विभिन्न माध्यम, संचार भाषा और अभिव्यक्ति प्रक्रिया - Different medium, communication language and expression process
विभिन्न माध्यम, संचार भाषा और अभिव्यक्ति प्रक्रिया - Different medium, communication language and expression process
पूर्व मुद्दों में आपको, भाषा-सन्देश माध्यम और उनमें प्रयुक्त भाषा की अवधारणा को पारिभाषिकता के साथ समझाया गया । अब, आपके सामने यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि क्या एक ही भाषा का विभिन्न माध्यमों में प्रयुक्त भाषिक रूप अलग-अलग हो सकता है ? और क्या विभिन्न माध्यमों में प्रयुक्त भाषिक रूप को, सन्देश स्थापन के सन्दर्भ में, अलग-अलग तरीक़ों से व्यक्त/ संचारित करना होता है? आइए, इस पर विचार करें।
(i) आपने सम्भवतः, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी का, रेडियो / टी.वी. कार्यक्रम 'मन की बात' (प्रत्येक माह का अन्तिम रविवार पूर्वाह्न 11.00) सुना / देखा हो आपने ध्यान दिया होगा कि इस कार्यक्रम की भाषा सरल और सम्प्रेषणीय शैली में रहती है, जिसमें, प्रस्तोता (प्रधानमंत्री) श्रोता दर्शकों से बराबर, सम्बोधन (Address) + संवाद (Dialog) शैली में, अपने सन्देश को पूरे मन से स्थापित करते दिखाई देते हैं। चूँकि, प्रस्तोता (साइड में जिनका चित्र रहता है जो बीच-बीच में फ्लेश होता रहता है), विषयानुसार प्रस्तुत दृश्य सामग्री के सन्देशानुसार, अपने मन के उद्गारों को स्वाभाविक तरीके से रखते हैं; / तो / उनकी आवाज़ में भी शब्दों में निहित भाव के अनुसार उतार-चढ़ाव, लय / गति / शब्द चयन आदि को भाषिक / सम्प्रेषणीय शैली के आधार पर समझा एवं सीखा जा सकता है। मसलन, ऐसे ही एक कार्यक्रम की, किसी ग़रीब (निरक्षर, पर ज्ञानी) कबीरी ग्रामीण शतायु- महिला जो अपनी जीविका का साधन बकरी बेचकर शौचालय का निर्माण करवाती है; खबर को, विषय / सन्देशानुसार, प्रस्तोता की आवाज़ उतार-चढ़ाव, लय / गति / भाषिक / सम्प्रेषणीय-शैली आदि के आधार पर विश्लेषित कर समझा जा सकता है।
(ii) आज लगभग हर हिन्दी मीडिया में, वाक्य विन्यास / दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति- उच्चारण जैसे मुद्दों को लेकर भाषिक अशुद्धियाँ और आक्रामकता बढ़ती जा रही हैं। विशेषकर, टी.वी. समाचार चैनलों (Channel (s)) पर ऐसा लगता है / कि / एंकर (कार्यक्रम प्रस्तोता / संचालक / Anchor) किसी मुद्दे को विमर्श हेतु सूचनात्मक तरीक़े से न बता कर / रखकर, धमकाकर / रौब / एहसान जताकर अपनी बात लाउड तरीके से रख रहा है। उच्चारण / भाषिक अशुद्धियाँ तो साधारण बात बन गई है.... मजेदार बात है जब वे ही धमकाऊ एंकर, समाचार प्रस्तुति देते हैं। तो उनके लहज़े में कुछ शालीनता दिखाई देती है। इस मामले में, श्री रजत शर्मा का एक आदर्श उदाहरण है जो एक-एक घण्टे तक, पेचीदे से पेचीदे / भड़काऊ मुद्दे / विषय को भी सही भाषिक उच्चारण / शैली / भावाभिव्यक्ति के साथ पूरे संतुलन तरीके से रखते हैं। इस मामले में अंग्रेजी चैनल काफी बेहतर हैं। कई चैनलों पर आनेवाले हिन्दी कैप्शनों में (पर) भी अशुद्धियाँ आम बात है : एक नमूना "दिल्ली में फिर छाया कोहरे का चादर "*
