पाठ्यचर्या के प्रकार - Curriculum type
पाठ्यचर्या के प्रकार
● किसी भी पाठ्यचर्या की वैज्ञानिकता एवं उसके उद्देश्यों को जानने के पश्चात हमें यह निर्णय करना होता है कि उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कौन सी और कितनी विषय वस्तु की पढ़ाई की जानी चाहिए, साथ ही इस विषय वस्तु का चयन एवं संगठन किस प्रकार किया जाए जिससे हमारे लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।
• पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। यह एक ऐसी साधन है जो छात्र तथा अध्यापक को जोड़ता है। अध्यापक पाठयचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता
पाठ्यचर्या के प्रकार Types Of Curriculum
• कोर पाठ्यचर्या
• समेकित पाठ्यचर्या • सैद्धान्तिक पाठ्यचर्या
• क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या
• पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या
कोर पाठ्यचर्या
कोर पाठ्यचर्या वह है, जिसमें बालक को कुछ विषय अनिवार्य रूप से पढ़ने होते हैं। तो कुछ विषयों का विविध विषयों में से चुनाव करना पड़ता है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में कोर से पाठयचर्या को अधिक महत्व दिया है। पाठयचर्या इस बात पर बल देता है कि विद्यालय अधिक सामाजिक दायित्वों को ग्रहण करे और सामाजिक रूप से कुशल क्षमतावान कर्तव्यपरायण व्यक्तियों का निर्माण करें।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में वर्णित है कि कुछ विषय अनिवार्य एवं कुछ क्षेत्रीयता या भाषायी विषयों को ऐच्छिक रूप में होना चाहिए। जिससे हम अपने भारतीय समाज में कर्तव्यनिष्ठ एवं परिश्रमी व्यक्तियों का निर्माण कर सके। इसके द्वारा हमारे समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं का अन्त हो सके।
कोर पाठयचर्या व्यक्ति को सामाजिक जीवनयापन करने पर जोर देता है। कोर पाठ्यचर्या बालक के सामान्य विकास पर केन्द्रित है। इसलिए भारतीय समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुछ विषयों को ध्यान में रखना जरूरी है।
• लोकतंत्र, भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास तथा सभी वर्गों समानता, स्थानीय भाषाओं का में ज्ञान, सामाजिक समता, धर्म निरपेक्षता, पर्यावरण संरक्षण, जनसंख्या, मानवाधिकार, संस्कृति एवं सभ्यता, राष्ट्रीयता की भावना को ध्यान में रखकर अनिवार्य एवं ऐच्छिक विषय का चयन किया जाना चाहिए।
कोर पाठ्यचर्या का परम उद्देश्य (Ultimate goal of Core Curriculum) मुख्य पाठयचर्या के उद्देश्य के रूप में यह एक शिक्षा के व्यापक लक्ष्य तथा लोगों को प्रभाव ढंग से समकालीन समाज में रहने के लिए सक्षम होने के लक्ष्य से सम्बन्धित है। एक प्रमुख उद्देश्य हमारे छात्रों को अपने चुने हुए पेशे में जीवन जीने के लिए सक्षम होना चाहिए।
पाठ्यचर्या का आसन्न उद्देश्य (Proximate Purpose of Core Curriculum)
• यह पाठयचर्या मनोवैज्ञानिक एवं बाल केन्द्रित होता है।
• इसमें विभिन्न प्रकार के अधिगम अनुभव प्रयुक्त किए जाते हैं।
• इसके अंतर्गत व्यापक निर्देशन कार्यक्रम की व्यवस्था रहती है ।
यह पाठयचर्या सबसे अधिक प्रचलित है।
इसमें छात्रों में शिक्षकों के सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ होते हैं तथा अध्ययन अध्यापन के साथ-साथ परामर्श भी चलता है।
• यह पाठयचर्या मनोवैज्ञानिक एवं बाल केन्द्रित होता है।
• इसमें विभिन्न प्रकार के अधिगम अनुभव प्रयुक्त किए जाते हैं।
• इसके अंतर्गत व्यापक निर्देशन कार्यक्रम की व्यवस्था रहती है।
• यह पाठयचर्या सबसे अधिक प्रचलित है।
समेकित पाठ्यचर्या Inclusive Curriculum
• मस्तिष्क एक इकाई है। मस्तिष्क ज्ञान को छोटे-छोटे टुकड़ों में प्राप्त नहीं करता है। बल्कि उसे पूर्ण रूप में ग्रहण करता है। वही वस्तु या विचार मस्तिष्क में स्थिर होता है। जो पूर्ण अर्थ देता है।
