समाज कार्य में प्रत्यक्ष उपचार की प्रविधियॉ -Treatment In Social Work | Case Work | Group Work | Community Organization
प्रत्यक्ष उपचार से हमारा अभिप्राय साक्षात्कारो की एक ऐसी श्रृंखला से है जो संवेगात्मक संतुलन को बनाये रखने, रचनात्मक निर्णयों को लेने तथा अभिवृद्धि अथवा परिवर्तन के लिए उपयुक्त मनोवृत्तियों को उत्पन्न करने अथवा संबल प्रदान करने के लिए आयेजित किए जाते हैं। इसके अंतर्गत मनोवैज्ञानिक समर्थन को भी सम्मिलित किया जाता है क्योंकि यह वैयक्तिक कार्य प्रणालियों के मनोसामाजिक सामंजस्य में एक महत्वपूर्ण कारक होता है। प्रत्यक्ष चिकित्सा में भौतिक साधनों के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है इसीलिए इसे प्रत्यक्ष उपचार/चिकित्सा कहते हैं। परन्तु वैयक्तिक सेवा कार्य में मनोविश्लेषण का अधिक सहारा लेते हैं।
प्रत्यक्ष उपचार की प्रविधियॉ
1. मंत्रणा
2. चिकित्सकीय साक्षात्कार
3. मनोवैज्ञानिक आलम्बन
4. स्पष्टीकरण
5. अन्तर्दृ ष्ट का विकास
6. निर्वचन
7. सुझाव
8. पुर्नवासन
9. अनुनय
10. पुनर्शिक्षा
11. सामूहिक चिकित्सा
1. मंत्रणा - यह एक शैक्षिक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य सेवार्थी को उसकी परिस्थिति से सम्बन्धित विभिन्न मसलों का विवेकपूर्ण ढंग से विवेचना करने, उसकी समस्या को स्पष्ट करने, वास्तविकता के साथ उसके संघर्षो को सामने लाने, विभिन्न प्रकार के क्रिया सम्बन्धी विकल्पो की व्यावहारिकता पर विचार विमर्श करने तथा विभिन्न विकल्पो में चयन करने के उत्तरदायित्व को ग्रहण करने की दृष्टि से सेवार्थी को स्वतंत्रता प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है। वर्तमान समय में परामर्श शब्द का प्रयोग मनमाने ढंग से मार्गदर्शन से सम्बन्धित विविध प्रकार की क्रियाओं को सम्बोधित करने के लिए किया जाता है। यहॉ पर परामर्श शब्द का प्रयोग ऐसे वैयक्तिक परामर्श को सम्बोधित करने के लिए किया जाता रहा है जिसके लिए व्यावसायिक शिक्षा, प्रशिक्षण तथा साक्षात्कार सम्बन्धी अनुभव की आवश्यकता होती है । मंत्रणा के अन्तर्गत सूचना का प्रदान किया जाना, परिस्थिति का स्पष्ट किया जाना तथा इससे सम्बन्धित विभिन्न मुददो का विश्लेषण किया जाना तथा क्रिया से संबंधित विभिन्न चरणों का विवेचन किया जाना सम्मिलित है। यदि सामाजिक समस्या से कोई अन्य व्यक्ति सम्बन्धित होता है तो मंत्रणा मनोचिकित्सा का स्वरूप ग्रहण करने लगती है । अपने अधिक सरल स्वरूपों में मंत्रणा का उददेश्य बौद्धिक ज्ञान प्राप्त करना होता है ।
2. चिकित्सकीय साक्षात्कार - इस प्रकार के साक्षात्कार का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि सेवार्थी किसी प्रकार की बीमारी अथवा असमर्थता का शिकार होता है। इस प्रकार के साक्षात्कार के दौरान सेवार्थी को किसी शान्तिपूर्ण कमरे में बैठाकर कार्यकर्ता उसे अपनी समस्या को बिना किसी बाधा के व्यक्त करने के लिए कहता है। बीच-बीच में कार्यकर्ता सेवार्थी को संवेगात्मक भावनायें व्यक्त करने में सहारा भी प्रदान करता है। इस प्रकार के साक्षात्कार के परिणामस्वरूप सेवार्थी के कष्टदायी विचारों की अभिव्यक्ति हो जाती है और वह आराम महसूस करने लगता है। इसके अतिरिक्त चिकित्सक सहचर्य का विश्लेषण कर सेवार्थी के मानसिक संघर्ष की तह तक पहुॅचता है। स्वप्न विश्लेषण द्वारा अतृप्त इच्छाओं को समझा जाता है।
