सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत - theory of social order

सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत - theory of social order


पारसन्स ने दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जिसमें पहला तत्वकाल सामाजिक व्यवस्था है और दूसरा तत्व सामाजिक क्रिया। यद्यपि सामाजिक व्यवस्था के बारे में पारसन्स के पहले भी अनेक विद्वानों ने अपने विचारों का प्रतिपादन किया है किंतु इन सभी विचारकों की तुलना में पारसन्स का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। सामाजिक क्रिया और सामाजिक व्यवस्था के सिद्धांत के कारण ही पारसन्स आज मूर्धन्य समाजशास्त्रियों में गिना जाता है। आधुनिक समाजशास्त्र को पारसन्स की सबसे महत्वपूर्ण देन उसका सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत है।


पारसन्स ने सामाजिक व्यवस्था के महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन अपनी प्रख्यात पुस्तक (सामाजिक व्यवस्था) (The Social System) में किया है। पारसन्स की यह पुस्तक 1951 मे पहली बार प्रकाश में आई है। पारसन्स के अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति की अपने सामाजिक आवश्यकताएँ होती हैं।

इन आवश्यकताओं के संदर्भ में व्यक्ति को अपने सामाजिक क्रियाएँ करनी पड़ती है। व्यक्ति सामाजिक प्राणी है इस परिणामस्वरूप वह अन्य प्राणियों के साथ सामाजिक अंतः क्रियाएँ ( Social Interaction) करता रहता है।


इन्ही सामाजिक अंतः क्रियाओं के परिणामस्वरूप व्यवस्था का जन्म होता है। इस संदर्भ में पारसन्स ने जो विचार व्यक्त किए हैं वे इस प्रकार है- “अत्यंत ही सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सामाजिक व्यवस्था एक ऐसी परिस्थिति में, जिसका कि कम से कम एक भौतिक या वातावरण संबंधी पहलू हो, अपनी इच्छाओं या आवश्यकताओं की आदर्श पूर्ति की प्रवृत्ति से प्रेरित एक या एक से अधिक वैयक्तिक कर्ताओं की एक-दूसरे के साथ अंतः क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। इन अंतः क्रियाओं में लगे हुए व्यक्तियों का पारस्परिक संबंध सांस्कृतिक रूप से संरचित तथा स्वीकृत प्रतीकों की एक व्यवस्था द्वारा पारिभाषित और मध्यस्थिति होता है।