निर्धनता के दुष्चक्र की विशेताएँ : Characteristics of the vicious circle of poverty

निर्धनता के दुष्चक्र की विशेताएँ : Characteristics of the vicious circle of poverty

निर्धनता के दुष्चक्र की विशेताएँ : Characteristics of the vicious circle of poverty


1 निर्धनता का कारण व परिणाम स्वयं निर्धनता है.


2 निर्धनता अपने प्रारम्भिक बिंदु से अंतिम बिंदु तक वृत्ताकार ढंग से क्रिया व प्रतिक्रिया करती हुई बढती है.


• 3 इसका प्रभाव संचयी है.


4 यह एक लगातार प्रक्रिया है जो सम्बंधित घटकों को सदैव नीचे की ओर धकेलती


5 निर्धनता के दुष्चक्र कि शुरुआत एक नकारात्मक घटक की उपस्थिति से होती है.


• प्रो. रागनर नर्कसे का मत है कि पूँजी एवं पूँजी निर्माण की कमी, मांग व पूर्ति दोनों पक्षों के आधार पर होती है


पूर्ति पक्ष (Supply Side)


• माँग पक्ष (Demand Side )


पूर्ति पक्ष (SUPPLY SIDE)


कम उत्पादकता


कम पूँजी


कम आय


कम विनियोग


कम बचत 


इसका छवि लगाओ।



उपरोक्त दोनों स्रोत एक ही बिंदु ; कम उत्पादकता अर्थात निम्न वास्तविक आय पर आकर मिल जाते है.


प्रो. मायर एवं बाल्डविन के अनुसार के


अल्प विकसित प्राकृतिक साधन निर्धनता के कारण व परिणाम दोनों हीं है.


प्रो. के. एन. भट्टाचार्य के अनुसार

निर्धनता व आर्थिक पिछड़ापन दो पर्यायवाची शब्द हैं. एक देश इसलिए निर्धन होता है क्योंकि वह अल्पविकसित है. वह अल्पविकसित इसलिए है क्योंकि वह निर्धन है और अल्पविकसित इसलिए बना रहता है क्योंकि उसके पास विकास को गति प्रदान करने के लिए वांछित साधनों का अभाव होता है. निर्धनता एक अभिशाप है परन्तु इससे बड़ा अभिशाप यह है कि निर्धनता अपनी जननी स्वयं हैं.


जॉन केनैथ गेलबर्थ के अनुसार


1 लोग इसलिए गरीब है क्योंकि उन्हें गरीब रहना पसंद है. 2 दरिद्र देश प्राकृतिक रूप से ही दरिद्र हैं.


3 कोई देश इसलिए गरीब है क्योंकि वह औपनिवेशिक उत्पीड़न का शिकारे रहा है.


4 गरीब वर्ग शोषण का परिणाम है.


5 गरीबी का कारण अपर्याप्त पूँजी है. 6 अत्यधिक जनसँख्या गरीबी का कारण है.


निर्धनता के दुष्चक्र की प्रो. गुन्नार मिर्डाल द्वारा समीक्षा.


• यह आवश्यक नहीं है कि दुष्चक्र सदैव एक ही दिशा अर्थात नीचे कि ओर ही अग्रसर रहे.


• एक निर्धन देश उत्तरोत्तर निर्धन ही होता जाएगा यह मानना भयंकर भूल होगी.


इस दुष्चक्र को कैसे तोड़ा जाए?


1 संतुलित विकास अर्थात ज्यादा से ज्यादा उद्योगों में पूँजी काँ विनियोग करना चाहिये.


2 घरेलू क्षेत्र में पूँजी निर्माण को गति प्रदान करना.


3 विकसित तकनीक का प्रयोग. 4 उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण उपयोग.


5 उद्यमशीलता की कमी के कारण सरकारी क्षेत्र को बढावा देना.


6 मौद्रिक उपायों को लागू करना.


7 शिक्षा का प्रसार और सामाजिक व संस्थागत ढाँचे में परिवर्तन करना.