पाठ्यचर्या का अधिगमकर्ता के साथ सम्बन्ध - Curriculum relationship with the learner

पाठ्यचर्या का अधिगमकर्ता के साथ सम्बन्ध - Curriculum relationship with the learner

पाठ्यचर्या का अधिगमकर्ता के साथ सम्बन्ध - Curriculum relationship with the learner


• पाठ्यचर्या छात्र और अध्यापक दोनों के लिए अति महत्तवपूर्ण अंग होती है । यह छात्र के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक होती है। इससे छात्र समाजीकरण की प्रक्रिया में भाग । लेने के लिए तैयार हो जाते हैं ।


पाठ्यचर्या यह निश्चित करने के लिए भी महत्तवपूर्ण है कि विभिन्न मानसिक स्तर के विद्यालयों में पढ़ने वाले बालकों के उनके मानसिक स्तर के अनुकूल कौन सी क्रियाएँ सिखाना है और कौन सी नहीं ? यह छात्रों को समुचित पुस्तकों के निर्धारण एवं चयन में सहायक होती है।


• इससे छात्रों को अपना मूल्यांकन कार्य करने में सरलता होती है । यह छात्रों को समाजोपयोगी उत्पादन कार्य और कार्यानुभव पर बल देकर शिक्षा को जीवन से जोड़ने के लिए प्रेरित करती है ।


• इससे क्या पढ़ाना है? क्या सिखाना है? क्या कार्यानुभव देना है? यह शिक्षक ज्ञात कर सकते हैं। इससे छात्र और अध्यापक दोनों को सही दिशा बोध कराने से समय और शक्ति की बचत हो जाती है।






शिक्षा के उद्देश्य तभी पूरे होते हैं, जबकि पाठ्यचर्या का निर्माण तथा क्रियान्वयन प्रभावपूर्ण ढंग से होता है और यह निर्माण तथा क्रियान्वयन प्रभावपूर्ण ढंग से भी हो सकता है जबकि अध्यापक और छात्र सजग एवं जागरूक हों और उत्साह तथा लगन के साथ इस कार्य में भाग लें ।


आदर्श पाठ्यचर्या तो वह है जो प्रत्येक छात्र का सर्वांगीण विकास कर सके परन्तु पाठ्यचर्या का निर्माण अभी तो कोरी कल्पना है। यह कार्य तभी संभव है जबकि प्रत्येक अध्यापक प्रत्येक छात्र के लिए अलग-अलग पाठयचर्या का निर्माण करे ।