अनुचित प्रभाव - undue influence
अनुचित प्रभाव - undue influence
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 16(1) के अनुसार, "कोई भी अनुबंध उस समय अनुचित प्रभाव प्रेरित किया हुआ कहा जाता है जबकि पक्षकारों के बीच ऐसे संबंध हों कि उनमें से कोई एक पक्षकार दुसरे पक्षकार की इच्छा के प्रभावित करने की स्थिति में हो, और दुसरे पक्षकार पर अनुचित लाभ पाने के लिए उ स्थिति का वास्तव में प्रयोग किया गया हो।"
उक्त परिणामों से स्पष्ट है कि अनुचित प्रभाव द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त किया जा सकता है, और
• अनुचित रूप में ही एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
• अनुचित प्रभाव प्रयोग करने की स्थिति अनुबंध अधिनियम की धारा 16 (2) के अनुसार एक व्यक्ति पर निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुचित प्रभाव डाला जा सकता है :
i. दूसरे पक्षकार पर संप्रभुता प्राप्त होना ऐसी स्थिति जहाँ एक पक्षकार का दूसरे पक्षकार पर संप्रभुता प्राप्त हो जिससे वह अपना प्रभुत्व कायम कर सके। जैसे पति-पत्नी, नियोक्ता एजेंट, पिता
ii. पुत्र, गुरु-शिष्य, ऋणदाता ऋणी, इत्यादि । विश्वासाश्रित संबंधों का होना- जब पक्षकारों के बीच विश्वासाश्रित संबंध हो। जैसे वकील मुवक्किल, ऋणी ऋणदाता, धर्मगुरु-चेला, इत्यादि । ii.
iii.मानसिक अथवा शारीरिक व्यथा जहाँ अनुबंध से संबंधित एक पक्षकार की मानसिक दशा अधिक आयु अथवा बीमारी के कारण अथवा किसी मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण ठीक न हो ।
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