लोकहितकारी कार्य एवं धर्म - Public welfare work and religion

लोकहितकारी कार्य एवं धर्म - Public welfare work and religion


चंद्रगुप्त ने अपनी प्रजा को अधिक से अधिक सुविधा तथा सुख प्रदान करने का प्रयत्न किया था। इस दिशा में उसका पहला प्रशंसनीय कार्य यातायात की व्यवस्था करना था। उसने मार्गों का निर्माण करवाया, नागरिकों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की। नई सड़कों का निर्माण करवाया, पुरानी सड़कों की मरम्मत करवाई। चंद्रगुप्त ने सिंचाई का उचित प्रबंध किया, नहरों की खुदाई करवाई, कृषि की उन्नति के लिए चतुर्दिक प्रयास किए। चंद्रगुप्त ने सौराष्ट्र में सुदर्शन नामक एक झील का निर्माण करवाया था। उसने राज्य में अनेक चिकित्सालय खुलवाए,

प्रजा के स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया जाता था। नगरों की स्वच्छता के लिए भी निरीक्षक रखे गए थे।


जैन लेखक हेमचन्द्र के अनुसार चंद्रगुप्त प्रारंभ में मिथ्यामतावलंबी व्यक्तियों का संरक्षक था। उसकी राजसभा में एक जटिलक मंत्री था। जटिलक संप्रदाय का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। उसकी बौद्ध धर्म में आस्था थी या नहीं, यह विश्वास से कहना कठिन है। जीवन के अंतिम चरण में वह जैन धर्मावलंबी हो गया था। वह धार्मिक सहिष्णुता का समर्थक था ।


जैन अनुश्रुतियों के अनुसार चंद्रगुप्त ने महावीर स्वामी की शिष्यता ग्रहण कर ली थी। चौबीस वर्षों के शासन काल के उपरांत 298 ई. पू. में उसने संन्यास ग्रहण कर लिया था। वैराग्य उत्पन्न होने के कारण अपना राज्य अपने पुत्र बिंदुसार को सौंपकर वह कर्नाटक के पर्वतों की ओर चला गया और वहीं पर एक सच्चे जैन की भाँति अनशन करके अपने प्राण त्याग दिए। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक का अंत हुआ।