* (सही) ( दिल्ली पर फिर छाई कोहरे की चादर } दि. 19.1.12, 7.58, महाशतक- 100: (चैनल का नाम गुप्त ) । इसके अलावा, हिन्दी सिनेमा के प्रभाव से तिहाड़ जेल में चक्की पिसिंग, भँवरा बगियन में गाझा आदि प्रयोग मीडिया में विशेष अर्थ सम्प्रेषण को लेकर आ रहे हैं, जो विधा / विषय आदि के हिसाब से मनोरंजन का हिस्सा बन जाते हैं।
(iii) आज माध्यमों की अपनी प्रकृति और उसमें निहित तकनीकी अद्यतन व्यवस्थाओं / सुविधाओं के आधार पर प्रयोक्ता, किसी भाषिक अर्थाभिव्यक्ति को, प्रमुखतः, सही उच्चारण, बलाघात ( Stress ): अनुतान (Intonation) का प्रयोग करते हुए अपेक्षित अभिव्यक्ति रूप दे सकता है। जाहिर है ये सुविधाएँ विभिन्न माध्यमों में अलग-अलग ढंग की / से होंगी। जैसे, मुद्रण-माध्यम में, शब्द की विशेष अर्थाभिव्यक्ति के लिए तदनुसार, विराम-चिह्नों (Punctuation-Mark(s) / अक्षराकार-शैली (डिज़ाइन / फाण्ट (Fount(s) ) आदि का सूझ-बूझ के साथ प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, अखबारों / पत्रिकाओं / पुस्तकों / श्रव्य-दृश्य-श्रव्य-संचार माध्यमों आदि के लिए, समाचार / भाषण-स्क्रिप्ट जैसे लेखन में, अपेक्षित अर्थ सम्प्रेषण के लिए, मुख्यतः प्रस्तुत विराम चिह्नों का प्रयोग किया जाता है :->
(क) पूर्ण विराम (I) / (.) (Full-stop) सरल, संयुक्त और मिश्र वाक्यों में किसी आशय के पूरा होने पर या अगले वाक्य को आरम्भ करने के पहले कुछ क्षण रुकने के लिए प्रयुक्त। जैसे : राकेश घर के लिए निकल गया। कल बादल तो घिरे थे लेकिन बरसात नहीं हुई। उसने कहा था शिवानी अवश्य आएगी।
(ख) अर्द्ध / अर्द्ध विराम (Semi Colon ) ( ) : कई मंतव्यों के बीच विशेष मंतव्य को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे मेरे लिए कोट और कमीजें, जूते, चप्पल और सैंडिल, फ़ाइल आदि निकालकर रख दो।
(ग) अल्पविराम (Comma) () :- जब बोलते / पढ़ते समय, विशेष प्रयुक्तिपरक अर्थाभिव्यक्ति हेतु अल्पावधि के लिए रुकना पड़े तब इसका प्रयोग होता है जैसे समानपदी शब्दों सेठ अपनी पूँजी, जायदाद, मानमर्यादा, सब कुछ खो बैठा। वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के जोड़ों-> दुख और सुख, जनम और मरण, रात और दिन -- ये सब ईश्वर के बनाए हुए हैं। किसी वाक्यांश या उपवाक्य- मैं समझता हूँ, टैक्स-स्लैब बदल जाने से, इस साल व्यापारियों को लाभ होगा। उपाधियों को अलग करने के लिए किया जाता है- एम.ए., एम. फिल., पी-एच.