व्यावसायिक समाज कार्य - Professional Social Work

व्यावसायिक समाज कार्य - Professional Social Work

व्यावसायिक समाज कार्य - Professional Social Work

व्यवसाय शब्द का प्रयोग समान्यतः किसी रोजगार व्यापार अथवा कारोबार के संदर्भ में लगाया जाता है। परंतु वास्तव में व्यवसाय शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के प्रोफेशन शब्द से हुई है। प्रोफेशन शब्द लैटिन भाषा के प्रोफेटरी शब्द से बना है। प्रारंभ में इसका अर्थ जीवन संबंधी किसी बात के लिए प्रतिज्ञा करने अथवा किसी बात के संबंध में सार्वजनिक रूप से घोषणा करने से लिया किया जाता था। तेरहवीं शताब्दी में व्यवसाय शब्द का अर्थ क्रमश: धार्मिक परायणता और शूरवीरता के आदर्श के प्रति धारणा में धीरेधीरे परिवर्तन आया। आगे चलकर 16 वीं और 17वीं तक इसका अर्थ जीविका के संदर्भ में किया जाने लगा।। वर्तमान समय में भी समान्यजन इसका अर्थ जीविका संबंधी क्रियाकलापों में ही लगाते हैं। तत्श्चात विभिन्न विद्वानों के द्वारा व्यवसाय शब्द को परिभाषित करने का प्रयास किया जाने लगा। 1939 में मेरिस ने व्यवसाय को परिभाषित करते हुए कहा कि व्यवसाय एक व्यापार है, जो व्यक्ति से व्यक्ति के रूप में सभी के साथ समान व्यवहार करता है तथा उन व्यापारों से भिन्न है, जो मनुष्य की अपनी व्यावसायिक क्षेत्र अन्य किसी बाह्य आवश्यकताओं एवं अवसरों का प्रबंध करते हैं। वर्तमान समय मेव्यवसाय का अर्थ इसी संदर्भ में लिया जाने लगा है। इसके माध्यम से कार्यक्षमताओं व्यसायिक कुशलताओं का विकास किया जाता है। समाज कार्य के प्रशिक्षण हेतु सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध संस्थान्यूयॉर्क स्कूल ऑफ सोशल वर्क की स्थापना अमेरिका में की गई। फ्रीडलेण्डर ने भी अपनी पुस्तक कॉन्सेप्ट एण्ड मैथड्स ऑफ वर्क में व्यवसाय की विशेषताओं का उल्लेख किया है। 



एक व्यवसाय के रूप में समाज कार्य का अर्थ


किसी भी कार्य को व्यवसाय की संज्ञा तब दी जाती है, जब उसमें ज्ञान-विज्ञान का समावेश हो। समाज कार्य व्यवसायिक सेवा है, जो वैज्ञानिक ज्ञान एवं मानव संबंधों की निपुणता पर आधारित है। यह व्यक्तियों की अकेले या समूहया समुदाय में सहायता करता है, ताकि वे सामाजिक व वैयक्तिक संतुष्ट एवं स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें। सामान्यतः व्यवसाय के अंतर्गत औषधि, कानून, प्रौद्योगिकी को सम्मिलित करते हैं और समाज कार्य ने यह रूप किस प्रकार से किया है अथवा उन विषेशताओं को जो इसे व्यवसाय को स्वरूप प्रदान करती है किस प्रकार प्राप्त किया है यह चर्चा का विषय बना गया है। समाजकार्य का व्यावसायिक रूप उस समय से प्रारंभ हुआ, जब यह अनुभव किया गया कि वर्तमान सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के लिए विशे ज्ञान एवं निपुणाओं की आवश्यकता है। समाज कार्य को व्यावसायिकता प्रदान करने हेतु 1890 के दशक में कुछ परोपकार संगठन समिति के कार्मियों द्वारा इस संदर्भ में कुछ उत्तदायी कारणों को उजागर किया गया, जिससे कि व्यावसायिक समाज कार्य समझा जा सकता है, जो कि निम्न प्रकार से हैं 



1. चिकित्सा एवं अभियंत्रण के क्षेत्रों में परिवर्तन किया गया जिसके अनुसार व्यवसायिक माध्यमों से समाज की समस्या का समाधान किया जा सकता है।


