भारतीय साहित्य का स्वरूप - Nature of Indian Literature

भारतीय साहित्य का स्वरूप - Nature of Indian Literature

भारतीय साहित्य का आशय


'भारतीय साहित्य' शब्द भारत की सभी भाषाओं में लिखित और मौखिक साहित्य के भण्डार को कहा जाता है। संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं का साहित्य सम्मिलित रूप से भारतीय साहित्य है। यह एक समुच्चय है जो कि सभी भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का समेकित रूप है। भारतीय समाज को चित्रित करने वाला साहित्य ही भारतीय साहित्य है। केवल भाषापरक ही नहीं बल्कि इसकी पहचान इसके भारतीय सामाजिक सरोकार से बनी है। हर वह साहित्य जो भारतीय समाज के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आंचलिक पक्ष को उजागर करता है, भारतीय साहित्य कहलाने का हकदार है। भारतीयता को उसके समूचेपन के साथ प्रस्तुत करने वाला साहित्य ही भारतीय साहित्य हो सकता है इसलिए विदेशों में भारतीय स्थितियों और समाज की अन्तश्चेतना को प्रस्तुत करने वाला साहित्य भी भारतीय साहित्य की श्रेणी में स्थान प्राप्त करता है।


केवल संविधान में उल्लिखित भाषाएँ ही नहीं वरन अन्य भारतीय बोलियों और उपभाषाओं में रचित साहित्य भी भारतीय साहित्य के दायरे में आता है।


भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अंग्रेज़ी भाषा का उल्लेख नहीं है किन्तु भारतीय लेखकों द्वारा रचित अग्रेजी साहित्य, भारतीय साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। भारतीय रचनाकारों के द्वारा रचित अंग्रेज़ी साहित्य की अपनी एक विशिष्ट पहचान है और इसे विश्व स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त है। इस तरह भारतीय साहित्य के अन्तर्गत भारतीय भाषाओं के साथ साथ भारतीय अंग्रेज़ी साहित्य भी शामिल हो गया है।


भारतीय साहित्य की आधारभूत भारतीयता या एकता से परिचित होना तभी सम्भव होता है जब हम उसे अनेकता या भारतीय साहित्य की विविधता के सन्दर्भ में समझने का प्रयत्न करते हैं। पश्चिमी विचारधारा प्रत्येक समस्या को द्विआधारी प्रतिमुखता में बदल देती है और इसके विपरीत भारतीय मन जीवन की साकल्यवादी दृष्टि में विश्वास करता है और परिणामतः एकता - अनेकता जैसे विरुद्धों के समूह को एक दूसरे के संपूरक के रूप में स्वीकार करना सहज हो जाता है और स्थानीय, प्रान्तीय तथा सर्व भारतीयता तथा राष्ट्रीय अस्मिता में एक सजीव सम्बन्ध स्थापित करना सम्भव हो पाता है। भारतीय साहित्य अपनी एकता में विविधता को अंगीकार करते हुए प्रदर्शित करता है और यही विश्व को भारत की देन है। अनेकता से एकता की ओर ले जाने वाला यह मॉडल भारत की अनन्यता है।


भारतीय साहित्य भाषिक बहुवचनीयता के साथ ही एक मूलभूत ऐक्य के तत्त्व को धारण किए हुए है, यह एक निर्विवाद सत्य है । भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता को प्रामाणित करने के लिए अनेकों ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक साक्ष्य मौजूद हैं। भारतीय साहित्य की एकता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से सन् 1954 में साहित्य अकादेमी की स्थापना हुई। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने तब कहा कि भारतीय साहित्य एक है यद्यपि वह बहुत-सी भाषाओं में लिखा जाता है। (Indian literature is one though written in many languages.) डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने अपनी पुस्तक 'लेंगवेजेज़ एंड लिचर्स ऑफ इंडिया' में भारतीय साहित्य के लिए 'बहुवचन' शब्द का प्रयोग किया है।