एकीकृत पाठ्यचर्या से हमारा तात्पर्य उस पाठ्यचर्या से है जिसमें उसके विभिन्न विषय एक दूसरे से इस प्रकार सम्बन्धित होते हैं कि उनके बीच कोई अवरोध नहीं होता, बल्कि उनमें एकता होती है। इस प्रकार पाठ्यक्रमों के विभिन्न विषयों के ज्ञान को विभिन्न खण्डों में प्रस्तुत न करके सब विषय मिलकर ज्ञान को एक इकाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
• शिक्षा का उद्देश्य बालकों को ज्ञान की एकता से परिचित कराना है। यह उद्देश्य विषयों को अलग-अलग रूप में पढ़ाने से पूर्ण नहीं हो सकता अर्थात यह कार्य तभी सम्पन्न हो सकता है, जब विषयों को एक दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ा जाए।
• विभिन्न विषयों को इस प्रकार परस्पर सम्बन्धित किया जाए कि उनके बीच किसी प्रकार की दीवार न हो। यह दायित्व शिक्षक का ही है। वह पाठयचर्या के सभी विषयों को सम्बन्धित करे, पाठयचर्या की सामग्री का जीवन से सम्बन्ध स्थापित करे ताकि प्रत्येक विषय-सामग्री में भी सह-सम्बन्ध स्थापित हो । इस प्रकार जो पाठयचर्या उक्त सभी प्रकार के सम्बन्धों से युक्त हो, उसे ही “एकीकृत पाठयचर्या” कहते हैं ।
• इस पाठयचर्या की सफलता के लिए शिक्षक को पर्याप्त एवं व्यापक अध्ययन की आवश्यकता होती है।
इसमें बालकों को जीवनोपयोगी शिक्षा मिलती है।
• इसके माध्यम से छात्र विभिन्न विषयों का ज्ञान एक साथ प्राप्त करते हैं।
इस पाठयचर्या में ज्ञान को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
• इस पाठ्यचर्या में शिक्षकों का उत्तरदायित्व एवं कार्यभार बढ़ जाता है।
• इस पाठयचर्या का उद्देश्य पाठयचर्या को अनुभव केन्द्रित बनाना होता है।
• इसमें छात्रों के रुचियों को महत्व दिया जाता हैं।
छात्रों के पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान को सम्बंधित करने में आसानी होती है।
इस पाठ्यचर्या का उद्देश्य बालकों को ज्ञान की एकता से परिचित कराना है। यह उद्देश्य विषयों को अलग-अलग पढ़ाने से पूर्ण नहीं हो सकता अर्थात यह कार्य तभी सम्पन्न हो सकता है जबकि विषयों को एक दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाये।
सैद्धान्तिक पाठ्यचर्या (Theoretical Curriculum)
• यह पाठयचर्या शिक्षा के प्रति परम्परागत तथा सैद्धान्तिक दृष्टिकोण रखता है। इसमें आदर्श जीवन के सिद्धान्त एवं नैतिक जीवन के सैद्धान्तिक रूप से सम्बन्धित करके उसके विकास पर बल दिया जाता है।
• प्राचीन काल के स्कूलों तथा भारतीय गुरुकुलों ने इस पाठयचर्या का सूत्रपात किया तथा इसके अंतर्गत भाषाओं, दर्शन, ज्योतिष, गणित, व्याकरण, अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया।
इस प्रकार के पाठ्यचर्या का आज भी प्रचलन है परन्तु दिन-प्रतिदिन इसकी उपयुक्तता पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। अतः इसकी उपयुक्तता धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
इसके अन्तर्गत व्यक्ति, व्यक्ति के सम्बन्धों, सामूहिक सम्बंधों तथा अंतः सामूहिक सम्बंधों के विकास से सम्बंधित स्थितियों को सम्मिलित किया जाता है। जिससे सामाजिक सहभागिता के विकास को सैद्धान्तिक पाठयचर्या से जोड़ा जा सके।
• इसके अन्तर्गत स्वास्थ्य, बौद्धिक शक्ति, सौन्दर्यात्मक अभियक्ति, मूल्यांकन तथा नैतिक शक्तियों के विकास से सम्बंधित स्थितियों को स्थान दिया जाता है।
• इस पाठ्यचर्या के अंतर्गत स्वास्थ्य, नागरिकता, व्यावसायिक ज्ञान, गृहसदस्यता तथा अवकाशकालीन क्रिया को विशेष महत्व दिया जाता है।
• वातावरण से सम्बंधित कारणों एवं शक्तियों के प्रतिक्रिया क्षमता से सम्बंधित स्थितियां जैसे प्राकृतिक घटनाओं, प्रौद्योगिकी से प्राप्त साधनों, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्थितियों को स्थान दिया जाता है।
