विदेशी पूंजी का वर्गीकरण - classification of foreign capital

विदेशी पूंजी का वर्गीकरण - classification of foreign capital


विदेशी पूंजी निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है-


(1) विदेशी पूंजी सहायता, 


(2) व्यापारिक ऋण 


(3) विदेशी निवेश । 


(1) विदेशी सहायता


विदेशी पूंजी का एक रूप विदेशी सहायता है। भारत जैसे अल्पविकसित देश में विदेशी पूंजी, विदेशी सहायता के रूप में भी प्राप्त होती है।

विदेशी सहायता से हमारा अभिप्राय विदेशों से प्राप्त ऋण तथा अनुदान से है। इन ऋणों पर ब्याज की दर बाजार की सामान्य दरों से काफी कम होती है और इन्हें वापिस करने की अवधि बहुत लंबी होती है। विदेशी सहायता का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में विकास की दर को बढ़ाना है। विदेशी सहायता विकसित देशों की सरकारों और संस्थाओं द्वारा दी जाती है जैसे विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक इत्यादि ।


विदेशी सहायता निम्न प्रकार की होती है-


(क) अनुदान- विदेशी सहायता का एक हिस्सा अनुदान के रूप में प्राप्त होता है। विदेशी सहायता के इस हिस्से को वापिस नही करना पड़ता। इस पर न तो कोई ब्याज होता है। इससे अल्पविकसित देशों को विकास में काफी सहायता मिलती है। 


(ख) विदेशी सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दिए गए रियायती ऋण इन रियायती ऋणों पर ब्याज की दर बाजार में प्रचलित ब्याज की दर से काफी कम होती है और इन्हें वापिस करने की अवधि लंबी होती है। ये ऋण अल्पविकसित देशों को विकासात्मक परियोजनाओं के लिए और भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए दिए जाते हैं। ये ऋण निम्न द्वारा दिए जाते है 


(1) विदेशी सरकार से ऋण:-विदेशी पूंजी का एक रूप यह है कि एक देश की सरकार दूसरे देश की सरकार को ऋण देती है। ये ऋण निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है 


(i) उदार ऋण वे ऋण जो लंबी अवधि के लिए जाते है तथा जिन पर ब्याज की दर कम - होती है।


(ii) प्रोजेक्ट ऋण प्रोजेक्ट ऋण वे ऋण है, जो किसी विशेष परियोजना को पूरा करने के लिए दिए जाते हैं। इन्हें निबद्ध ऋण भी कहा जाता है।


(iii) गैर-प्रोजेक्ट ऋण गैर-प्रोजेक्ट ऋण वे ऋण है, जो किसी विशेष परियोजना के लिए नहीं दिए जाते। इनका प्रयोग ऋणी देश अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं। इन्हें अनिबद्ध ऋण भी कहा जाता है।


(2) अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा ऋण - अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक आदि के द्वारा विदेशी पूंजी के रूप में ऋण दिए जाते हैं। इन संस्थाओं द्वारा निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को ही ऋण दिए जाते हैं। ये ऋण भी उदार, प्रोजेक्ट या गैर-प्रोजेक्ट प्रकार के हो सकते हैं।


(2) व्यापारिक ऋण


ये ऋण विदेशी बैंकों से बाजार की प्रचलित ब्याज की दर पर लिए जाते हैं। इन ऋणों पर ब्याज की दर रियायती ऋणों की तुलना में अधिक होती है तथा इन्हें वापिस करने की अवधि भी कम होती है। व्यापारिक ऋणों में निम्न को शामिल किया जाता है:


(1) विदेशी बैंकों से लिए गए ऋण - बहुत बार सरकार अपने भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए विदेशी बैंकों से ऋण लेती है जैसे- अमेरिका व जापान के आयात-निर्यात बैंक से लिया गया ऋण, इंग्लैंड के निर्यात साख गारंटी निगम से लिया गया ऋण इत्यादि । 


(2) अनिवासियों की जमाए - विदेशी पूंजी को प्राप्त करने का एक अन्य स्त्रोत अनिवासियों की जमा राशि है अनिवासियों की जमा पर ब्याज की दर प्राय बाजार की ब्याज की दर के बराबर होती है। इसलिए अनिवासियों की जमा को व्यापारिक ऋणों का हिस्सा माना जाता है।


(3) विदेशी निवेश 


विदेशी निवेश से हमारा अभिप्राय, विदेशी निवेशकों द्वारा अन्य देशों की कपनियों के अशों, ऋणपत्रों और बॉण्डों में किए गए निवेश से हैं। हालांकि विदेशी सहायता ने विभिन्न देशों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है पर वर्तमान समय मे इसकी उपलब्धता कम होती जा रही है।