साधारणतया भारतीय भाषाओं का उल्लेख हम एकवचन में करते हैं परन्तु जब भारतीय भाषाओं की बात की जाती है तब बहुवचन का प्रयोग होता है। भारतीय साहित्य में हमें विषयवस्तु की एकता मिलती है और शैली की विभिन्नता भी और साथ ही सांस्कृतिक विशिष्टताओं का एक वैविध्यपूर्ण संसार के साथसाथ साहित्यिक परम्पराओं के अपार उदाहरण। लेखकों द्वारा लगातार यह सिद्ध किया जाता रहा है कि भारत एक वैविध्यमय देश हैं जो बहुत सी जातियों, सभ्यताओं, प्रदेशों, धर्मों तथा भाषाओं का समाहार है। इसके किसी एक हिस्से का आविष्कार दूसरे हिस्से की खोज के लिए हमें रास्ता दिखाते हैं (हिन्दी का भक्तिकाव्य हमें अन्ततः तमिल आलवारों तक पहुँचा देता है) और इस तरह एक सम्पूर्ण भारत का पता लगता है। जब हम मध्ययुगीन भक्ति साहित्य का उदाहरण लेते हैं, तब हम देखते हैं कि यह सर्वभारतीय घटना 6-7वीं शती में तमिल के आलवारों द्वारा घटित होकर कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान में प्रसारित होते हुए 13-14वीं शती में कश्मीर तक फैल जाती है, और 15-16वीं शती तक मध्य देश को अपने घेरे में ले लेती है। श्री चैतन्य के फलस्वरूप भक्ति के इस रूप का नवरूपण होता है और बंगाल, असम तथा मणिपुर में इस आन्दोलन का प्रसार होता है। यह एक क्रान्ति थी, नवजागरण था जिसने भक्तों की कल्पना को झंझा की तरह झकझोर दिया। भक्ति साहित्य में अलग-अलग भाषाओं का प्रयोग हुआ है, इसमें अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति विद्यमान है। विभिन्न भाषाओं में रचित इस साहित्य में मौजूद विविधता के बावजूद एक आम विश्वास, आस्था, मिथक तथा अनुश्रुतियाँ इनमें विषयवस्तु की एकता को दर्शाती हैं। इसी क्रम में आधुनिककाल के नवजागरण का उदाहरण भी लिया जा सकता है। वैज्ञानिक बुद्धिवादिता, व्यक्ति स्वाधीनता तथा मानवतावाद 14वीं शती के यूरोपीय नवजागरण की विशेषताएँ थीं। भारत में समय की माँग के अनुसार इनके स्थान पर राष्ट्रवाद, सुधारवाद तथा पुनरुत्थानवाद का प्रसार हुआ। एक ही विषयवस्तु समाज सुधार को लेकर भारत की विभिन्न भाषाओं में पहला उपन्यास लिखा गया। तमिल - में सैमुअल वेदनायकम पिल्लई, तेलुगु में कृष्णम्मा चेट्टी, मलयालम में चंदु मेनन, हिन्दी में लाला श्रीनिवास दास, बांग्ला में मेरी हचिन्सन के उपन्यास की विषयवस्तु में समाज सुधार की ही प्रमुखता है। वस्तुतः इन्हीं सब कारणों से यह निष्कर्ष लिया जा सकता है कि कोई भी एक भारतीय साहित्य एक दूसरे भारतीय साहित्य से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है अतएव भारतीय साहित्य का कोई भी अध्ययन एक साहित्य के सन्दर्भ में अध्ययन के प्रति न्याय नहीं कर सकता। इन सारी विविधताओं का समाधान 'अनुवाद' के माध्यम से ही सम्भव है। भारतीय साहित्य की भाषिक विविधता को दूर करने में 'अनुवाद' की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।


भारतीय साहित्य की अवधारणा भाषा साहित्य के समीकरण पर आधारित नहीं क्योंकि यहाँ बहुत सी भाषाएँ हैं। हमारी बहुभाषिक स्थिति में एक लेखक बहुत सी भाषाओं में लिखता है। इसीलिए भारतीय साहित्य को किसी एक भाषा से सम्बद्ध करके चिह्नित नहीं किया जा सकता। जब कोई भारतीय साहित्य की बात करता है तब एक भौगोलिक क्षेत्र और राजनैतिक एकता की बात उठती है। भौगोलिक क्षेत्र की अपेक्षा भारतीयता का आदर्श हमारे लिए ज्यादा आवश्यक है। पण्डित नेहरू ने कहा है कि यह एक नेशन स्टेट नहीं है मगर एक राष्ट्र निर्मिति की स्थिति में है । रवीन्द्रनाथ ने कहा है कि हमारा राष्ट्र मात्र भौगोलिक सत्ता नहीं, मृण्मय नहीं, वह एक विचार का प्रतीक है, वह चिन्मय है। हमारा राष्ट्रवाद हमारे प्राचीन आदर्शों तथा गाँधीजी द्वारा प्रस्तुत बहुलवाद, आध्यात्मिक परम्परा, सत्य और सहिष्णुता के विचारों तथा नेहरू के समाजवादी तथा अपक्ष ग्रहण (non- alignment) के विचारों पर आधारित है। और सबसे बड़ी बात हमारे साहित्य की अवधारणा जनता तथा साहित्य के सम्पर्क की पहचान पर आधारित है। वस्तुतः भारत के साहित्य को केवल भाषा, भौगोलिक क्षेत्र और राजनैतिक एकता से ही पहचाना नहीं जाता मगर कहीं अधिक उस देश की जनता के आश्रय से पहचाना जाता है।