पाठ्यचर्या : अर्थ, संकल्पना, प्रकृति, क्षेत्र एवं विशेषताएं - Curriculum : Meaning, Concept, Nature, Scope and Characteristics

पाठ्यचर्या : अर्थ, संकल्पना, प्रकृति, क्षेत्र एवं विशेषताएं - Curriculum : Meaning, Concept, Nature, Scope and Characteristics

पाठ्यचर्या : अर्थ, संकल्पना, प्रकृति, क्षेत्र एवं विशेषताएं - Curriculum : Meaning, Concept, Nature, Scope and Characteristics


पाठ्यचर्या: संकल्पना


●पाठ्यचर्या एक ऐसी धुरी के रूप में है जिसके चारो ओर कक्षा के विविध कार्य तथा विद्यालय के समस्त क्रियाकलाप विकसित किये जाते हैं।


●पाठ्यचर्या विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था का केंद्र बिंदु है। विद्यालय में उपलब्ध सभी संसाधन जैसे विद्यालय भवन, विद्यालय के अन्य उपकरण, पुस्तकालय की पुस्तकें तथा अन्य शिक्षण सामग्री का एक मात्र उद्देश्य पाठ्यचर्या के प्रभावी क्रियान्वयन में सहयोग देना है।


पाठ्यचर्या शिक्षा का आधार है। पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। यह एक ऐसा साधन है जो छात्र तथा अध्यापक को जोड़ता है।


• अध्यापक पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है।


परिभाषा


• पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में सबसे लोकप्रिय परिभाषा कनिंघम की मानी जाती है कनिंघम के अनुसार “पाठ्यचर्या अध्यापक रुपी कलाकार (artist) के हाथ में वह साधन (tool) है जिसके माध्यम से वह अपने पदार्थ रुपी शिष्य (material) को अपने कलागृह रुपी स्कूल (studio) में अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार विकसित अथवा रूप (mould) प्रदान करता है। "



पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम में अंतर


• पाठ्यचर्या शैक्षिक व्यवस्था का अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण अंग है । पाठ्यचर्या की अवधारणा के सन्दर्भ में प्रायः विद्वानों में एकमत राय नहीं है । पाठ्यचर्या को लोग पाठयचर्या (syllabus) या विषय वस्तु (प्रचलित ये शब्द अलग अलग अर्थ और सन्दर्भों को प्रकट करते हैं । अतः पाठ्यचर्या को शाब्दिक, संकुचित और व्यापक तीनों अर्थों में समझने की जरुरत है | course of study) या जैसे नामों से भी संबोधित करते हैं। पाठ्यचर्या के लिए तब इसके सही स्वरूप को हम समझ सकते हैं ।


पाठ्यचर्या शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- पाठ्य एवं चर्या । पाठ्य का है- पढ़ने योग्य अथवा पढ़ाने योग्य और चर्या का अर्थ है - नियम पूर्वक अनुसरण । इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य)। विषय वस्तु और क्रियाओं का नियम पूर्वक अनुसरण ।









पाठ्यचर्या के लिए अंग्रेजी में करीकुलम (Curriculum) शब्द का प्रयोग किया जाता है । यह शब्द लैटिन भाषा के क्यूरेरे (Currere) से बना है जिसका अर्थ है रनवे (Runway) या रेस कोर्स (Race Course) अर्थात् दौड़ का रास्ता या दौड़ का क्षेत्र अर्थात् किसी निश्चित लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मार्ग पर दौड़ना इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में पाठ्यचर्या छात्रों के लिए दौड़ का रास्ता या दौड़ के मैदान के समान है जिस पर चलते हुए छात्र अपने वांछित शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा करता।



पाठ्यचर्या में शिक्षण के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक तीनों पक्ष शामिल होते


पाठ्यक्रम :


संकुचित अर्थ में पाठ्यचर्या के लिए एक अन्य शब्द सिलेबस (syllabus) या पाठयक्रम शब्द भी प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ कोर्स ऑफ स्टडी या कोर्स ऑफ टीचिंग भी है ।


पाठयक्रम दो शब्दों से मिलकर बना है । पाठ्य + क्रम अर्थात् किसी विषय या अध्ययन की वह विषयवस्तु जो क्रम से व्यवस्थित हो पाठयक्रम कहलाता है ।


• पाठयक्रम में केवल ज्ञानात्मक पक्ष से सम्बंधित तथ्य ही क्रमबद्ध होते हैं।


पाठ्यचर्या जहाँ व्यापक संकल्पना है, वहीं पाठयक्रम सीमित संकल्पना है।


पाठ्यचर्या में नियोजित शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय और विद्यालय बाहर, जो कुछ भी संपादित किया जाता है, वह सब समाहित होता है, जबकि पाठयक्रम केवल विद्यालय की सीमा में कक्षा के भीतर विकसित किये जाने वाले विभिन्न विषयों के ज्ञान की रूपरेखा मात्र होता है ।


पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग कक्षा विशेष के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है; जैसे- कक्षा 8 के लिए हिंदी का पाठ्यचर्या; परन्तु पाठयक्रम शब्द का प्रयोग कक्षा विशेष के किसी विषय विशेष तक सीमित होता है; जैसे- कक्षा 8 के लिए हिंदी का पाठयक्रम ।



पाठ्यचर्या संपूर्ण विद्यालयी जीवन की चर्या है जबकि पाठयचर्या पठनीय वस्तु का केवल एक क्रम मात्र होता है ।