इसी तरह व्यापारिक ऋणों पर विभिन्न देश अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं, क्योंकि इन ऋणों पर ब्याज की दर अधिक होती है। इन कारणों से विदेशी पूंजी के लिए विभिन्न देशों की निर्भरता विदेशी निवेश पर बढ़ गई है। विभिन्न देशों की सरकार ने विदेशी निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करना शुरू कर दिया है। निजी विदेशी निवेश वह निवेश है जिसे किसी विदेशी देश के व्यक्तियों या निजी विदेशी कंपनियों द्वारा अन्य देशों के निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में लगाया जाता है। यह निवेश मुख्य रूप से समता अंशों में लगाया जाता है, जिसके ऊपर कोई निश्चित ब्याज या लाभाश की गारंटी नहीं होती। यह निम्न प्रकार का होता है (i) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ii) पोर्टफोलियो निवेश ।


(1) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का तात्पर्य विदेशी कंपनियों द्वारा दूसरे देशों में पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनियां बनाने और उनका प्रबंध करने से है।

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इसके अंतर्गत प्रबंध करने का उद्देश्य से अशों को खरीद कर अधिग्रहण की गई कंपनी भी शामिल है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की मुख्य विशेषता दूसरे देशों की घरेलू कंपनियों को अपने प्रबंध में लेना या प्रबंध के उद्देश्य से पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनियों बनाने से है। इस तरह के निवेश में उद्यम का पूरा जोखिम विदेशी निवेशक ही उठाता है और विदेशी निवेशक उद्यम के पूरे लाभ या हानि के लिए जिम्मेदार होता है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का एक अन्य रूप विदेशी सहयोग हैं। विदेशी सहयोग में विदेशी और घरेलू उद्यमी मिलकर संयुक्त उद्यम स्थापित करते है। यह निम्न प्रकार का होता है


(i) विदेशी निजी कंपनियों का घरेलू निजी कंपनियों के साथ सहयोग 


(ii) विदेशी निजी कंपनियों का मेजबान देश की सरकार के साथ सहयोग 


(iii) विदेशी सरकार का मेजबान देश की सरकार के साथ सहयोग ।


(2) पोर्टफोलियों निवेश इस तरह के निवेश में विदेशी निवेशक, विदेशी कंपनियां या विदेशी संस्थागत निवेशक इकाई का प्रबंध अपने हाथों में नहीं लेते, बल्कि उस इकाई का प्रबंध एव नियंत्रण घरेलू देश पर ही छोड़ दिया जाता है। यदि यह निवेश ऋणपत्रों में किया जाए तो विदेशी निवेशक को एक निश्चित ब्याज मिलता है और यदि यह निवेश अंशों में किया जाए तो निश्चित लाभांश की कोई गारंटी नहीं होती। पोर्टफोलियो निवेश में निवेशकर्ता प्रबंध में भाग नहीं लेता है। पोर्टफोलियों निवेश का एक अन्य रूप घरेलू कंपनियों द्वारा विदेशी पूंजी बाजारों में विश्व जमा प्राप्तियां, अमेरिकन जमा प्राप्तियां या विदेशी मुद्रा परिवर्तनशील बॉण्डों को निर्गमित करना है इस तरह से इन को निर्गमित करके विभिन्न देशो की कंपनियां विदेशी पूंजी प्राप्त करती है। कंपनियों को कुछ शर्ते पूरी करने पर विदेशी पूंजी बाजारों में यूरो इशु निर्गमित करने की अनुमति है। यूरो इशु से हमारा अभिप्राय भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी पूंजी बाजारों से पूजी एकत्रित करने से है।


प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा पोर्टफोलियो निवेश में मुख्य अंतर यह है कि प्रत्यक्ष निवेश की दशा में विदेशी कंपनी उस उद्यम का प्रबंध भी करती है, जबकि पोर्टफोलियों निवेश में ये केवल पूंजी का निवेश करती है, प्रबंध नहीं करती। इसके अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को दीर्घकालीन लाभ कमाने के उद्देश्य से निवेशित किया जाता है, क्योंकि इन निवेशों को आसानी से बेचा नहीं जा सकता। इसलिए कुछ दीर्घकालीन तत्व जैसे राजनीतिक स्थिरता, देश की औद्योगिक व निवेश नीति, अर्थव्यवस्था की आर्थिक स्थितियां मांग का स्तर आदि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के रूप में किए जाते हैं, जिन्हें शेयर बाजारों में आसानी से बेचा जा सकता है।


विश्व के विभिन्न देशों में विदेशी निवेश का योगदान बढ़ता जा रहा है विश्व के विभिन्न देशों की उदार निवेश नीति के कारण विदेशी निवेश में तेजी आई है। उदाहरण के तौर पर, अगस्त 1991 से फरवरी 2012 तक भारतीय सरकार ने 6,78,011 करोड रू. के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की स्वीकृति दी।