अशोक - Ashoka

अशोक - Ashoka


अशोक का प्रारंभिक जीवन


बिंदुसार का उत्तराधिकारी उसका पुत्र अशोक था। अशोक के जन्म तथा प्रारंभिक जीवन के संबंध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। उसके पिता बिंदुसार की कई पत्नियाँ थीं। अशोक की माता के संबंध में भी इतिहासकारों में मतभेद है। दिव्यावदान में उल्लेख है कि अशोक की माता का नाम जनपदकल्याणी था। कहीं कहीं उसका नाम सुभद्रांगी भी आता है। कहते हैं कि वह चंपा के ब्राह्मण की पुत्री थी और परम सुंदरी थी । उसी से अशोक तथा विताशोक (Vitashoka) (तिष्य) नामक दो पुत्र हुए थे। सुशीम अशोक का सौतेला भाई था।


अशोक की शिक्षा अपने सहोदर भाई तिष्य तथा अन्य सौतेले भाईयों के साथ ही हुई थी।

वह अन्य राजकुमारों से अधिक चुस्त, चालाक और योग्य था। सम्राट बिंदुसार ने अशोक को उज्जैन तथा बाद में तक्षशिला का कुमार (राज्यपाल) बनाया। तक्षशिला की जनता ने वहाँ के अमात्यों की दमनपूर्ण नीति से क्षुब्ध होकर उनके विरुद्ध विद्रोह कर दिया था।


अशोक, सम्राट बिंदुसार का द्वितीय पुत्र था। बिंदुसार के सबसे बड़े पुत्र का नाम सुमन अथवा सुशी था। वह अशोक का सौतेला भाई था। बिंदुसार की दूसरी रानी से उत्पन्न हुए दो पुत्र अशोक और तिष्य थे।

तिष्य का अन्य नाम विताशोक था। दिव्यावदान के संदर्भ के अनुसार अशोक को राजसिंहासन प्राप्ति के लिए अपने बड़े भाई के साथ संघर्ष करना पड़ा, जिसमें अशोक की अंततः विजय हुई एवं 269 ई. पू. में अपने पिता की मृत्यु के चार वर्ष के पश्चात् वह पाटलिपुत्र के सिंहासन पर विराजमान हुआ। इन चार वर्षों की निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। बौद्ध ग्रंथों में अशोक द्वारा अपने 99 भाइयों की हत्या की चर्चा की गई है। परंतु सूक्ष्मता से देखने पर यह जानकारी अतिशयोक्ति लगती है। इस विषय पर डॉ. भण्डारकर द्वारा यह मत प्रतिपादित किया गया है कि सुशीम बिंदुसार का ज्येष्ठ पुत्र था, अशोक अत्यंत ही महत्वाकांक्षी था। अतः सिंहासन प्राप्त करने के लिए उसे अपने बड़े भाई से संघर्ष करना पड़ा। इसी युद्ध के कारण उसका राज्यभिषेक बिंदुसार की मृत्यु के चार वर्ष उपरांत संभव हुआ होगा। यह मत सत्य के निकट प्रतीत होता है।


अशोक का साम्राज्य विस्तार


सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद गृहकलह में सफल होकर अशोक एक बहुत बड़े साम्राज्य का अधिपति बन गया था। जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी से शुरू होकर पश्चिम में हिंदुकुश पर्वतमाला से भी परे तक फैला हुआ था। दक्षिण में भी तमिल देशों तक मगध का साम्राज्य विस्तृत था। अशोक ने सम्राट बनने के बाद अपने पूर्वजों की भाँति साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया और साथ ही कुछ देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रखने की नीति का भी पालन किया। उसने यवन राज्यों में अपने राजदूत भेजे और उनके राजदूतों का स्वागत किया। उसने यवन पदाधिकारियों को अपने राज्य में नियुक्त किया। आंतरिक नीति के क्षेत्र में अशोक की नीति राज्यविस्तार की थी।

