नीति आयोग की आलोचना - Criticism of NITI Aayog
नीति आयोग की आलोचना - Criticism of NITI Aayog
नीति आयोग की विभिन्न दृष्टिकोणों से आलोचना की गई है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण आलोचनाओं का उल्लेख निम्नानुसार है -
• योजना आयोग को विघटित और नीति आयोग का गठन करते समय केंद्रीय सरकार ने राज्यों और राष्ट्रीय विकास परिषद जैसी संस्थाओं से विचारविमर्श नहीं किया। अगर राज्यों के साथ और राष्ट्रीय विकास परिषद जैसी संस्थाओं में इस बात की चर्चा होती तो हो सकता है कि कुछ बेहतर रिणाम आते। यह स्वयं में सहकारी संघवाद के विरूद्ध है।
• इसका गठन भी योजना आयोग की भांति केबिनोट नोट के आधार पर हुआ है। अपने उद्देश्योंमें असफल रहने वाले मंत्रालय के विरूद्ध यह कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है।
• यह संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
• इसका गठन संवैधानिक/कानूनी संशोधन के जरिए होना चाहिए था और लंबे समय अवधि के लिए नगर्न करने देना चाहिए। अगर ऐसा न हो तो एक पार्टी की सरकार बदल जाने पर कोई अन्य पार्टी इस आयोग को बदल भी सकती है।
• योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा कुछ राज्यों को विशेष श्रेणी में रखा जाता था और अलग से सहायता राशि प्रदान की जाती थी। नीति आयोग ऐसी परम्पराओं को कैसे कायम रख पाएगा यह अभी स्पष्ट नहीं है।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी (एनआईपीएफपी) के पूर्व निदेशक एम.जी.राव (2015) ने इंगित किया कि नीति आयोग की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसके उद्देश्यएवं कार्य कितनी स्पष्टता से प्रदर्शित किए जाते हैं, इसे क्या शक्तियां और स्तर प्रदान किया जाता है और किस तरह की क्षमता वाले लोग इसे संचालित करते हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. प्रभात पटनायक (2015) ने नीति आयोग को नव-उदारवादी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में केंद्र द्वारा राज्यों पर निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करने के दबाव को प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार नीति आयोग चाहे सहकारी संघवाद की चर्चा करता हो परंतु उसके द्वारा जिन नीतियों का उल्लेख किया गया है वह राज्यों को केंद्र पर आश्रित करेगा और केंद्र उन्हें निजी क्षेत्र की ओर धकेलेगा।
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