पाठ्यचर्या अपने आप में सम्पूर्ण है, जबकि पाठयक्रम, पाठ्यचर्या का एक अंग मात्र है।


पाठ्यचर्या से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास संभव है, जबकि पाठयक्रम से व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष या किसी एक अंग का ही विकास संभव है ।


•पाठ्यचर्या और पाठयक्रम में पूर्ण और अंश का भेद होता है।










परिभाषाएँ


• क्रो और क्रो के अनुसार- “पाठ्यचर्या में विद्यार्थियों के विद्यालय या उसके बाहर के वे सभी शामिल हैं जो अध्ययन कार्यक्रम में रखे जाते हैं जिसका आयोजन बालकों के मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक स्तर पर विकास में सहायता करते हैं।”


• के० जी० सैयेदेन अनुसार- “पाठ्यचर्या वह सहायक सामग्री है जिसके द्वारा बच्चा अपने के आप को उस वातावरण के अनुकूल ढालता है, जिसमें 



• डंकन ग्रिजेल के अनुसार- “विद्यालयी पाठ्यचर्या समाज की परम्पराओं, पर्यावरण एवं आदर्शों का प्रतिरूप है ।” (The school curriculum is the reflection of the traditional environment and ideas of the society)


कैसवेल के अनुसार- “बालकों एवं उनके माता-पिता तथा अध्यापकों के जीवन में आने वाली समस्त क्रियाओं को पाठ्यचर्या कहा जाता है। बालकों के कार्य करने के समय जो कुछ कार्य होता है उस सबसे पाठ्यचर्या का निर्माण होता है। वस्तुतः पाठ्यचर्या को गतियुक्त (dynamic) वातावरण कहा गया है। "



पाठ्यचर्या : प्रकृति


पाठ्यचर्या के लक्ष्य या प्रयोजन उससे सम्बंधित शैक्षिक उद्देश्यों से निर्दिष्ट होते हैं।


अध्यापक अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए एक ही प्रकार के अधि अनुभवों का नियोजन करता है फिर भी अपने अधिगम अनुभवों तथा अपनी सहभागिता के स्तर एवं गुणवत्ता के कारण छात्रों में भिन्नता दिखाई देती है उनमें व्यक्तिगत भेद तथा सामाजिक पृष्ठभूमि की विभिन्नता एक प्रकार के परिणाम के लिए उत्तरदायी है यही कारण है कि एक ही कक्षा के प्रत्येक छात्र की वास्तविक पाठ्यचर्या उसी कक्षा के अन्य छात्रों की पाठ्यचर्या कि अपेक्षा भिन्न होती है ।


• किसी दी गयी पाठ्यचर्या के उद्देश्य, आधार तथा मापदंड की दृष्टी से अध्यापक में उपयुक्त व्यावसायिक निर्णय लेने कि क्षमता निहित होनी चाहिए । प्रत्येक अधिगमकर्ता की अपनी वास्तविक पाठ्यचर्या के अस्तित्व के परिणामस्वरुप निर्दिष्ट पाठ्यचर्या तथा क्रियान्वित पाठ्यचर्या के बीच पाए जाने वाले अंतर के कारण अध्यापक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं उसे कक्षा में न केवल लचीली व्यवस्था प्रदान करनी होती है वरन अधिगम के सार्थक विकल्प भी खोजने पड़ते हैं ।



पाठ्यचर्या: क्षेत्र एवं विशेषताएं


'पाठ्यचर्या के माध्यम से शिक्षा की प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है। शिक्षा के किस स्तर (पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च) पर किन पाठ्य विषयों को पढ़ाना है, किन क्रियाओं को सिखाना है और किन अनुभवों को देना है ये सभी बातें पाठ्यचर्या में स्पष्ट रूप से दी जाती हैं ।








सामग्री को पुस्तक पाठ्यचर्या के उपलब्ध हो जाने से आवश्यक एवं वांछित पाठ्य सामग्री को की रचना के समय ध्यान में रखा जाता है। इससे उपयुक्त एवं स्तरानुकूल पुस्तकों का निर्माण हो पता है जिनसे बालक के विकास में सहायता मिलती है ।


• पाठ्यचर्या छात्र एवं अध्यापक दोनों को सही दिशा बोध कराती है इससे समय और शक्ति का अपव्यय नहीं होता



• एक निश्चित स्तर के लिए एक निश्चित पाठ्यचर्या होने से पूरे प्रदेश अथवा देश में शैक्षिक स्तर की समानता और एकरूपता बनी रहती है जब किसी नए विषय की पढ़ाई किसी शिक्षा संस्था में प्रारंभ हो जाती है अथवा कोई नयी योजना लागू की जाती है तब सबसे पहले पाठ्यचर्या को ही निर्धारित करना पड़ता है।


मूल्यांकन के लिए पाठ्यचर्या एक निश्चित आधार प्रदान करती है ।


• पाठ्यचर्या से उद्देश्यों की प्राप्ति संभव होती है ।


• पाठ्यचर्या से समय और शक्ति का सदुपयोग होता है ।



पाठ्यचर्या: विशेषताएं


शिक्षक के लिए महत्व


• शिक्षार्थियों के लिए महत्व


• समाज के लिए महत्व


सांस्कृतिक उन्नयन हेतु महत्व


• अवबोध के विकास हेतु महत्व