बीमा का महत्त्व - importance of insurance
बीमा का महत्त्व - importance of insurance
सभ्यता के विकास के साथ-साथ बीमा का महत्व भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि जोखिमों, दुर्घटनाओं व अनिश्चितताओं में वृद्धि होती जा रही है आज हम ऐसे किसी देश की कल्पना नहीं कर सकते जो बीमा का लाभ नहीं उठा रहा हो। आज बीमा प्रारम्भिक स्वरूप से हट कर सामाजिक व व्यावसायिक जगत के प्रत्येक क्षेत्र में पदार्पण कर चुका है और अपनी उपयोगिता के आधार पर लोकप्रियता प्राप्त करता जा रहा है। बीमा की उपयोगिता से प्रभावित होकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर विन्स्टन चर्चिल ने कहा था “यदि मेरा वश चले तो मैं द्वार-द्वार पर यह अंकित करा दूं कि बीमा कराओ।"
बीमा सम्पूर्ण मानवजाति एवं इससे सम्बन्धित सभी वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से लाभ पहुँचाता है। संक्षेप में कह सकते है कि आधुनिक युग में बीमा का महत्व दिन दुगुना रात चौगुना होता चला जा रहा है।
बीमा के महत्व अथवा लाभों को निम्नांकित वर्गीकरण द्वारा समझा जा सकता है।
वैयक्तिक या पारिवारिक दृष्टि से महत्व
बीमा से व्यष्टि स्तर पर निम्न लाभ हो सकते हैं।
1. मितव्ययता व बचत को प्रोत्साहन बीमा करा ले ने से व्यक्ति को प्रब्याजि जमा कराने की चिन्ता रहती है। अत: वह प्रारम्भ से ही बचत करना व मितव्ययता को अपनाना प्रारम्भ कर दे ता है। प्रो. रीगल मिलर तथा विलियम्स के अनुसार “बीमा बचत को प्रोत्साहन देने वाला वातावरण प्रदान करता है।”
यदि उसने प्रीमियम नहीं चुकाया हो तो वह उस धन राशि का अपव्यय भी कर सकता है। प्रति वर्ष बचत योजना के अन्तर्गत करोड़ों रू. का प्रीमियम जमा होता है, जो बचत की आदत से ही संभव है।
2. जोखिमों से सुरक्षा- मनुष्य का जीवन ही नही व्यापार भी जोखिमों से भरा हुआ है, बीमा उन अनिश्चितताओं को दूर करता है। प्रो. एन्जेल के अनुसार- बीमा अनिश्चित हानियों से सुरक्षा का स्थायी आधार है। बीमा के कारण ही व्यवसाय व उद्योग विकसित हुए है और व्यक्ति के रोजगार को उत्पन्न जोखिम भी समाप्त होती है। "
3. विनियोग- जीवन बीमा में विनियोग तत्व भी विद्यमान है। व्यक्ति जो राशि प्रीमियम के रूप में जमा करवाता है। वह उसकी बचत है।
निश्चित अवधि के पूर्ण होने अथवा निश्चित घटना के घटित होने पर बीमित को अथवा उसके उत्तराधिकारियों को निश्चित राशि प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार बीमा व्यक्ति के लिए सुरक्षा के साथ-साथ विनियोग का साधन भी बन जाता है।
4. बीमित व उसके उत्तराधिकारियों को पूर्ण सुरक्षा बीमा कराने से बीमित व उसके उत्तराधिकारियों को पूर्ण वैधानिक सुरक्षा प्राप्त होती है। बीमित मृत्यु से पूर्व इच्छित व्यक्ति के नाम बीमापत्र का नामांकन कर सकता है। जिससे पारिवारिक धन सम्बन्धी, बँटवारे के झगड़े दूर हो सकते है व उत्तराधिकारी भी पूर्णतः सुरक्षित रहते हैं। 5. करों में छू ट - बीमा से करों में भी छूट मिलती है। भारत में चुकायी गयी प्रीमियम की राशि पर आयकर में छू
ट प्राप्त की जा सकती है। इसी प्रकार सम्पदा कर में भी छू ट मिलती है। 6. आय क्षमता का पूंजीकरण- बीमा के द्वारा व्यक्ति अपनी आय क्षमता का पूंजीकरण भी कर सकता है। वह
भविष्य में उसके द्वारा कमायी जा सकने वाली राशि का भी बीमा करवा कर अपनी आय का पूंजीकरण कर सकता है। यदि बीमित की मृत्यु हो जाती है या कार्यक्षमता समाप्त हो जाती है तो भी इतनी ही राशि बीमापत्र पर प्राप्त हो
सकेगी। 7. साख सुविधाऐं ऋणदाता ऐसे व्यक्तियों को ऋण दे ना अधिक पसन्द करते हैं जिनका, बीमा करवाया हुआ