डी.। साथ ही, एक ही वर्ग के तीन या अधिक शब्दों के आने पर अन्तिम शब्द को छोड़कर अन्य शब्दों के बाद प्रयुक्त होता है, > स्वास्थ्य के लिए दौड़ना, तैरना और खेलना लाभप्रद है। किसी के उद्धरण से पूर्व -> नेताजी ने कहा, "मैं अब राजनीति से सन्यास ले रहा हूँ", विशेषणयुक्त उपवाक्यों के बीच में, जैसे :-> वह लम्बा विद्यार्थी, जिसे हमने अभी-अभी जाते देखा, स्कूल का टॉपर है। सम्बोधन के बाद और यदि सम्बोधन वाक्य के बीच में हो तो पहले तथा बाद में प्रयुक्त, जैसे सर, आइए। यहाँ आइए, सर, यहाँ बैठिए। हाँ या नहीं जैसे पदबंधों के बाद, जैसे- हाँ, मैं यह सवाल हल कर सकता हूँ। नहीं, मैं यह नहीं कर सकता। एक ही क्रिया की पुनरावृत्ति करके, उसके स्थान पर, जैसे प्रवीण लखनऊ होकर वाराणसी गया, स्नेहिल इलाहाबाद होकर । (* वाराणसी गया की पुनरावृत्ति की आवश्यकता नहीं है, चूंकि, कथित भाव अपने आप में विदित / स्पष्ट है)। संयुक्त और मिश्र वाक्यों में, जैसे मैं शादी में ज़रूर आता, लेकिन उस दिन मेरी परीक्षा है। मैं शाम को आपके यहाँ नहीं आ सकूँगा, क्योंकि उस समय मुझे बाहर जाना है।
(घ) प्रश्नसूचक / प्रश्नवाचक चिह्न (?) :- भाव सम्प्रेषण कई शैलियों / तरीक़ों में / से हो सकता है। ज़ाहिर है, किसी से पूछताछ / जानकारी करने / लेने हेतु किए गए भाषा प्रयोग / व्यवहार में इसका इस्तेमाल होता है। कुछ भाषाविद् इसे पूर्णविराम का ही एक प्रकार मानते हैं; परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। प्रश्नसूचक / प्रश्नवाचक भी भावभिव्यक्ति का एक स्वतन्त्र (विराम चिह्न है जिसका, अर्थवत्ता के क्षेत्र में अपना महत्त्व है। प्रस्तुत नमूनों से आपका वास्ता कई बार पड़ा होगा, जैसे -> स्वतन्त्र वाक्यों में आपका / तुम्हारा नाम क्या है? आप कहाँ - रहते हैं ? आदि। किसी प्रश्नसूचक वाक्य में प्रश्नात्मक शैली में कुछ उपवाक्य भी हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में हरेक उपवाक्य के पीछे प्रश्नसूचक चिह्न न लगा कर, वाक्य के अन्त / समाप्ति में / पर लगाया जाता है यथा :-> मैं क्या करता भाई, कहाँ जाता, कहाँ रहता, वह सब मैं आपको क्यों बताऊँ ? इस वाक्य शैली के विपरीत अगर समूह में से किसी एक से प्रश्न पूछा जा रहा है तो वहाँ आरम्भ में प्रश्नवाचक चिह्न आएगा। परन्तु, उत्तर न मिल पाने की अवस्था में वही प्रश्न अन्यों से पूछने पर प्रश्न वाचक चिह्न नहीं लगेगा, जैसे प्रश्नकर्त्ता ने किसी से पूछा ब्रह्मपुत्र नदी कौनसे राज्य में है ? उत्तर न मिलने या सही उत्तर न मिलने पर प्रश्नकर्त्ता ने किसी अन्य से पूछा, अच्छा, तुम बताओ। (+) यहाँ, प्रश्नवाचक चिह्न + (?) नहीं लगेगा। काव्यात्मक शैली में प्रश्नात्मक भाव रहने पर भी प्रश्नसूचक चिह्न का प्रयोग नहीं (भी) किया जा सकता है यथा गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय । (यहाँ भी छन्द के पहले चरण में प्रश्न होते हुए भी प्रश्नवाचक चिह्न (?) न लगाकर पूर्णविराम का प्रयोग किया गया है। उसी प्रकार सम्बन्धसूचक या डाँटकर चुप कराने की शैली में भी प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग नहीं होता यथा- - क्रमशः आपने क्या कहा, मैं कुछ समझा नहीं... / या / क्यों शोर मचा रहे हो, चुप रहो। -
