ईसाई धर्म में स्त्री - woman in christianity
ईसाई धर्म में स्त्री - woman in christianity
ईसाई धर्म में स्त्रियों के स्थान के संबंध में भी कई प्रकार की मान्यताएँ तथा परंपराएँ मिलती हैं। ईसाई बाईबिल के अनुसार स्त्रियों से अपेक्षा की गई है कि वे हर प्रकार से विनम्र और आज्ञाकारी हों। वे न केवल अपने पति बल्कि चर्च, अपने समुदाय तथा ईश्वर के प्रति भी विनम्र और आज्ञाकारी हों।
परंपरागत रूप से ईसाई धर्म में नेतृत्वकारी भूमिका में पुरुष ही रहे हैं। रोमन कैथोलिक तथा आर्थोडोक्स चर्चों में पादरी के रूप में केवल पुरुष ही सेवाएँ दे सकते हैं। पोप, पेट्रियार्क, बिशप इत्यादि उच्चस्तरीय पदों पर पुरुष ही बैठे दिखाई देते हैं। अब कहीं-कहीं खियाँ मुख्यधारा में आने लगी हैं।
आदर्श रूप में ईसाइयत में स्त्री को सम्मान का स्थान प्राप्त है। ईसाइयत में स्त्रियों को संपत्ति का अधिकार दिया गया है। मिशनरियों में स्त्रियों का योगदान सर्वाधिक देखा गया है।
परंपरागत ईसाई धर्म के अंतर्गत अधिकांश स्त्री संबंधी मान्यताएँ पुरुषवर्चस्ववादी रही हैं। इनमें से
कुछ इस प्रकार हैं-
1. ईश्वर ने पुरुष को अपने स्वरूप से उत्पन्न किया। बाद में गॉड ने प्रथम 'मैन' एडम की एक पसली से स्त्री 'ईव' बनाई, जो 'मैन' के मनबहलाव के लिए बनाई गई थी।
इस प्रकार 'मैन' इस दुनिया का लार्ड है। स्त्री का स्थान उसके बाद है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि स्त्री का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। वह पुरुष का ही एक अंश है।
2. वुमैन शैतान की बेटी है। शैतान के कहने पर उसने मैन को फुसलाया। क्रिस्चियनिटी के अनुसार, "स्त्री-पुरुष का परस्पर स्वेच्छा और उल्लास से मिलना ही 'ओरिजनल सिन' है। स्त्री पुरुष को सम्मोहित कर शैतानियत के चंगुल में फँसाती है। वह सम्मोहक है और 'एडल्टरी' की दोषी है।"
3. परंपरागत ईसाइयत में विवाहित स्त्री को अपवित्र' माना जाता है। पवित्र स्त्री तो वह है, जो किसी क्रिश्चियन मठ में दीक्षित मठवासिनी अर्थात् 'नन' है, जिसने गरीबी, चेस्टिटी तथा क्रिश्चियन पादरियों और चर्च की आज्ञाकारिता की शपथ ली है।
4. परंपरागत ईसाइयत में स्त्री को शापग्रस्त माना गया है। पुरुष को ओरिजिनल सिन में फँसाने के दंडस्वरूप उसे मासिक धर्म, प्रसव पीड़ा, गर्भ धारण तथा सदा पुरुष की अधीनता में रहने और दंडित किए जाने आदि का शाप दिया गया है।
5. परंपरागत ईसाइयत में स्त्री का माँ बनना भी एक पाप है।
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