प्रभावी संप्रेषण के अवरोधक - barriers to effective communication

प्रभावी संप्रेषण के अवरोधक - barriers to effective communication


प्रभावी संचार व्यवस्था प्रबन्धन की आधारशिला होती है, क्योंकि इसी के माध्यम से प्रबन्धक कर्मचारियों को वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रेरित निर्देशित व नियंत्रित करते हैं। उपक्रम की नीतियों का निर्वचन, समस्याओं का स्पष्टीकरण व उनका निवारण आदि तभी संभव है जब संप्रेषण प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न न हो और वह प्रभावी ढंग से चलती रहे। लेकिन संप्रेषण एक जटिल प्रक्रिया है और यह कई तत्वों द्वारा निर्धारित व प्रभावित होती है। इस प्रक्रिया में अनेक रूकावटें भी उत्पन्न हो जाती हैं। जो संचार प्रक्रिया को बाधित कर देती है। प्रभावी सम्प्रेषण में आने वाली कुछ प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार है:


(i) भाव अभिव्यक्ति


संदेश में जो भाव प्रकट किए जाते है, प्राय: ऐसा होता है कि कर्मचारी उसे उसी अर्थ में समझ नहीं पाते।

एक ही शब्द का विभिन्न लोग अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। क्यों कि लोगों के आचार विचार, पूर्व धारणाएँ, अभिनति, शैक्षणिक व सामाजिक स्तर, आदि उनके बौद्धिक स्तर व व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उसी संदेश का कोई क्या अर्थ निकालेगा व उस पर क्या प्रतिक्रिया देगा, यह इन्हीं सब बातों पर निर्भर करता है। अत: औद्योगिक संस्थानों में सम्प्रेषण के लिए संदेश देते समय प्रबन्धकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि शब्दों का चयन समझबूझ व सावधानी पूर्वक किया जाए। ऐसे शब्दों व वाक्यांशों जिनके कई भाव निकलते हों, प्रेषक को चाहिए कि वह उनका स्पष्ट निर्वचन भी संदेश के साथ ही कर दे। इससे प्रभावी संचार के मार्ग का एक मुख्य अवरोध छू होगा।



(ii) अधिक शब्दों का प्रयोग


संदेश का निर्माण करते समय सरल शब्दों का प्रयोग ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि शब्दों का प्रयोग कम से कम व सटीक प्रकार से किया जाना आवश्यक है। यदि कोई वाक्य अनावश्यक रूप से बहुत लम्बा व जटिल रहता है तो श्रमिक वर्ग उसे सही अर्थ में समझ नहीं पाता व ऐसी भाषा संचार में अवरोधक का कार्य करती है। अत: संदेश सरल, स्पष्ट व संक्षिप्त होने चाहिए।


(iii) भौतिक दूरी


प्रभावी सम्प्रेषण में की भी बाधक होती है। अत्यधिक भौतिक दूरी होने पर यह ज्ञात हो पाना कठिन होता है कि प्राप्तकर्ता ने संदेश को उसी रूप में ग्रहण किया है

अथवा नहीं व उस संदेश का अनुपालन उसी रूप में हुआ है अथवा नहीं। दूरी की अवस्था में टेलीफोन व टेलीकांफ्रेंसिंग वीडियो कांफ्रेंसिंग आदि आधुनिक साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। यदि ये सुविधाएँन हों तो लिखित सम्प्रेषण व लिखित प्रतिक्रिया प्राप्त करने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस बात की पुष्टि भी की जानी चाहिए कि सूचना को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत नहीं किया गया है अथवा उसे अनावश्यक रूप से रोका तो नहीं गया है।


(iv) प्रेषक व्यक्ति


सम्प्रेषण की प्रक्रिया में अनेक लोग लगे होते हैं। कई बार इनमें से कोई व्यक्ति स्वयं अवरोधक बन जाता हैं।

इस प्रकार संचार श्रृंखला पूरी नहीं हो पाती। सूचना के उद्गम स्थल पर ही यदि कोई त्रुटि रह जाती है तो सूचना का अग्रप्रेषण व उसकी समझ गलत हो सकती है। पर्यवेक्षक व कर्मचारियों के विचार व व्यवहार, आपसी विवाद, झगडे, सुधारात्मक सुझाव व संवादों का समुचित सम्मान न होना, उच्च स्तर की ओर भेजे जाने वाले सम्प्रेषण को बाधित करते है। प्रेषक व्यक्ति ऐसी किसी सूचना को ऊपर की ओर जाने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे उनकी कार्यकुशलता का स्तर व अकर्मण्यता उजागर होती हो। जबकि सर्वोच्च प्रबन्धन के लिए ऐसी सूचनाओं का बड़ा महत्व होता है। इस प्रकार की गतिविधियों से समस्याएँ जटिल रूप ले लेती हैं।


(v) रूचि -


व्यक्ति अक्सर उस बात को ज्यादा ध्यान से सुनता व पालन करता है

जिसमें उसका व्यक्तिगत हित होता है। अन्य सूचनाओं को लोग बहुधा नजरंदाज करते हैं व उसमें उनकी रूचि नहीं होती। फलतः सामाजिक व सार्वजनिक हित के सम्प्रेषण उतने प्रभावी नहीं हो पाते। इसी प्रकार, यदि प्रेषक ने प्राप्तकर्ता को जो सम्वाद भेजा है वह उसकी रूचियों के अनुरूप नहीं है, तो वह उतना प्रभावी नहीं रहता। अध्ययन की दृष्टि से सम्प्रेषण की रुकावटों को निम्न चार भागों में बाँट सकते हैं:


1. व्यक्तिगत असमानताएँ


2. कम्पनी का वातावरण


3. यांत्रिक रूकावटें


4. अन्य रूकावटें