है। वित्तीय संस्थाएं भी बीमित व्यक्ति को ही ऋण दे ना चाहती है। इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनी से भी साख
सुविधाएं प्राप्त की जा सकती है। 8. वैधानिक दायित्वों से मुक्ति व्यक्ति वैधानिक दायित्व बीमा करवा कर तृतीय पक्षकारों के प्रति अपने दायित्वों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। निश्चित प्रीमियम के बदले बीमा कम्पनी उन दायित्वों का भुगतान करेगी।
9. कार्यक्षमता में वृद्धि - अनिश्चितता जीवन की सबसे बड़ी चिन्ता होती है और बीमा व्यक्तियों को उस अनिश्चितता से ही मुक्ति दिलाता है। व्यक्ति जब चिन्ता मुक्त होकर कार्य करता है तो पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने में समर्थ हो पाता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। 10. मानसिक शान्ति - जब व्यक्ति अनिश्चितताओं से मुक्त हो जाता है तो वह प्रसन्न मन से कार्य करता है। उसे
मृत्यु के पश्चात् उत्पन्न होने वाले दायित्वों की भी चिन्ता नहीं रहती है क्योंकि वह वर्तमान में ही उनका बीमा करा चुका होता है।
11. स्वावलम्बन को प्रोत्साहन बीमित व्यक्ति में आर्थिक आत्मनिर्भरता की भावना पैदा हो जाती है। व्यक्ति जीवित अवस्था में भी ऋण आसानी से प्राप्त कर सकता है और मृत्यु के पश्चात् भी आश्रित परिवार को बीमा धन
राशि मिलने से आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त होती है।
12. भविष्य की आवश्यकताओं का नियोजन बीमा कम्पनी के द्वारा कई प्रकार के बीमा पत्रों जैसे शिक्षा, विवाह, पेंशन आदि को जारी किया जाता है। व्यक्ति अपनी सीमित आय में से वर्तमान में ही भविष्य की तैयारी कर लेता है कि उसे कब, किस आवश्यकता पर कितनी राशि की आवश्यकता होगी। इस आधार पर वह उन विशेष बीमापत्रों का चयन करने में सफल हो सकता है, यहाँ तक की मृत्यु के पश्चात् भी परिवार की आवश्यकताऐं पूर्ण नियोजित तरीके से पूरी कर सकता है।
13. सतर्कता को प्रोत्साहन बीमा कम्पनियां हानियों से बचने के कई सुरक्षात्मक सुझाव दे ती रहती है। इन सुरक्षात्मक उपायों से मानव जीवन अधिक सुरक्षित हो जाता है वह समय-समय पर विभिन्न बीमारियों से बचने के उपाय करता है। क्षतिपूरक बीमों में सतर्कता उपाय अपनाने व सामान्य औसत से कम दाता प्रस्तुत करने पर प्रीमियम में छूट भी प्रदान की जाती है जो अंनतः बीमा लागत को कम करती है।
14. सामाजिक प्रतिष्ठा व आत्म सम्मान में वृद्धि बीमा समाज में व्यक्ति के आत्म सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि
करता है। जिन लोगों का बीमा होता है समाज उन्हे अधिक सुरक्षित समझ कर सम्मान करता है, मुसीबत के समय
उन्हें दूसरों की ओर नहीं देखना पड़ता है, वे आसानी से बीमा पत्र पर ऋण भी प्राप्त कर सकते है।
15. वृद्धावस्था में सहारा - वर्तमान में जबकि संयुक्त परिवार प्रथा का लोप हो रहा है बीमा व्यक्ति की वृद्धावस्था का सहारा बनता जा रहा है। वृद्धावस्था मे आय के स्रोत सीमित हो जाते हैं व उत्तरदायित्व बढ़ जाते है, ऐसे में बीमा से प्राप्त धन ही उसका प्रमुख सहारा बनता है। व्यावसायिक / आर्थिक दृष्टि से महत्व
वर्तमान आर्थिक जगत की कल्पना बीमा के बिना अधूरी है। व्यवसायी बीमा करवाने की रूपरे खा बना ले ता है ताकि वह पूर्ण शान्ति व तन्मयता के साथ व्यावसायिक क्रियाओं को पूरा कर सके। विख्यात प्रबन्ध विचारक पीटर एफ ड्रकर के अनुसार यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है कि बीमा के बिना औद्योगिक अर्थव्यवस्था कोई भी कार्य नहीं कर सकती है।" वास्तविक स्थिति यही है कि बीमा व्यवसाय के सफल संचालन के लिए अपरिहार्य है।
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