सामाजिक नियंत्रण का सिद्धांत - social control theory

सामाजिक नियंत्रण का सिद्धांत - social control theory


मनुष्य के द्वारा जो क्रियाएँ की जाती हैं वे प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती है - 


(अ) व्यवस्था स्थापित करने वाली क्रियाएँ, और


(ब) व्यवस्था का उल्लंघन करने वाली क्रियाएँ।


मनुष्य केवल सामाजिक प्राणी ही नहीं है। वह असामाजिक और समाज विरोधी प्राणी भी है। वह ऐसे कार्यों का संपादन करता है जिससे समाज के स्थापित व्यवस्था का उल्लंघन पाया जाता है। यह निश्चित है कि व्यक्ति में सामाजिकता की प्रवृत्ति पाई जाती है क्योंकि वह सामाजिक प्राणी है। क्योंकि इसके साथ ही साथ इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि उससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना भी पाई जाती है। वह व्यक्तिगत इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद सामाजिक प्राणी है। उसका अपना अहं होता है और इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति अपने अहं की बलि देकर सामाजिक मूल्यों और आदर्शों का अधिक दिनों तक ढ़िढोरा पीटेगा।


प्रत्येक समाज के कुद निश्चित आदर्श, मापदंड, मूल्य और विचार होते हैं। ये आदर्श और प्रतिमान समाज में व्यक्ति की भूमिका या उसके कार्यों का निर्धारण करते हैं। ये आदश और प्रतिमान व्यक्ति के क्रियाओं का निर्देशन और संचालन करते हैं। इन प्रतिमानों की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक दायित्व होता है। किंतु अपने ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं कि जब व्यक्ति इन मूल्यों और आदर्शों के अनुरूप अपना व्यवहार निर्देशित करने में असमर्थ रहता है। ऐसी अवस्था में उसके द्वारा जो व्यवहार किए जाते हैं उन्हें समाज विरोधी व्यवहारों के नाम से जाना जाता है।


प्रत्येक समाज का यह दायित्व होता है कि वह समाज विरोधी कार्यों पर रोक लगाए। इन समाज विरोधी कार्यों पर रोक लगाकर ही समाज में व्यवस्था की स्थापना की जा सकती है। समाज विरोधी व्यवहारों को जिन साधनों के द्वारा रोका जाता है वे साधन ही सामाजिक नियंत्रण (Social Control) के नाम से जाने जाते हैं सामाजिक नियंत्रण समाज के वे साधन है जो व्यक्ति के व्यवहारों पर प्रतिबंध हो जाते हैं और सामाजिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं।


पारसन्स का विचार है कि कोई भी समाज इतना पूर्ण नहीं है कि सामाजिक व्यवस्था में पूर्ण संतुलन का विकास हो सके। अपने व्यक्तियों के व्यवहार इस प्रकार होते हैं जो संतुलन में बाधा उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार के व्यवहारों को नियंत्रित करके समाज में व्यवस्था स्थापित करने का जो कार्य किया जाता है उसे सामाजिक नियंत्रण के नाम से जाना जाता है।