2. इन समितियों में कार्य करने वाले अधिकांश कार्यकर्ता वैयक्तिक थे, जिन्हें अपने जीवन-यापन हेतु धनार्जन की आवश्यकता थी तथा वे अपने कार्य को एक वांछित कार्य एवं अच्छीमजदूरी देने वाले कार्य के रूप में स्थापित करना चाहते थे।


3. इन समितियों के माध्यम से शिक्षित महिलाओं का एक नया वर्ग सामने आया जो विर से बाहर जाकर अपने जीवन-यापन हेतु कुछ कार्य करना चाहता था। अत इस आधार पर लिंग संबंधी होने वाले भेद-भाव को रोकने में सहायता प्राप्त हुई। समाज कार्य की व्यसायिक स्थिति को समझने हेतु कुछ विद्वानों द्वारा निम्नसुझाव दिए गए हैं 



फ्लेक्सनर के अनुसार


व्यावसायिक समाज कार्य के संदर्भ में 1915 में अब्राहम फ्लेक्सनर द्वारा समाज कार्य की व्यावसायिक स्थिति का मूल्यांकन किया गया, जिसके पश्चात ही समाज कार्यकर्ताओं के मध्य समाज कार्य में व्यावसायिकता जैसे शब्दों को समाहित किया जा रहा है। इस दौरान ही फ्लेक्सनर द्वारा क्या समाज कार्य एक व्यवसाय है। पर एक भाषण दिया गया, जिसमें एक व्यवसाय की पहचान करने के अंग की संज्ञा दी। उनके भाषण में व्यवसाय के संदर्भ में निम्न तथ्यों को सामने रखा गया व्यवसाय बड़ी मात्रा में वैयक्तिक उत्तरदायित्व के साथ बौद्धिक क्रियाओं के आवश्यक रूप से सबंद होते. विज्ञान एवं सीखने से कच्चीसामग्री पाते हैं। इस सामग्री को वे व्यावहारिक एवं निश्चित उद्देश की प्रति हेतु कार्य में लाते हैं। एक शैक्षणिक संक्रामक प्रविधि को रखते हैं। स्वयं को संगठित करते हैं एक्सप्रेरणा में बढ़ते हुए परोपकारी बनते हैं।


वर्ष 1915 में फ्लेक्सनर ने निष्कर्ष निकाला कि समाज कार्य निम्नलिखित कारणों से अभी तक व्यवसाय नहीं था।


1. समाज कार्य के पास एक सही मायने में व्यवसाय की शक्ति उत्तरदायित्व नहीं थे, क्योंकि समाज कार्य ने अन्य व्यवसायों के मध्य मध्यस्थता की।


2. समाज कार्य के माध्यम से जो भी प्रयोगशाला एवं संगोष्ठियाँ होती थी उन्हीं के माध्यम से इस समस्या का समाधान खोजता है। फिर भी यह उद्देश्यपूर्ण संगठित शैक्षणिक विद्या विशेष पर आधारित नहीं था।


3. यह एक व्यवसाय के लिए आवश्यक विशेषीकृत क्षमता की उच्च मात्रा से युक्त नहीं था, क्योंकि उस समय समाज कार्य अभ्यास का बृहद क्षेत्र था।


ग्रीनवुड का प्रतिरूप आरनेस्ट ग्रीनवुड (1957) का एट्रीब्यूट्स ऑफ ए प्रोफेशन विषय पर अत्युत्तम लेख समाज कार्य की व्यावसायिक स्थिति के मूल्यांकन में एक-दूसरे सीमा चिन्हके रूप में है।



ग्रीनवुड ने व्यवसाय के निम्नलिखित सूचकों का वर्णन किया है 


1. एक व्यवसाय मौलिक ज्ञान से युक्त होता है तथा सिद्धांत के क्रमबद्ध निकाय को विकसित करता

है, जो कि अभ्यास की कुशलताओं को निर्देशित करता है। क्षणिक तैयारी चौद्धिक होने के साथ-साथ अभ्यासपरक भी होती है।


2. व्यावसायिक प्राइज़ तथा सेवाब व्यावसयिक संबंध में विश्वसनीयता, व्यावसायिक निर्णय तथा सक्षमता के प्रयोग पर आधारित होते हैं।


3. एक व्यवसाय अपनी सदस्यता, व्यावसायिक अभ्यास, शिक्षा एवं निष्पत्ति मानकों को नियमित एवं नियंत्रित करने की शक्ति से युक्त होता है। यह समुदाय नियामक शक्तियों तथा व्यावसायिक सुविधा का अनुमोदन करती है।


