मौर्य साम्राज्य - Mauryan Empire

मौर्य साम्राज्य - Mauryan Empire


भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य का विशेष महत्व है। मौर्य आगमन से भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक युग का अंत और दूसरे युग का प्रारंभ होता है। इसकी स्थापना के साथ अपेक्षाकृत एक निश्चित तिथिक्रम का प्रारंभ होता है। विद्वान वी. ए. स्मिथ के अनुसार मौर्य वंश के आरंभ से प्राचीन भारत का इतिहास अंधकार से प्रकाश में आ जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य के सिंहासनारोहण की तिथि भारतीय इतिहास के काल-क्रम में एक ज्योतिर्मय स्तंभ है। इसके पश्चात् भारत का क्रमबद्ध इतिहास प्रारंभ हो जाता है। मौर्य काल में संपूर्ण उत्तरी भारत में राजनीतिक एकता की स्थापना के साथ ही सुदृढ एवं सुव्यवस्थित केंद्रीय शासन की स्थापना हो गई।

जिसने भावी शासकों के लिए एक प्रकार से आदर्श स्थापित किया एवं आगामी प्रतिभाशाली शासकों ने भी उसको न्यूनाधिक परिवर्तन के साथ अपनाया। इस काल में कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहन मिला। मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार हुआ। अशोक ने शांति एवं प्रेम का संदेश देकर केवल भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। मौर्यवंश को भारतीय इतिहास में ऊँचा स्थान दिया जाता है।


मौर्यकालीन इतिहास के साधन


मौर्य इतिहास जानने के साधन बड़े ही ठोस तथा व्यापक हैं। इस काल के इतिहास को जानने के लिए धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त अन्य साधन भी, जैसे- ऐतिहासिक ग्रंथ, विदेशी विवरण, अभिलेख आदि प्राप्त हो जाते हैं।


यूनानी वृत्तांत- मौर्य इतिहास को जानने के लिए यूनानी स्रोत अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इस स्रोत के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य सिकंदर का समकालीन माना जाता है। इन स्रोतों से भारतीय इतिहास का क्रमबद्ध ज्ञान होता है। सिकंदर के साथी रचनाकारों के अतिरिक्त मेगास्थनीज़ की रचना 'इंडिका', इस काल की एक मुख्य स्रोत मानी जाती है। मेगास्थनीज़ एक यूनानी विद्वान था, जिसे सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य की राजसभा में अपना दूत बनाकर भेजा था। उसका वृत्तांत ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।


कौटिल्य का अर्थशास्त्र - मौर्यकालीन इतिहास का अन्य महत्वपूर्ण साधन कौटिल्य का अर्थशास्त्र है।

उसे विष्णुगुप्त और चाणक्य भी कहते हैं। कौटिल्य चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था। कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र ऐतिहासिक एवं राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रंथ है यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक अवस्था का वर्णन करने के साथ ही आदर्श शासक की विवेचना भी करता है।


विशाखदत्त का मुद्राराक्षस- विशाखदत्त द्वारा पाँचवी शताब्दी में रचित 'मुद्राराक्षस' एक राजनीतिक नाटक है, जिससे मौर्यकाल के प्रारंभिक इतिहास की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है,

परंतु नाटक होने के कारण इसमें कल्पना का मिश्रण भी है, अतः इसे पूरे तौर पर विश्वसनीय नहीं माना जाता है।


ब्राह्मण साहित्य ब्राह्मण साहित्यों के माध्यम से भी मौर्य काल के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। जिसमें मुख्य रूप से पुराण आते हैं, परंतु इसमें भी कल्पना और अतिशयोक्ति का समावेश होने के कारण इन पर अधिक विश्वास नहीं किया जाता।


बौद्ध एवं जैन साहित्य बौद्ध परंपराएँ मौर्य वंश पर काफी प्रकाश डालती हैं। बौद्ध ग्रंथ "दिव्यावदान' में अशोक का वर्णन मिलता है,

इसी प्रकार महावंश एवं महापरिनिब्बान सुत्त' से भी मौर्य काल के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। इसी प्रकार जैन साहित्य द्वारा भी चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।


अभिलेख - मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी के लिए एक अन्य विश्वस्त स्रोत अशोक के अभिलेख हैं। अशोक ने अपने राज्य के विभिन्न भागों में कई शिलालेख, स्तंभलेख तथा अन्य स्मारक चिह्नों का निर्माण किया था, जिसमें उसने बौद्ध धर्म के सिद्धांत पवित्रता पर चलने के नियम बताए थे। इसके अतिरिक्त उसके राज्यविस्तार, जनहितकारी कार्य, राजस्व के सिद्धांत आदि का भी वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक के अभिलेख अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।


चंद्रगुप्त मौर्य


चंद्रगुप्त मौर्यवंश का संस्थापक था। इस प्रतिभाशाली सम्राट की वंश परंपरा के संबंध में विद्वानों में बहुत अधिक मतभेद है। चंद्रगुप्त के पूर्व वृत्तांत के संबंध में प्राचीन साहित्यों में मुख्यतः निम्न मत पाए जाते हैं-


1. नंदवंश के राजा की एक पत्नी का नाम मुरा था। वह जाति से शूद्र थी। इसी से चंद्रगुप्त का जन्म हुआ। मुरा का पुत्र होने के कारण ही वह 'मौर्य' कहलाया। 


2. दूसरा मत कथासरित्सागर में उपलब्ध होता है। इसके अनुसार चंद्रगुप्त नंद राजा का ही पुत्र था, और उसके अन्य कोई संतान नहीं थी।


3. चंद्रगुप्त के विषय में तीसरा मत महावंश में पाया जाता है। इसके अनुसार चंद्रगुप्त पिप्पलिवन के मोरिय गण का कुमार था। नंद के साथ उसका कोई संबंध नहीं था। मोरिय गण वज्जिमहाजनपद के पड़ोस में स्थित था।