(ङ) विस्मयादिबोधक / आश्चर्यसूचक-चिह्न (!) प्रसन्नता, आश्चर्य, घृणा, दुख, मनोवेग की गुणात्मक / क्रमिक वृद्धि, असहायता जैसे भावों की सटीक अभिव्यक्ति के लिए इसका प्रयोग होता है; यथा क्रमश :-> अहा / वाह ! कितना सुन्दर दृश्य है। अरे ! तुम यहाँ कैसे ? छि ! सड़क पर कूड़ा फेंक दिया। हाय ! / अरे, रे, रे... ! बेचारा मारा गया। नाश ! महा / सत्यानाश !... अब क्या हो सकता है! जो होना था सो हो गया।
(च) भाव अर्थाभिव्यक्ति / सम्प्रेषण के सन्दर्भों में कुछ अन्य विराम-चिह्न भी हैं, जिन्हें कुछ विद्वानों ने इन्हें केवल चिह्न कहकर सम्बोधित किया है। मुख्यतः ये इस प्रकार हैं :-
(i) अपूर्ण विराम / उपविराम (Colon) (:) सामान्य रूप से यह किसी सूची आदि के पूर्व प्रयुक्त होता है; यथा : -> तीन समय-काल हैं: भूत, वर्तमान और भविष्य संख्याओं के अनुपात दर्शाने हेतु 1:2, 56 समय / स्थान - 16 : 10 स्थान समिति कक्ष, नाटक आदि में राजेश मैंने नहीं किया.... मोहन ने किया ।
(ii) योजक (Hyphen) (-) इसका प्रयोग (+उदाहरण), द्वन्द्व समास / तत्पुरुष समास (माता-पिता / भू-तत्त्व), समानार्थी (पास-पास), विलोम (रात-दिन), साम्य सूचक (शीला-सी पुत्री), शब्दों में होता है।
(iii) निर्देशक (Dash) (-) इसे रेखिका भी कहते हैं। यह योजक से लम्बा होता है। इसका प्रयोग, किसी के वक्तव्य (नाट्य-पटकथा आदि में) आदि को उद्धृत करने या वार्तालाप शैली में लिखी गई सामग्री आदि में होता है, जैसे अध्यापक भारत का राष्ट्रीय पक्षी कौनसा है ? छात्र मोर, कहना, लिखना, बोलना, बताना जैसी क्रियाओं के बाद :-> विमला ने कहा- मैं लिख सकती हूँ।; निम्नलिखित / निम्नांकित जैसे पदबंधों के बाद :-> निम्नलिखित / निम्नांकित छात्र पुरस्कृत होंगे सुशीला, प्रवीण, लता और राकेश । किसी अवतरण के साथ, सम्बन्धित लेखक / वक्ता / रचयिता के नाम से पहले :-> तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस । किसी वाक्य में सहसा भाव परिवर्तन होने पर / अन्तिम खण्ड पर ज़ोर :-> हाँ, हाँ, आप आइए बड़े आराम से; संख्याओं के बीच, 'अमुक' से 'अमुक' तक पृष्ठ 3050 (यानी पृ. 30 से 50 तक); कोश में शब्द के विवरण के साथ, अन्य शब्दों को मुख्य शब्द के साथ जोड़ने हेतु :-> मूल शब्द 'प्रयोग' के साथ :--- कर्ता (प्रयोगकर्त्ता), धर्मी, कर्मी ( प्रयोगधर्मी /प्रयोगकर्मी) - शाला (प्रयोगशाला) आदि । --
(iv) विवरण चिह्न (Colon-Dash) (:-) अपने चिह्न स्वरूप से यह स्पष्ट करता है कि यह दो चिह्नों, यथा, अपूर्ण विराम / उपविराम (Colon) (:) एवं निर्देशक / रेखिका (Dash) (--) के मिश्रण / योग से बना है। अतः इसके द्वारा कथित दो भावों को एक साथ प्रस्तुत करने पर इस एक ही विवरण चिह्न (:-) का वैकल्पिक रूप से प्रयोग किया जाता है; यथा -> किसी एक कवि का जीवन परिचय लिखिए:- 1. सूरदास 2. कबीरदास 3. केशव तथा समझाने / विवरण के अर्थ में, जैसे शब्द की तीन शक्तियाँ हैं :- अभिघा, व्यंजना और लक्षणा ।
