निराला जीवन परिचय और रचनाएँ - Unique life introduction and creations

निराला छायावादी युग के महत्त्वपूर्ण कवि हैं, उन्होंने अपनी सुकोमल और ओजस्वी रचनाओं से छायावादी काव्य को विस्तार और दृढ़ता प्रदान की। वे युगान्तरवादी कवि हैं, उनकी कविताओं में नवजागरण का सन्देश, प्रगतिशील चेतना और राष्ट्रीयता का स्वर विद्यमान है। साथ ही मानव की पीड़ा, परतन्त्रता के प्रति तीव्र आक्रोश और अन्याय- असमानता के प्रति विद्रोह की भावना सर्वत्र विद्यमान है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' अपने नाम के अनुरूप निराले रचनाकार हैं। वे हिन्दी साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्रों में से एक हैं। उनके जीवन का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-


जीवन परिचय


निराला का जन्म 1896 ई. में वसन्त पंचमी के दिन बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ।

उनके पिता पण्डित रामसहाय त्रिपाठी मूलतः उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे, वे महिषादल में जमादार की नौकरी करते थे। जनश्रुति के अनुसार इनकी माता, जिनका नाम रुक्मणी था, सूर्य का व्रत करती थीं और निराला का जन्म भी रविवार को हुआ, इस कारण उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। लेकिन सन् 1917-18 में उन्होंने अपना नाम बदलकर सूर्यकान्त त्रिपाठी रख लिया और निराला उपनाम उन्होंने 'मतवाला' पत्र के सम्पादन काल में रखा।


निराला की तीन वर्ष की अल्प आयु में ही उनकी माता की मृत्यु हो गई और उन्होंने पिता के शुष्क और कठोर साये में अपना बाल्यकाल व्यतीत किया।

निराला ने हाई स्कूल के पश्चात् ही स्कूली शिक्षा को विराम दे दिया, उनकी रुचि पढ़ाई की अपेक्षा खेलने, तैरने, कुश्ती लड़ने और संगीत में अधिक थी। इसके साथ ही पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ने के शौक के कारण उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला के अनेक ग्रन्थ पढ़ लिए और गहन तथा उपयोगी ज्ञान अर्जित किया।


निराला का विवाह मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में मनोहरा देवी के साथ हो गया था, जो अत्यन्त रूपवती और गुणवती थीं।

यद्यपि निराला विद्यार्थी काल से बांग्ला में कविता लिखने लगे थे किन्तु उन्हें हिन्दी में साहित्य- सृजन की प्रेरणा मनोहरा देवी से ही मिली। निराला को उनके प्रति अत्यधिक अनुराग था। बचपन के नैराश्यपूर्ण एकाकी जीवन के बाद उन्होंने अपनी पत्नी के साथ कुछ वर्ष सुखपूर्वक बिताए, लेकिन मात्र 20 वर्ष की अल्प आयु में उनकी मृत्यु हो गई। इससे निराला बुरी तरह टूट गए, उनकी दशा अर्द्ध विक्षिप्त सी हो गई। इसी दौरान उनके पिता, चाचा आदि सम्बन्धी भी एक-एक कर स्वर्ग सिधार गए। उन पर अपने दो बच्चों और परिवार के अन्य बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में निराला के व्यक्तित्व का निर्माण हुआ।

उनके जीवन में एक और जबरदस्त आघात लगा, जब उनकी पुत्री सरोज की युवावस्था में अकाल मृत्यु हो गई। इस प्रकार उनके जीवन में दुखों और अभावों का सिलसिला अनवरत चलता रहा। उनके यह उद्गार उनके जीवन पर पूर्णत: चरितार्थ होते हैं-


दुःखही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कही।


सरस्वती के वरद पुत्र निराला ने आजीवन साहित्य-साधना की। सन् 1918-1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की किन्तु बाद में इस नौकरी को छोड़कर पूर्ण संकल्प से साहित्यिक जीवन में प्रवेश किया। इन्होंने 1922-23 के दौरान 'समन्यव' नामक दार्शनिक पत्र का सम्पादन किया। 1923 के अगस्त से 'मतवाला' नामक पत्र के सम्पादक नियुक्त हुए।

1929 से उन्होंने 'गंगा-पुस्तक माला' का काम सँभाला और 'सुधा' पत्रिका का प्रकाशन किया। 1942 से मृत्युपर्यन्त (15 अगस्त 1961 तक) इलाहाबाद में रहकर स्वतन्त्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। साहित्य जगत् में उन्हें सदैव विरोध सहन करना पड़ा। जिसे देखते हुए 'राम की शक्ति-पूजा' में राम के यह उद्गार उनके अपने आत्मोद्गार प्रतीत होते हैं-


धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध, धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध ।


रचनाएँ


निराला का काव्य अनेक विलक्षणताओं से परिपूर्ण है । इन्होंने जीवन के विविध रूपों को देखा और विकट परिस्थितियों में टूट कर भी वह अपने अन्तर से शक्ति ग्रहण कर संघर्षों से जूझे ।

प्रतिकूल परिस्थितियों ने उन्हें तराशा और समर्थ-सृजक के रूप में साहित्य जगत् में प्रतिष्ठित किया । इन्होंने विविध विधाओं की रचना कर सरस्वती के भण्डार की अभिवृद्धि की। इनकी रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं-


उपन्यास


कहानी-संग्रह


रेखाचित्र


निबन्ध संग्रह


अलका, प्रभावती, निरूपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, उशृंखल, चमेली।


लिली, सखी, चतुरी चमार, सुकुल की बीवी । कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा । :


प्रबन्ध पद्य, प्रबन्ध प्रतिमा, चाबुक, प्रबन्ध परिचय ।



आलोचनात्मक ग्रन्थ


आनन्दमठ, कपाल कुण्डला, चन्द्रशेखर, दुर्गेश-नन्दिनी, कृष्णकान्त का बिल, युगालांगुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, विषवृक्ष, राजसिंह, राधारानी, महाभारत का हिन्दी अनुवाद, श्रीरामकृष्ण कथामृत (पाँच भाग), विवेकानन्द के


व्याख्यान ।


नाटक


समाज, शकुन्तला, ऊषा-अनिरुद्ध ।


जीवनियाँ


काव्य संकलन


ध्रुव, भीष्म, राणा प्रताप ।


अनामिका, परिमल गीतिका अनामिका (द्वितीय) तुलसीदास कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत गुंजन, सांध्यकाकली।