वैयक्तिक सेवा कार्य - Social Case Work.


      आधुनिक समाज कार्य का तात्पर्य एक प्रकार की व्यावसायिक सेवा है जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह की सहायता की जाती है जिससे वह संतोषजनक संबंध स्थापित कर सके और इच्छाओं एवं क्षमताओं के अनुसार जीवन-स्तर को प्राप्त कर सके।समाज कार्य व्यक्ति की सहायता अपनी विशेष प्रणालियों द्वारा करता है। ये 6 प्रणालियाँ या पद्धतियाँ हैं जिनमें से वैयक्तिक सेवा का कार्य, सामाजिक सामूहिक कार्य, सामुदायिक संगठन प्राथमिक हैं और समाज कल्याण प्रशासन, सामाजिक अनुसन्धान, सामाजिक क्रिया द्वितीयक हैं। व्यक्ति की सहायता प्रत्यक्ष रूप से प्रथम तीन पद्धतियों द्वारा ही की जाती हैं परन्तु इसी कार्य में द्वितीयक पद्धतियों से सहायता ली जाती है।
एक व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं कि उसे केवल एक ही पद्धति की आवश्यकता हो। उसके साथ कई या अन्य सभी पद्धतियों का उपयोग आवश्यक हो सकता है। अतः एक स्थिति में सभी पद्धतियां अन्तः-सम्बन्ध रखती हैं।    



  समाज कार्य का उद्देश्य सुगठित समाज की रचना करना तथा व्यक्ति का समाज में इस प्रकार से समायोजन करना है जिससे वह अपना तथा समाज का कल्याण कर सके। अतः जब कार्यकर्ता एक व्यक्ति के साथ कार्य करता है तो उसे सामाजिक वैयक्तिक कार्य, जब समूह के माध्यम से व्यक्ति की सहायता करता है तो उसे सामूहिक कार्य और जब सम्पूर्ण समुदाय की सहायता करता है तो उसे सामुदायिक संगठन कार्य कहते हैं। अन्य तीन प्रणालियाँ इन प्रणालियों में सहायता प्रदान करती हैं। यहाँ पर हम इनका सूक्ष्म वर्णन, समझने के उद्देश्य से, करेंगे।         



उन्नीसवीं शताब्दी तक व्यक्ति का दुःख व कष्ट उसके कर्मों का फल समझा जाता था तथा विश्वास किया जाता था कि उसे इन दुःखों व कष्टों को भोगना ही पड़ेगा। व्यक्ति द्वारा इन कष्टों व दुःखों को दूर कर पाना सम्भव नहीं है। परन्तु जैसे-जेसे ज्ञान का विकास हुआ, इस विचारधारा में परिवर्तन आया। एडवर्ड डेनिसन, सर चार्ल्स लाथ इत्यादि विद्वानों ने वैयक्तिक सहायता की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया मेरी रिचमन्ड पहली कार्यकर्ता थीं जिन्होंने सन् 1917 ई0 में वैयक्तिक सेवा कार्य को परिभाषित करने का प्रयास किया। उनके अनुसार वैयक्तिक सेवा कार्य एक कला है जिसके द्वारा स्त्री, पुरुष और बालकों के सामाजिक सम्बन्धों में अपेक्षाकृत अधिक समायोजन लाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार वैयक्तिक कार्य व्यक्तित्व-विकास की एक प्रक्रिया है।


हैमिल्टन आदि विद्वानों ने वैयक्तिक कार्य को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखता है जो व्यक्तित्व (आन्तरिक सम्बन्ध) और सामाजिक परिस्थितियों (बाह्य सम्बन्ध) में समायोजन स्थापित करने का प्रयास करता है।  


         अतः यह बात स्पष्ट है कि इस विधि द्वारा केवल व्यक्ति की सहायता की जाती है तथा वहीं केन्द्र-बिन्दु होता है। इस विधि से व्यक्ति की आन्तरिक एवं वाह्य क्षमताओं का ज्ञान होता है। कार्यकर्ता व्यक्ति की इस प्रकार से सहायता करता है जिससे वह अपनी क्षमताओं में आवश्यकतानुसार विकास करके बाह्य जगत् से समायोजन स्थपित कर सके तथा अपना स्थान प्राप्त करके भूमिका निभा सके। परन्तु यहाँ पर एक बात ध्यान देने की है कि वैयक्तिक कार्य में केवल व्यक्ति तक ही कार्य सीमित नहीं रहता है। चूँकि व्यक्ति पर बाह्य कारक प्रत्येक क्षण अपना प्रभाव डालते हैं। इसलिए बाह्य कारकों के सम्बन्ध में भी यह कार्य करता है। वह उन सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक कारकों का पता लगाता है जिनके कारण व्यक्ति कष्ट अनुभव करता है इसके उपरान्त वह ऐसी शक्तियों का विकास करता है जिनसे स्वयं व्यक्ति उन पर विजय प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार जहां एक ओर व्यक्ति की समस्याओं को सुलझाया जाता है वहीं दूसरी ओर समाज को स्वस्थ नागरिक प्रदान करने में सहायता की जाती है। 


 वैयक्तिक सेवा कार्य की प्रक्रिया में कार्यकर्ता का सम्बन्ध मुख्यतः तीन कार्यों से रहता है :- 

(1) सेवार्थी की समस्या के सम्बन्ध में आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण से सम्बन्धित आँकड़ों का संकलन एवं अध्ययन। 

(2) समस्या का वैयक्तिक प्रविधियों द्वारा निदान। 

(3) बाह्य तथा आन्तरिक साधनों द्वारा उसका उपचार।      

समस्या का अध्ययन कार्यकर्ता निरीक्षण, अन्वेषण तथा वैयक्तिक इतिहास-वृत्त की प्रविधियों के आधार पर करता है। निदान का कार्य भी साथ ही चलता रहता है। साधारणतया कार्यकर्ता निदान में मूल्यांकन, कारणान्वेषण तथा श्रेणीकरण के चरणों में कार्य करता है। कार्यकर्ता व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा समस्या का मूल्यांकन करता है। वह देखता है कि समस्या क्या है, उसका स्वरूप क्या है, वास्तविकता क्या है तथा क्या कारण है जिससे सेवार्थी अधिक पीड़ित है। वह सेवार्थी के प्रयासों एवं उसकी क्षमताओं को भी देखता है। वह बाह्य तथा आन्तरिक कारकों का कारण क्या है तथा वास्तविक समस्या क्या है। इसके पश्चात् वह निश्चित करता है कि सेवार्थी को किस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है। उपर्युक्त बातें निश्चित कर लेने के उपरान्त उपचार कार्य प्रारंभ होता है।