यह पाठयचर्या बालकों की तात्कालिक आवश्यकताओं एवं हितों पर आधारित है। ये आवश्यकता एवं हित जीवन की स्थायी स्थितियों के क्षेत्र में निहित है।
क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या Activity Based Curriculum
क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या का सूत्रपात प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री पेस्टालॉजी तथा रूसो ने किया है। परन्तु इसके वास्तविक प्रणेता प्रसिद्ध अमेरिकी शिक्षाविद् जॉन डीवी थे।
• बाल्यावस्था में बालक क्रिया प्रधान कार्य करके शिक्षा प्राप्त करने में विशेष रुचि लेता है। अतः प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या का निर्माण किया जाता है।
क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या क्रिया या कार्य को आधार बनाता है।
• इसके अंतर्गत कक्षा कार्य के लिए अन्तर्वस्तु का चयन शिक्षार्थियों की अभिरुचियों, आवश्यकताओं, समस्याओं तथा अनुभव के आधार पर किया जाता है।
प्रधान पाठ्यचर्या में बालकों के लिए ऐसे कार्यों का आयोजन किया जाता है। जिनका कुछ सामाजिक मूल्य हो तथा जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक हो।
इन कार्यों का चुनाव शिक्षक और छात्रों के परस्पर सहयोग से किया जाता है तथा इसमें छात्रों की रुचियों एवं आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखा जाता है।
क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या की विशेषताएं
• क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या अनुभव प्रधान है।
• यह छात्रों को जीवन की व्यावहारिकता से अवगत कराने पर बल देता है।
• इसमें विद्यार्थी प्रमुख है और शिक्षण गौण रूप में विद्यमान होता है।
• इसमें छात्र मस्तिष्क प्रधान होता है ।
क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या करके सीखने पर बल देता है।
• क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या का उद्देश्य छात्र को व्यक्तिगत जीवन की आवश्यकता हेतु समर्थ बनाना है।
क्रिया केन्द्रित पाठयचर्या विद्यार्थी केन्द्रित है।
• इस योजना के अंतर्गत विकसित अधिगम अनुभवों की इकाईयाँ बालकों के लिए महत्वपूर्ण एवं सार्थक होती हैं।
• इसमें अन्तर्वस्तु का चयन वर्तमान उपयोगिता एवं महत्व को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
• इसमें शिक्षा के अधिक व्यापक क्षेत्रों को समाहित करना सम्भव होता है, क्योंकि अधिगम अनुभवों में पर्याप्त विविधता होती है।
पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या - Reconstructivistic Curriculum
पाठ्यचर्या पुनर्संरचना का प्रथम व्यापक प्रयास गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा के माध्यम से प्रारंभ तो हुआ परन्तु ब्रिटिश काल में कोई प्रभावशाली कार्य न हो सका। इसके अन्तर्गत न हस्तकला को केन्द्र मानकर सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया। हस्तकला के साथ साथ भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण को भी पाठयचर्या में स्थान दिया गया। अध्ययन के द्वारा विभिन्न विषयों में सह-सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया गया। परन्तु पाठ्यचर्या निर्माण में कई कमियाँ पाई गई।
• अतः माध्यमिक शिक्षा आयोग ने स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रचलित पाठ्यक्रम में व्यापक सुधार लाने हेतु कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये। जिनमें से कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं।
• माध्यमिक स्तर सामान्य पाठयचर्या
• व्यावहारिक तथा तकनीकी शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति हेतु बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना।
• शिक्षा की अवधि में परिवर्तन लाने की आवश्यकता
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