3. मनोवैज्ञानिक आलंबन - मनोवैज्ञानिक आलंबन प्रदान करते हुए वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता सेवार्थी को भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है । उसकी भावनाओं को समझता है तथा स्वीकृति प्रदान करता है । सेवार्थी में समस्या-समाधान के लिए अपेक्षित रूचि उत्पन्न करता है । वह अपने द्वारा प्रदान की गयी सहायता के प्रकार को स्पष्ट करता है। समस्या-समाधान की क्षमता उत्पन्न करता है तथा आवश्यकतानुसार योजना तैयार करने में सहायता प्रदान करता है। मनोवैज्ञानिक आलंबन के परिणामस्वरूप सेवार्थी को प्रत्यक्ष रूप से उत्साह मिलता है और उसमें अपनी समस्या का समाधान करने की योग्यता में विश्वास उत्पन्न होने लगता है । जब मनोवैज्ञानिक आलम्बन चिकित्सा का मुख्य साधन होता है उस स्थिति में कर्ता तथा सेवार्थी के मध्य घनिष्ठ तथा पिता-पुत्र ऐसे सम्बन्ध स्थापित होते हैं ‘‘मनोवैज्ञानिक आलम्बन का सेवार्थी द्वारा ज्ञान विकास करने पर बल न होकर निर्देशन, पुनः विश्वासीकरण द्वारा तनाव को दूर करके उसके अहं शक्ति को पुष्टीकरण पर बल देता है ।’’
4. स्पष्टीकरण - डा0 एडवर्ड बाइब्रिंग के शब्दो में, स्पष्टीकरण रोगी को कुछ मनोवृत्तियों, भावनाओं के प्रति सचेत बनाते हुए अथवा इसकी यथार्थ बनाम रागात्मक अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसे स्वयं अपने आपको तथा पर्यावरण को एक अधिक विषयात्मक ढंग से देखने की अनुमति प्रदान करता है जिससे अधिक अच्छा नियंत्रण हो जाता है। स्पष्टीकरण की प्रक्रिया के दौरान सेवार्थी को पर्यावरण अथवा उससे संबंधित महत्वपूर्ण व्यक्तियों के संबंध में ऐसी सूचनायें प्रदान की जाती है जिनकी जानकारी पहले से सेवार्थी को नहीं होती तथा जिनके बिना वह न तो समस्या का और न ही अपनी शक्तियों का और न ही विभिन्न प्रकार के उपलब्ध विकल्पों का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस प्रविधि के परिणामस्वरूप सेवार्थी स्वयं अपने आप को, अपनी समस्या को, अपने से सम्बन्धित महत्वपूर्ण व्यक्तियों को और अपने पर्यावरण को विषयात्मक रूप से समझने लगता है । 5. निर्वचन एक उपचारक के रूप में वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता सामाजिक अथवा वैयक्तिक कारकों और उनके बीच होने वाली अन्तर्क्रिया के निर्वचन का प्रयोग अत्यधिक सतर्कता के साथ करता है। निर्वचन के दौरान वह स्पष्टीकरण तथा हस्तान्तरण के अन्तर्गत अहम् को समर्थन प्रदान करने की प्रविधियों का प्रयोग करता है। ऐसा करते समय वह रक्षायुक्तियों में हस्तक्षेप बहुत कम करता है जब तक कि ये नकारात्मक न हो तथा जब तक कि ये बहुत अधिक गतिरोध उत्पन्न न करती हो और नकारात्मक हस्तान्तरण न होता हो । इस सम्बन्ध में कोई अन्तिम सीमा रेखा नही खीची जा सकती क्योंकि उपचार की प्रक्रिया में विभिन्न रोगियों को भिन्न-भिन्न प्रकार की अन्तर्दृष्ट की आवश्यकता होती है। निर्वचन के परिणामस्वरूप आत्म चेतना तो किसी न किसी स्तर पर उत्पन्न होती ही है किन्तु इससे अधिक महत्वपूर्ण परिणाम तभी प्राप्त किये जा सकते हैं जब सेवार्थी इसके लिए तैयार हो। रक्षातंत्र में घुसपैठ करने के अपरिपक्व प्रयासों की उपेक्षा की जा सकती है । इनके प्रति गतिरोध प्रदर्शित किया जा सकता है तथा इनसे चिंता स्थितियॉ उत्पन्न हो सकती है यद्यपि भावनाओं को व्यक्त कराते हुए तथा पर्यावरण में सुधार करते हुए भावनाओं एवं व्यवहार में परिवर्तन, विशेष रूप से छोटे बच्चो के, बिना चेतन अर्न्तदृष्टि के सम्भव है किन्तु परिवर्तन के साथ साथ कुछ न कुछ आत्मचेतना विकसित होती ही है। निर्वचन किस समय किया जाये, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है ।
