प्रबन्ध के विस्तार को प्रभावित करने वाल तत्व - Elements affecting the expansion of management

प्रबन्ध के विस्तार को प्रभावित करने वाल तत्व - Elements affecting the expansion of management


प्रबन्ध का विस्तार अर्थात एक प्रबन्ध के अधीनस्थों की संख्या पर निम्नलिखित तत्त्वों का प्रभाव पड़ता है:


कार्यों की जटिलता : यदि कार्य जटिल प्रकृति का है तो कम अधिनस्थों का ही निरीक्षण किया जा सकता है। क्योंकि जटिल कार्य होने के कारण अधीनस्थ बार-बार प्रबन्धक से मिलने जाएगा और उनकी समस्याओं को सुलझाने में समय भी अधिक लगेगा। इसके विपरीत, यदि कार्य समान है तो समास्याएं कम उत्पन्न होंगी और एक

प्रबन्धक अपेक्षाकृत अधिक अधिनस्थों का ध्यान रख सकेगा अर्थात प्रबन्ध विस्तार अधिक होगा।


प्रबन्ध की योग्यता प्रबन्ध का विस्तार बहुत कुछ प्रबन्धक के ज्ञान, शक्ति, अनुभव तथा रुचि पर निर्भर करता है। एक अधिक योग्य प्रबन्धक अपेक्षाकृत अधिक


का


(iii) अधिनस्थों पर नियंत्रण कर सकता है। फलस्वरुप प्रबन्ध का विस्तार बढ़ जाता है। अधीनस्थों की योग्यता यदि अधिनस्थों में इतनी योग्यता है कि वे सौंपे गए काम को आसानी से कर सकते हैं तो प्रबन्धकों को उन पर अधिक ध्यान नहीं करना पड़ेगा और परिणास्वरुप एक ही समय पर अधिक अधीनस्थों का निरीक्षण संभव होता है।

इसके विपरीत, यदि अधिनस्थ अयोग्य अथवा कमजोर है तो उन पर प्रबन्धकों का अधिक समय लगता है और परिणामतः प्रबन्ध का विस्तार कम हो जाता है।


(iv) विशेषज्ञो की सेवाओं की उपलब्धताः यदि प्रबन्धकों अथवा लाईन अधिकारियों की सहायता के लिए स्टाफ अधिकारी उपलब्ध है तो प्रबन्ध का विस्तार अधिक होगा क्योंकि विभिन्न जटिल समस्याओं के बारे में विशेषज्ञों की राय मिलती रहेगी और समस्याओं का निपटारा शीघ्र होता रहेगा।


(v) भारार्पण की मात्रा प्रत्येक वह प्रबन्धक जो निर्णय लेने के अधिक अधिकार अपने पास ही रखता है,

वह कम अधिनस्थों की देखभाल कर सकता है। इसके विपरीत, प्रत्येक वह प्रबन्धक जो निर्णय लेने के अधिक अधिकार अधिनस्थों को सौंप देता है, अधिक अधीनस्थों की देखभाल कर सकता है और प्रबन्ध का विस्तार अधिक होता है ।


(vi) अधिकारों एवं दायित्वों की स्पष्टता: यदि संगठन में कार्यरत सभी कर्मचारियों के अधिकार एवं दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या की जाए तो प्रबन्ध विस्तार अधिक होगा क्योंकि ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को पहले से ही पता होता है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। इस तरह वे अधिकारियों का अधिक समय खराब नहीं करते


(vii) संदेशवाहन प्रणाली आधुनिक संदेशवाहन प्रणाली का प्रयोग किए जाने पर प्रबन्धक एक ही समय पर अनेक अधीनस्थों को निर्देश दे सकता है जिससे प्रबन्ध का विस्तार बढ़ता है।


(viii) स्थाई योजनाओं का प्रयोग स्थाई योजनाओं, नीतियों, नियमों एवं कार्यविधियों के प्रयोग के किए जाने पर कार्यभार में कमी आती है। इसके अंतर्गत एक जैसी सभी समस्याओं के लिए पहले से ही समाधान बता दिए जाते हैं जिसके कारण अधीनस्थों को बार-बार प्रबन्धकों के पास नहीं जाना पड़ता। परिणामतः प्रबन्ध का विस्तार अधिक होगा।


(ix) भौगोलिक स्थिति प्रबन्ध के विस्तार पर अधीनस्थों की भौगलिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है।

उदाहरणार्थ, यदि एक कार्यालय प्रबंधक तथा उसके 20 अधीनस्थ एक ही कमरे में बैठे हैं तो वह उन पर ठीक से नियंत्रण कर सकता है। लेकिन यदि एक विक्रय प्रबंधक के साथ 20 सेल्जमैन काम करते हैं और सभी के कार्यालय अलग - अलग शहरों में स्थित हैं तो उन पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल है। परिणामतः प्रबंधन का विस्तार कम होगा।


(x) आर्थिक बंधन जैसा कि प्रबंध का विस्तार जितना कम होगा उतने ही अधिक प्रबंधकों की नियुक्ति करनी पड़ेगी और इस प्रकार संस्था पर प्रबंधकीय खर्चों का भार बढ़ेगा। इसके विपरीत, यदि प्रबंधन का विस्तार बढ़ा दिया जाता है तो कम प्रबंधकों की जरुरत होगी और प्रबंधकीय खचों में बचत होगी। अतः जो संस्थाएं वित्तिय रुप से कमजोर है उनमें प्रबंधन का विस्तार अधिक रखा जाता है तथा जो संस्थाएं वित्तिय रुप से सुदृढ़ है उनमें प्रबंधन का विस्तार कम रखा जा सकता है।