थोड़ा संभलिए, आप बेटियां पाल रहे हैं!


शादी के केवल तीन महीने बाद आईपीएस सुरेंद्र कुमार और इसी तरह आईएएस मुकेश पांडे की आत्महत्या कहीं तो सोचने पर मजबूर करती हैं।
'कैकई' बेहद महान थीं। सौंदर्य की प्रतिमूर्ति, युद्ध कला में निपुण, राजकार्य में सर्वोत्तम लेकिन....उनकी एक भूल, इतिहास कभी भुला ना पाया। कैकयी में दशरथ के, भरत कैकई के प्राण थे और राम कैकयी को प्राणों से भी ज्यादा प्यारे। आवेश में आकर कैकई एक निर्णय करती हैं। उनके प्रियतम के प्राणपखेरू उड़ जाते हैं, राम वन-वन भटकते हैं और भरत प्राणों के पास होकर भी मन से बहुत दूर चले जाते हैं।
क्या मिला कैकयी को???
कुछ ना मिला तो हम क्या पा लेंगें???
आज बेटियों के पास खुला आसमान है, जिसमें उन्हें उड़ान भरनी है लेकिन हम उनके पंखों में नकली हवा क्यों भरें?????
ये मेरी बेटी नहीं बेटा है?????
कह-कह उसका अस्तित्व, उसकी सहजता, सरलता क्यों खत्म करें?????
लड़कियां नदियों से बहा करती हैं, झरनों सी झरा करती हैं। हम उनके अंदर स्वार्थ का बीज रोपने की कोशिश क्यों करते हैं?????
याद रखिए.हमारी बेटियां हैं तो कल है।
मेरे पिता ने साफ कहा था। तेरा आंचल तेरा परचम है, पर भूलना नहीं परचम ही तेरा आंचल भी है। हम क्यों नहीं अपनी बेटियों को यह सीख देते कि सहजता से दोनों परिवारों के बीच का सेतु बन जाएं।
ससुराल की जिमीदारियां संभालें। विशेष हाल में पीहर भी संभालें। एस न हो की पीहर को ही प्राथमिकता बनें रखे। आपका पीहर आपके भाई-भाभियों की जिम्मेदारी हैं। ऐसा न हो तो पीहर संभाले पर ससुराल की उपेक्षा किसी हल में न करें। बेटियों की संवेदनाओं को खत्म कर उन्हें रोबट क्यों बनाएं??????