(v) (क) उद्धरण चिह्न / दोहरे उद्धरण चिह्न (Inverted Comma) (" ") - किसी के कथन को ज्यों-का-त्यों उद्धृत (Quote) करने -> शास्त्रीजी ने "जय जवान जय किसान" का नारा दिया, नाटकों में संवाद (के साथ) देने / दर्शाने -> अधिकारी "क्या कहा ?... जल्दी घर जाना है ?" कर्मचारी "जी, वाइफ को डॉक्टर के पास ले जाना है...।" किसी सिद्धान्त / बोध वाक्य को सूचित करने "सत्यमेव जयते" अथवा लोकोक्ति -> "अन्धों में काना राजा"; के लिए इसका प्रयोग होता है।
(v) (ख) शब्द चिह्न / इकहरे उद्धरण चिह्न (Single Inverted Comma) ( ) किसी पुस्तक, व्यक्ति / उपनाम आदि के नाम को, विशेष महत्त्व / ध्यानाकर्षण / सन्दर्भ आदि देने के उद्देश्य से इसका प्रयोग होता है, यथा :-> 'चन्दामामा' बच्चों की प्रिय पत्रिका है।
(vi) कोष्ठक चिह्न (Brackets) यह तीन रूपों में पाया जाता है :- छोटा (), मँझला / मध्य / सर्पाकार {} एवं बड़ा / दीर्घ []। इनमें छोटा कोष्ठक, प्रमुख रूप से प्रयुक्त होता है, परन्तु जब तकनीकी अथवा भाषा वैज्ञानिक कारणों से दो या तीन प्रकार की सम्बन्धित सूचनाएँ/ टिप्पणियाँ एक साथ सम्प्रेषित करनी हो तो छोटा कोष्ठक मँझले में और अन्त में, छोटा + मँझला / सर्पाकार मिलकर बड़े कोष्ठक :-> (()}) में समाहित हो जाते हैं; जैसे, गणित के सवालों में होता है; यथा -> वह लड़का ( जो दूर खड़ा है {पीली शर्ट में 2 } (हमारे विद्यालय का 3) सबसे होशियार विद्यार्थी है।) मेरा अच्छा दोस्त है । स्पष्ट है इसमें एक मूल वाक्य की तीन अलग-अलग सूचनाएँ हैं, जो विशेष अर्थ के अनुसार अलग-अलग कोष्ठक चिह्नों में हैं, अन्त में सभी मिलकर, सम्पूर्ण / कुल अर्थवत्ता को सम्प्रेषित करती हैं।
(vii) लोप चिह्न (Elimination Sign) (...) जब किसी प्रतिबन्धित / अमर्यादित शब्द का जानबूझ कर प्रयोग न करना हो या कोई शब्द तत्काल याद न आ रहा हो तो उस लोपता को तीन बिदुओं <... > द्वारा दर्शाया जाता है, यथा -> तू बड़ा... है, अरे हाँ... अब याद आया ।
(viii) संक्षेपसूचक या संक्षिप्त बिन्दु (Abbreviation Sign) (०) / (.) किसी शब्द/ पदबंध के सम्पूर्ण अर्थ को संक्षिप्त रूप दे कर दर्शाया जाता है, जैसे:-> एम.ए./ या / एम.ए. (मास्टर ऑफ़ आर्ट्स) (xi) हंसपद (Sign of left/add-word indication) (i) लिखते समय कोई पद रह गया या बाद में कुछ जोड़ने का ध्यान आया तो उस स्थिति में अपेक्षित सामग्री जोड़कर (सूचनार्थ) इस चिह्न (i) का प्रयोग किया जाता है, यथा- आना कल आपको है।
प्रस्तुत सभी चिह्न, सभी संचार / जनसंचार माध्यमों (वाचिक-मौखिक / दृश्य / श्रव्य / दृश्य-श्रव्य ) के लेखन / पटकथा हेतु भाषिक स्तर पर अपेक्षित-भाव को सम्प्रेषित करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
अब तक आपने विचार अभिव्यक्ति, माध्यम, संचार की अवधारणा को, भाषिक रूपों के अनुप्रयोगात्मक उदाहरणों के साथ समझा। अब हम रोज़गार क्षेत्रों को ध्यान में रखकर इन पर चर्चा करेंगे।
वार्तालाप में शामिल हों