प्राचीन भारतीय राजाओं की भाँति उसका भी आदर्श दिग्विजय द्वारा साम्राज्य विस्तार था। कश्मीर पर आक्रमण कर उसने उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया था। राजतरंगिणी, कश्मीर के प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ में अशोक को प्रथम सम्राट के रूप में व्यक्त किया गया है। 4.3.4.1. कलिंग युद्ध- अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया। कलिंग पूर्वी समुद्र तट पर स्थित महानदी और गोदावरी नदियों के बीच एक प्रबल राज्य था, जिसके पास विशाल सेना थी। नंदवंश के पतन के पश्चात् संभवतः कलिंग ने अपने को स्वतंत्र कर लिया था। अशोक के तेरहवेंशिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक ने कलिंग से युद्ध करके उसे उपयोगी समझ कर उस पर अधिकार कर लिया।

इसके लिए उसे भीषण युद्ध का सामना करना पड़ा। तेरहवें शिलालेख के अनुसार इसमें लगभग एक लाख लोग मारे गए। लगभग डेढ़ लाख लोग हताहत हुए, बंदी बना लिए गए। इन हताहतों में योद्धा और साधारण व्यक्ति सभी सम्मिलित थे। लाखों स्त्रियाँ और बच्चे अनाथ हो गए। इतने भीषण रक्तपात और निर्मम हत्याकाड के उपरांत कलिंग का राज्य मगध साम्राज्य का प्रांत बना लिया गया। कलिंग युद्ध परिणाम व महत्व - कलिंग युद्ध में भीषण नरसंहार हुआ, जिसे देखकर अशोक द्रवित हो गया।


अशोक ने संसार में सर्वप्रथम सम्राट के रूप में भविष्य में युद्ध न करने की घोषणा की। उसके विचार परिवर्तित हो गए,

उसने विस्तारवादी एवं साम्राज्यवादी नीति को त्याग दिया। उसने निश्चय कर लिया कि वह राज्यविस्तार की नीति का परित्याग कर देगा और भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेगा। इस युद्ध के पश्चाताप के परिणामस्वरूप अशोक ने अहिंसावादी बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। युद्ध के स्थान पर उसने सबसे मैत्री रखने का निश्चय किया। उसके विचार से वास्तविक विजय धर्मविजय की थी। अपने लिए हुए संकल्प को अशोक ने जीवन भर निभाया। यद्यपि अशोक के काल में मौर्य साम्राज्य काफी विस्तृत हो चुका था, परंतु फिर भी उसकी सीमाओं पर अनेक छोटे राज्य थे, जिन्हें जीतने का प्रयत्न अशोक ने कभी नहीं किया। अशोक ने अपने उत्तराधिकारियों को भी युद्ध न करने का उपदेश दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि उसके कुछ उत्तराधिकारियों ने उसकी अहिंसावादी नीतियों को अपनाया।


अशोक द्वारा अहिंसानीति को अपनाना मगध साम्राज्य के लिए बड़ा अहितकर सिद्ध हुआ। उत्तरोत्तर मगध साम्राज्य पतनोन्मुख होने लगा। कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपना पूर्ण जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार में अर्पित कर दिया और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का बाहर के देशों में प्रचार किया। इस दृष्टिकोण से कलिंग युद्ध का महत्व विश्व के इतिहास में भी बहुत है। अशोक के प्रचारकों के माध्यम से भारतीय धर्म विशेषतया बौद्ध धर्म और संस्कृति विदेशों में पहुँची और भारत का विदेशी विचारधाराओं के साथ आदान- प्रदान प्रारंभ हुआ। धर्म प्रचार के लिए अशोक ने एक भाषा प्राकृत एक लिपि ब्राह्मी (कहीं कहीं खरोष्ठी) को अपनाया, जिससे भारतीय एकता भी सुदृढ़ हुई, पर देश के एकीकरण में उसने ब्राह्मी, खरोष्ठी, आरामाइक और यूनानी सभी लिपियों का सम्मान किया।