आधुनिक युग में हिन्दी भाषा : विविधता एवं विस्तार - Hindi language in the modern era: diversity and expansion

आधुनिक युग में हिन्दी भाषा : विविधता एवं विस्तार - Hindi language in the modern era: diversity and expansion

स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी भाषा केवल साहित्य, बातचीत और जनमानस की अभिव्यक्ति का साधन नहीं रह गई है बल्कि यह तो कार्यालयी कामकाज, पठन-पाठन, ज्ञान-विज्ञान, सिनेमा एवं खूदर्शन, मीडिया एवं प्रौद्योगिकी सभी क्षेत्रों की भाषा बन गई है। आधुनिक युग में हिन्दी के विस्तार को निम्नलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत व्यवस्थित रूप से समझा जा सकता है-


हिन्दी भाषी क्षेत्र


हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत में हिन्दीभाषी राज्यों में उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तराखण्ड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमांचल प्रदेश, पंजाब, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ एवं हरियाणा आदि मुख्य हैं। भारत और अन्य देशों में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। मॉरिशस, फ़िजी, गुयाना, सूरीनाम की अधिकांश और नेपाल की कुछ जनता हिन्दी बोलती है। इस प्रकार देश-विदेश में विस्तार की दृष्टि से हिन्दी एक वैश्विक भाषा के रूप में अपने आप को स्थापित करती है।


हिन्दी की बोलियाँ


जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि सभी आधुनिक भारतीय आर्यभाषाएँ संस्कृत से विकसित हुई हैं; अतः इन भाषाओं के मातृभाषी एक दूसरे की बातों को समझ लेते हैं। सामान्यतः इन सभी के बीच सम्प्रेषण की औपचारिक भाषा हिन्दी ही होती है। इनके मातृभाषी अपना औपचारिक कामकाज एवं उच्च शिक्षा का ग्रहण हिन्दी में ही करते हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि हिन्दी इनकी प्रतिनिधि भाषा है। इस कारण व्यापक दृष्टि अपनाते हुए इन्हें हिन्दी की बोलियाँ ही कहा जाता है। हिन्दी की प्रमुख बोलियों को उपभाषाओं के साथ वर्गीकृत करते हुए संक्षेप में इस प्रकार देखा जा सकता है-



हिन्दी का मानकीकरण


हिन्दी का मानक रूप क्या हो ? क्या खड़ीबोली ही मानक हिन्दी है ? इस तरह के कुछ प्रश्न हैं जो आधुनिक हिन्दी के सन्दर्भ में खड़े किए जाते हैं। जैसा कि ऊपर दिखाया जा चुका है कि हिन्दी किसी स्थान या प्रदेश विशेष की भाषा नहीं है, बल्कि यह अनेक बोलियों (उपभाषाओं) की प्रतिनिधि भी है। वर्तमान में यह देश की राजभाषा है। इसके अतिरिक्त भारत के विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में इसके अध्यापन की व्यवस्था है। इस कारण इसके मानकीकरण की आवश्यकता पड़ती है जिससे कि सभी स्थानों पर एक प्रकार की हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन किया जा सके।


हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से जो प्रयास हुए हैं उन्हें निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित करके देखा जा सकता है-


(क) हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण


व्याकरण किसी भी भाषा का वह ढाँचा होता है जिसके आधार पर उस भाषा का वाक्यों का निर्माण किया जाता है। इसके अतिरिक्त व्याकरण के आधार पर ही किसी भाषा के वाक्यों की शुद्धता तथा अशुद्धता का निर्णय किया जाता है। हिन्दी में व्याकरण लेखन 20वीं सदी के आरम्भ से ही देखा जा सकता है किन्तु बृहत् और मानक स्तर पर इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास पण्डित कामता प्रसाद गुरु द्वारा 1920 ई. में 'हिन्दी व्याकरण' के रूप में किया गया जो आज भी हिन्दी व्याकरण निर्माण के क्षेत्र में मील का पत्थर है। इसके बाद अनेक प्रयास हुए हैं जिनमें आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का 'हिन्दी शब्दानुशासन' सबसे अधिक उल्लेखनीय है।


हिन्दी व्याकरण के मानकीकरण हेतु सरकारी प्रयासों की दृष्टि से देखा जाए तो इस दिशा में भारत सरकार ने 1954 ई. में सर्वप्रथम एक पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति ने आधुनिक सन्दर्भ में हिन्दी की भूमिका को दृष्टि में रखकर हिन्दी व्याकरण की रूपरेखा तैयार की। समिति के सदस्य डॉ. आर्येन्द्र शर्मा ने इस रूपरेखा के आधार पर अंग्रेजी में एक व्याकरण के रूप में पुस्तक प्रस्तुत किया जिसे शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने 1958 ई. में ' A Basic Grammar of a Modern Hindi' के नाम से प्रकाशित किया।


(ख) हिन्दी वर्तनी एवं देवनागरी का मानकीकरण


भारत सरकार द्वारा हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण को लेकर अनेक प्रयास किए गए हैं। मानकीकृत हिन्दी वर्णमाला, परिवर्धित देवनागरी एवं मानक हिन्दी वर्तनी से सम्बन्धित चार्ट व पुस्तिकाएँ आदि प्रकाशित कर वितरित किया जाना इस प्रकार के कार्यों के अनेक उदाहरण हैं, जैसे- 1959 ई. में भारत के शिक्षामंत्रियों के सम्मेलन में मानक देवनागरी को अन्तिम रूप देकर उसे केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रकाशित कराया जाना ।


हिन्दी वर्तनी के प्रचलित विविधता को दूर कर उसमें एकरूपता स्थापित करने के उदेश्य से शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार ने 1961 ई. में आठ सदस्यीय एक मानक हिन्दी वर्तनी समिति का गठन किया। 1967 ई. में शिक्षा मंत्रालय द्वारा 'हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण' नामक पुस्तिका को प्रकाशित किया गया। इसी प्रकार 1983 ई. में केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' नामक पुस्तिका का प्रकाशन किया जिसमें मानकीकरण से सम्बन्धित कुछ नये बिन्दु जोड़े गए। इसी तारतम्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में मानक हिन्दी वर्तनी के लिए निम्नलिखित नियम निर्धारित किए गए थे जिन्हें सन् 2012 में आईएस / IS 16500 : 2012 के रूप में लागू किया गया है।


(ग) देवनागरी लेखन तथा टंकण में एकरूपता


भ्रम-रहित देवनागरी का लेखन, जैसे: 'ख' को पहले 'व' लिखा जाता था जिसके 'र' एवं 'व' होने का भ्रम बना रहता था। अतः नये रूप 'ख' में इस प्रकार का भ्रम नहीं रहा। ऐसी ही भ्रमपूर्ण स्थिति कुछ संयुक्ताक्षरों को लेकर भी रहती है। अतः एकरूपता के लिए ऐसे वर्णों में परिवर्तन और मानकीकरण अनिवार्य है।


भारत में कंप्यूटर के प्रयोग के साथ ही हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में टाइपिंग हेतु भिन्न-भिन्न फॉण्टों का विकास किया गया । किन्तु इससे एक समस्या यह उत्पन्न हो गई कि एक फॉण्ट में लिखी गई सामग्री दूसरे फ़ॉण्ट मैं नहीं खुलती थी। यूनिकोड के आ जाने से हिन्दी टाइपिंग के क्षेत्र में एकरूपता का विकास हुआ है।