन बना रहता है। संस्थायों व्यक्ति के कार्यों का भी निर्धारण करती हैं तथा दूसरे व्यक्तियों के साथ उनके सह-संबंधों को निश्चित करती हैं। इन संबंधों के परिणामस्वरूप समाज के सभी व्यक्तियों के व्यवहारों में अनुरूपता स्थापित हो जाती है। संस्थाएँ निम्न दो प्रकार से व्यक्ति के व्यवहारों को संतुलित करती हैं।


(अ) समय अनुसूची- संस्थाओं का कार्य व्यक्ति की क्रियाओं और समय के बीच सामजस्य या तालमेल स्थापित करना होता है। संस्थायों यह निश्चित करती हैं कि व्यक्ति को किस मसय में कौन से कार्य करने होंगे? उदाहरण के लिए संस्थायों निश्चित करती हैं कि विद्यार्थी किस दिन और समय में किस विषय की परीक्षा देंगे। इसी प्रकार व्यक्ति की विभिन्न क्रियाओं और उनके समय का निर्धारण करना संस्थाओं का मौलिक कार्य है। ऐसा करके संस्थाएँ सामाजिक संतुलन तो स्थापित करती हैं साथ ही संघर्षों को भी कम करती है इससे समाज में सामाजिक नियंत्रण बना रहता है।


(ब) संस्थागत प्राथमिकताएँ संस्थाओं का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य प्राथमिकाआतों के आधार पर विभिन्न क्रियाओं का एक क्रम निर्धारित करना होता है। व्यक्ति को सामाजिक जीवन में अनेक क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। अनेक परिस्थितियों में एक ही समय में व्यक्ति अनेक क्रियाओं के बीच यह निश्चय नहीं कर पाता है कि वह पहले किस क्रिया को संपादित करे ऐसी स्थिति में संघर्ष असंतुलन और अव्यवस्था उत्पन्न होती है। पारसन्स कहता है कि संस्थाएँ इस संघर्ष को रोकती है विभिन्न क्रियाओं को प्राथमिकता के आधार पर उनका और ऐसा करके वह सामाजिक व्यवस्था में योग देता है।


(2) मौलिक संयंत्र - पारसन्स का विचार है कि सामाजिक नियंत्रण की प्रक्रिया सामाजिक व्यवस्था में स्वभाविक रूप से चलती रहती है। पारसन्स का विचार है कि संस्थागत प्रतिमान वे मौलिक साधन हैं जो समाज में सामाजिक नियंत्रण की स्थापना करते हैं। प्रत्येक समाज के संस्थागत व्यवहार प्रतिमान ( Institutional Behavior Pattern) होते हैं। और व्यक्ति इन्हीं संस्थागत व्यवहार प्रतिमानों के अनुसार क्रियाएँ संपादित करते हैं। पारसन्स का विचार है कि ये संस्थागत प्रतिमान शिथिल हो जाते हैं तो सामाजिक नियंत्रण के साधनों की आवश्यकता होती है। उसने संस्थागत व्यवहार प्रतिमानों को सामाजिक नियंत्रण के मौलिक संयंत्र मानता है।


(3) धार्मिक संस्थाएँ प्रत्येक समाज में धार्मिक संस्कार किसी न किसी रूप में पाए जाते हैं। जब सामाजिक नियंत्रण के अन्य साधन शिथिल हो जाते हैं तो धार्मिक संस्था समाज और व्यक्ति की क्रियाओं को संगठित करके समाज में व्यवस्था की स्थापना करते हैं।

इसका कारण यह है कि धार्मिक संस्थाओं के पीछे समाज की शक्ति और स्वीकृति होती है। इस प्रकार धार्मिक संस्कार समाज को नियंत्रित करने के

मौलिक साधन है।


(4) द्वैतीयक संस्थाएँ - समाज नियंत्रित करने में पारसन्स के अनुसार द्वैतीयक संस्थाएँ भी कम महत्वपूर्ण होती हैं। इन द्वैतीयक संस्थाओं में शिक्षा संस्थाएँ में शिक्षा संस्थाएँ सांस्कृतिक प्रतिमान राजनैतिक शक्तियाँ आदि महत्वपूर्ण होती है।


(5) अवरोध पारसन्स ने अवरोध प्रणाली को सामाजिक नियंत्रण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना है। उसके अनुसार अवरोध प्रणाली द्वारा समाज के उन तत्वों को संपर्क में आने से रोका जा सकता है जिनसे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। इस प्रकार अवरोध का काम संघर्ष को रोकता और समाज में नियंत्रण स्थापित करना होता है।


( 6 ) पृथक्करण पृथक्करण सामाजिक नियंत्रण की प्रणाली है जिसमें कुछ प्रमुख सांस्कृतिक प्रतिमानों को सामाजिक संरना के अपने तत्वों से पृथक रखने की चेष्टा की जाती है। समाज में कुछ प्रतिनिधि प्रतिमानों विकसित किया जाता है और व्यक्ति को इन प्रतिमानों के अनुरूप व्यवहार करने प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार समाज में नियंत्रण स्थापित होता है।


(7) अन्य संयंत्र पारसन्स के अनुसार सामाजिक नियंत्रण के जिन साधनों की विवेचना की गई है उनके अतिरिक्त अन्य भी हैं जो समाज में नियंत्रण स्थापित करते हैं। ये साधन अनियोजित और होते हैं। पारसन्स ने इन साधनों को तीन भागों में विभाजित किया है-


(अ) ऐसे साधनों को प्रयोग में लाना जिससे सामाज विरोधी कार्यों को आरंभ होने से पहले ही कुचल दिया जाए।


(ब) ऐसे साधनों को प्रयोग में लाना जिससे विरोधी प्रवृत्तियों और कार्यों से व्यक्ति की रक्षा की जा सके। 


(स) ऐसे प्रयास करना जिससे समाज विरोधी प्रवृत्तियों की दिशा परिवर्तित किया जाए और वे संरचनात्मक कार्य करने लगें।


पारसन्स का विचार है कि मनुष्यों की अंतःक्रियाएँ उसके व्यवहारों को प्रदर्शित करती हैं। संस्थाएँ, समय अनुसूची और प्राथमिकताओं के द्वारा उसके व्यवहारों को निर्दोष और संतुलित करती हैं। धार्मिक संस्कार अवरोध और क्करण को नियंत्रित करते हैं।