जनजातियों में जीवन साथी चयन की पद्धतियाँ - Methods of life partner selection among tribes

 जनजातियों में जीवन साथी चयन की पद्धतियाँ - Methods of life partner selection among tribes


जनजातीय संस्कृति एक समृद्ध संस्कृति है, जिसकी प्रकृति मौखिक एवं अनौपचारिक है। जनजातीय समुदायों की संस्कृति, भौगोलिक स्थिति एवं आर्थिक गतिविधियों को एक-दूसरे से पूर्णतः पृथक नहीं किया जा सकता अर्थात जहाँ एक तरफ संस्कृति में भौगोलिक अवस्थिति एवं अर्थोपार्जन के तौर तरीके सम्मिलित थे वहीं दूसरी तरफ यह संस्कृति उनके प्राकृतिक संसाधनों एवं आजीविका के साधनों का संवर्धन भी करती थी। इस प्रकार प्रत्येक जनजातीय समुदाय में जीवन साथी चयन के तरीके अलग एवं विशेष रहे हैं, मध्य प्रदेश की भील जनजाति में प्रचलित भगोरिया, विवाह की एक पद्धति है। जैसे जनजातियों में प्रमुख पद्धतियां निम्न प्रकार हैं -


(1) क्रय विवाह (Marriage by Purchase) जनजातियों में प्रचलित विवाह का वह तरीका, जिसमें वर पक्ष को कन्या मूल्य (Bride Price) चुकाना होता है क्रय विवाह कहलाता है। यह भारत की लगभग सभी जनजातियों में पाया जाता है। विशेष रूप से गोंड, भील, कूकी, ओरांव, हो, संथाल तथा नागा जनजातियों में प्रचलित है। पश्चिमी मध्य प्रदेश (अलीराजपुर एवं कुक्षी जिले) के भील, भिलाला बारेला तथा पटेलिया समुदायों में यह आज भी बहुत अधिक प्रचलन में है।


(2). सेवा विवाह (Marriage by Service) - जब विवाह करने का इच्छुक पुरूष, लड़की के घर रहकर परिवार के कार्यों में सहयोग करता है एवं अपनी सेवा प्रदान करता है, तो इस प्रकार के विवाह के तरीके को सेवा विवाह कहा जाता है। गोंड जनजाति में 'सेवा' प्रदान करने वाले व्यक्ति को लमनई एवं बैगा जनजाति में इसे लमसेना नाम से जाना जाता है।


(3). हरण विवाह (Marriage by Capture)- कुछ जनजातीय समुदायों में लड़की का हरण कर विवाह करने की परंपरा रही है। जैसे गोंड, भील, बिरहोर, खरिया, नागा, मुण्डा आदि। गोंड जनजाति में हरण विवाह को ‘पोसिओथुर' नाम से जाना जाता है। कुछ समुदायों में यह प्रतीकात्मक रूप से प्रचलित है, वास्तविक हरण विवाह प्रचलन में नहीं है।


(4) विनिमय विवाह (Marriage by Exchange/Negotiation) इस प्रकार के विवाह में एक परिवार के लड़के एवं लड़की का विवाह दूसरे परिवार के लड़के एवं लड़की से होता है। गोंड जनजाति में इस तरीके के विवाह को 'दूध लौटावा' कहा जाता है।


(5). पलायन विवाह (Ellopment Marriage )- इस तरीके को सहपलायन एवं परस्पर सहमति विवाह भी कहते हैं। जब लड़का एवं लड़की परस्पर सहमति से, भाग कर विवाह करते हैं तो इसे पलायन विवाह कहा जाता है। गौंड़, भील, हो तथा भील जनजाति की उप-जनजातियों में प्रचलित है। हो जनजाति मे इसे राजी खुशी विवाह के नाम से जाना है।


(6). हठ विवाह (Marriage by Intrusion) जनजातियों में प्रचलित विवाह के तरीकों में यह भी एक प्रमुख तरीका है, जिसमें विवाह का इच्छुक लड़का अथवा लड़की, उस घर में जाकर रहने लगता है जिस घर की लड़की अथवा लड़के से उसे विवाह करना होता है। उस घर के लोग उसे निकाले भी तो वह हठ पूर्वक उस घर में निर्धारित समयावधि तक रहता एवं रहती है। निश्चित समय तक सफलता पूर्वक उस घर में रह जाने के बाद समुदाय उन दोनों का विवाह करा देता है। कभी-कभी घर के लोग यातना भी देते हैं। अलग-अलग समुदायों में हठपूर्वक रहने की अवधि अलग-अलग है। यह सामान्यतः एक वर्ष से तीन वर्ष तक होती है। यह उरांव एवं हो जनजातियों में प्रचलित है। हो जनजाति इसे अनादर विवाह एवं उरांव इसे निर्बोलोक कहते हैं।


(7). परीक्षा विवाह (Trial Marriage ) कुछ जनजातियों में यह तरीका, विवाह करने वाले युवक के साहस एवं शौर्य की परीक्षा हेतु प्रचलित है। इसका एक आशय यह भी है कि विवाह करने वाला युवक, पत्नी की जिम्मेदारी निभाने एवं परिवार के संचालन में सक्षम है या नही। अलग-अलग समुदायों में परीक्षा के तरीके अलग-अलग होते है। भील जनजाति में प्रचलित 'गोल गधेड़ो' इसी प्रकार का तरीका है। नागा जनजाति में इसे सुइया-सुइया कहते हैं।


(8). परिवीक्षा विवाह (Probation Marriage )- कुछ जनजातियों में विवाह का यह तरीका प्रचलित है, जिसमें विवाह करने के इच्छुक लड़का एवं लड़की विवाह पूर्व पति-पत्नी निर्वाह प्रारंभ कर देते हैं एवं बाद में विवाह कर लेते हैं या अलग हो जाते हैं। यह परिवीक्षा अवधि कुछ समुदायों में सुनिश्चित होती है, कुछ में सुनिश्चित नहीं होती है, जैसे की गोंड जनजाति में इस प्रकार के तरीके से साथ रहने वाले व्यक्ति कई बार अपने बच्चों के विवाह के साथ अपना विवाह करते हैं। मणिपुर की कूकी जनजाति में इसका विशेष रूप से प्रचलन है।