6. सुझाव - चिकित्सा की एक पद्धति के रूप में सुझाव का प्रयोग प्राचीनकाल से किया जा रहा है। ऐसा करते समय कार्यकर्ता ,सेवार्थी के सामने कुछ सुझाव रखता है और इन सुझावो को मानना अथवा न मानना सेवार्थी की इच्छा पर छोड़ देता है । सुझाव की पद्धति अत्यधिक उपयोगी होती है । चिन्ता तथा अवसाद की स्थिति में रोगी को मनोवैज्ञानिक समर्थन की अत्यधिक आवश्यकता होती है और इन नाजुक क्षणों में यदि उसे सुझाव के रूप में बाह्य सहायता प्राप्त होती है तो उसे बड़ी राहत मिलती है । इसी प्रकार आर्थिक संकट, वृद्धावस्था, संघर्षात्मक स्थितियों इत्यादि में सुझाव, सेवार्थी के सामने विकल्प प्रस्तुत करते हुए उसके तनाव को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं ।
7. पुनराश्वासन - पुराश्वासन के माध्यम से विभिन्न ढंगों का प्रयोग करते हुए सेवार्थी में इस बात का विश्वास उत्पन्न किया जाता है कि वह समस्या से मुक्त हो जायेगा। पुनराश्वासन का प्रयोग करता हुअ एक वैयक्तिक समाज कार्यकता,र् सेवार्थी में उपचार के प्रति तथा समस्या के प्रति विश्वास उत्पन्न करता है और इस प्रकार उसे उपचार की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है। पुनराश्वासन का प्रयोग करते हुए वह सेवार्थी को यह स्पष्ट रूप से बताता है कि उसकी समस्या क्या है? इसके कारण क्या हैं ? यह किन लक्षणों के रूप में व्यक्त हो रही है तथा इसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है और विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करते हुए सेवार्थी को इस बात का आश्वासन देता है कि वह निश्चित रूप से समस्या मुक्त हो जायेगा ।
8. पुनर्शिक्षा - शिक्षा की प्रक्रिया चाहें वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में, किसी भी समस्या पर क्यों न हो रही हो, व्यक्ति में वास्तविकता को समझने की क्षमता उत्पन्न करती है। शिक्षा के दौरान वास्तविकता के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण एवं विवेचन करते हुए वस्तुस्थिति से अवगत करने का प्रयास किया जाता है। वैयक्तिक समाज कार्य के दौरान वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता पुनर्शिक्षा का प्रयोग करते हुए समस्या के लक्षणों एवं कारणों को स्पष्ट करता है तथा चेतन स्तर पर पायी जाने वाली मानसिक स्थिति तथा इसका प्रयोग किये जाने के परिणामस्वरूप सेवार्थी को होने वाली हानियों की चर्चा करता है ।
9. सामूहिक चिकित्सा - सामूहिक चिकित्सा एक अत्याधिक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग किसी भी मनश्चिकित्सकीय प्रक्रिया को सम्बोधित करने के लिए किया जाता है जिसमें व्यक्तियों के समूह किसी चिकित्सक की देखरेख में मिलते हैं और ऐसी क्रियाओं में भाग लेते हैं जिनके दौरान उन्हें अपनी संवेगात्मक भावनाओं को व्यक्त करने, अपनी कमियों को समझने, दूसरों की आशाओं एवं प्रत्याशाओं के अनुसार समायोजन करने के अवसर प्राप्त होते हैं। सामूहिक चिकित्सा दो प्रकार की होती है -
1. प्रकार्यात्मक चिकित्सा जिसके अन्तर्गत सेवार्थी को विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को आयेजित करते हुए इससे सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं में सम्मिलित कराते हुए चिकित्सा की जाती है।
2. सामाजिक सहचर्य, जिसके दौरान अनेक सेवार्थियों को एक साथ रखते हुए, भोजन कराते हुए, आमोद-प्रमोद कराते हुए इत्यादि के माध्यम से उपचार किया जाता है ।
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