उपयोगितावादी, प्रत्यक्षवादी और आदर्शवादी दृष्टिकोण - Utilitarian, Positivist and Idealist Approaches

उपयोगितावादी, प्रत्यक्षवादी और आदर्शवादी दृष्टिकोण - Utilitarian, Positivist and Idealist Approaches


पारसन्स ने सामाजिक प्रणाली के क्षेत्र में इससे पूर्ववर्ती योगदानों को तीन मुख्य विचारधाराओं में बाँटा है. ये है- उपयोगितावादी, प्रत्यक्षवादी और आदर्शवादी उपयोगितावादी दृष्टिकोण के समर्थकों ने सामाजिक क्रिया को अत्यधिक व्यक्तिपरक दृष्टि से देखा। उन्होंने उपयोगितावादी तर्कसंगत परिकलन को केवल व्यक्ति के स्तर पर महत्व दिया। इस कारण से वे यह समझने में असमर्थ है कि सामाजिक जीवन सामूहिक रूप से समन्वित है, न कि बेतरतीब दूसरी ओर, प्रत्यक्षवादियों का विश्वास है कि सामाजिक पात्रों को अपनी सामाजिक स्थिति का पूर्ण ज्ञान है। इससे पात्रों में किसी प्रकार की त्रुटि की संभावना नहीं रह जाती।


आदर्शवादियों का यह विचार है कि सामाजिक क्रिया राष्ट्र या देश जैसी सामाजिक प्रवृत्ति और विचारों द्वारा कार्यान्वित होती है। परिणामस्वरूप वे रोजमर्रा की वास्तविक बाधाओं की ओर बहुत कम ध्यान देते हैं। क्योंकि ये विचारों के स्वतंत्र रूप से कार्यान्वयन के मार्ग में रूकावट है। आइए आदर्शवाद की अवधारणा को समझ लें।


आदर्शवादी विचारधारा को मानने वालों का यह विश्वास है कि विश्व के निर्माण में मन की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के अनुभवों का भंडार है। दर्शन के इतिहास में आदर्शवाद के विभिन्न रूपों को और उनके विभिन्न प्रकार से अनुप्रयोगों को देखा जा सकता है। इसके मूलभूत रूप को सामान्यतः अस्वीकार कर दिया गया है। क्योंकि यह अहंवाद के समान हैं। अहंवाद का मतलब यह है कि जो वस्तु जगत में है। वह व्यक्तियों के अपने मन के क्रियाकलापों के सिवाय कुछ नहीं है। यानी वास्तव में हमारे (अह( के अलावा और किसी चीज का अस्तित्व नहीं है।

लेकिन, सामान्यत आदर्शवादी बाह्य जगत यानी प्राकृतिक जगत् के अस्तित्व को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं। उनका यह दावा नहीं है। हक इस जगत को मात्र विचार प्रक्रिया में रूपातरित किया जा सकता है। उनके विचार में मन क्रियाशील है और वह कानून धर्म कला और गणित आदि को उत्पन्न करने और धारण करने में समर्थ है जिनका अस्तित्व अन्यथा संभव नहीं था।


अठारहवीं शताब्दी के आयरिश दार्शीनक जॉर्ज बर्कले को इस दार्शनिक विचारधारा से बहुत निकट से माना जाता है। उसकी यह मान्यता थी कि प्रत्येक वस्तु के जिन पक्षों से हम परिचित है उनको वस्तुतः मन में विद्यमान विचारों में रूपांतरित किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए हमारे मन में कुर्सी या गाय का विचार पहले से ही विद्यमान होता है इसीलिए जब कुर्सी या गाय को देखा जाता है। तो उन्हें पहचान लिया जाता है। इस प्रकार प्रेक्षक (कुर्सी या गाय जैसी) बाहरी वस्तुओं को अस्तित्व में नहीं लाता। बर्कले का यह विचार था कि वास्तव में, मनुष्य के मन में बाहरी वस्तुओं के सही विचार सीधे ईश्वर द्वारा प्रदत्त है।


अपनी पुस्तक स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन में पारसन्स ने इस वर्गीकरण का उपयोग दुर्खाइम. परेटो और वेबर जैसे प्रमुख विचारकों के योगदान की समीक्षा करने के लिए किया। उसने विभिन्न विचारधाराओं के विचारकों द्वारा उनकी कृतियों में चर्चित विभिन्न तत्वों की ओर बहुत विस्तार से संकेत किया, लेकिन ऐसा करते समय पारसन्स ने सामाजिक क्रिया और क्रिया के ढाँचे के विकास को समझने के लिए इन लेखकों की महत्वपूर्ण बातों को भी निकलवाने का प्रयास किया।