4. एक व्यवसाय लागू करने योग्य स्पष्ट क्रमबद्ध एवं बांधने वाली नियामक आचारसंहिता से युक्त होता है। यह आचार संहिता व्यवसाय के सदस्यों को नीतिगत व्यवहार प्रदर्शित करने हेतु बाध्य करती है।


5. एक व्यवसाय औपचारिक एवं अनौपचारिक समूहों के संगठनात्मक जाल के अंतर्गत मूल्यों सिद्धांतों तथा प्रतीकों को संस्कृति के द्वारा निर्देशित होता है। इसके माध्यम से व्यवसाय कार्य करता है तथा अपनी सेवाएं उपलब्ध कराता है। 





उपरोक्त लिखित प्रतिरूप का प्रयोग करते हुए वर्ष 1957 में ग्रीनवुड का विचार था कि समाज कार्य पहले से ही एक व्यवसाय है। यह अन्य प्रकार के विभाजन योग्य होने वाले प्रतिरुप के साथ समरूपता के बहुत से बिंदुओं से युक्तोता है। समाज कार्य का व्यावसायिक स्वरूप भारतीय संदर्भ में यदि हम समाज कार्य के संदर्भ में अध्ययन करें तो प्रतीत होता है कि भारतीय समाज कार्य किसी ना किसी रूप में अमरिका एवं इंग्लैंड के समाज कार्य की ही देन है। व्यावसायिक समाज में कार्य अमेरिका एवं इंग्लैंड में अपेक्षाकृत भारतीय समाज कार्य की अपेक्षा अधिक व्यावसायिक मान्यता प्राप्त कर चुका है। इसके बावजूद भी भारत में भी व्यावसायिक समाज कार्य ने अपने आप का सार्थक साबित किया है क्योंकि यह एक ज्ञान तथा विज्ञान पर आधारित है तथा व्यवसाय के अन्य सभी गुण उस जीविका में विद्यमान है, जो कि व्यावसायिकता की श्रेणी में आता है। इस संदर्भ में समाज कार्य पर गंम्भरतापूर्वक दृष्टिपात करने से स्पष्ट हो जाता है कि समाजकार्य में वे सभी गुण व विशेषताएँ विद्यमान हैं जिनके आधार पर उसे एक व्यवसाय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।




निम्नलिखित आधारों पर समाज कार्य व्यवसाय को और अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।


• वैज्ञानिक ज्ञान एवं क्रमबद्ध सिद्धांत: समाज कार्य के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली समस्त प्रणालियों में विभिन्न तकनीकों, कौशलों एवं यंत्रों के माध्यम से व्यक्ति, समूह एवं समुदाय की सहायता की जाती है। यह समस्त प्रणालियां वैज्ञानिक ज्ञान तथा विशेष कला पर आधारित होती है एवं इनमें एक निश्चित ज्ञान के आधार पर सेवा का कार्य किया जाता है। साथ ही अभ्यास के दौरान प्राप्त अनुभवों की सहायता से इस ज्ञान व कौशल में निरंतर वृद्धि एवं विकास भी किया जाता है।


• मानव व्यवहार तथा सामाजिक पर्यावरण व्यक्तित्व, इसके कारक सिद्धांत सामाजिक पक्ष, तथा मनोचिकित्सकीय पक्ष, मानव संबंध समूह सामाजिक संस्थाएं सामाजीकरण, सामाजिक नियंत्रण, पर्यावरण प्रौद्योगिकी इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। 


• समाज कार्य की प्रणालियां तथा प्रविधियां समाज कार्य की प्राथमिक एवं सहायक प्रणालियों, वैयक्तिक समाज कार्य, सामूहिक समाज कार्य सामुदायिक संगठन समाज कल्याण प्रशासन, सामाजिक क्रिया तथा सामाज कार्य शोध के माध्यम से व्यक्ति, समूह एवं समुदाय और समाज की समस्याओं निराकरण प्रस्तुत किया जाता है।



• समाज कार्य के क्षेत्र: समाज कार्य प्रमुख क्षेत्रों, जैसे- बाल विकास, महिला सशक्तिकरण, युवा कल्याण, वृद्धों का कल्याण ग्राम्य विकास, नगरीय विकास, अनुसूचित एवं जनजातीय कल्याण, परिवार कल्याण, सामाजिक सुरक्षा अपराधी सुधार इत्यादि के माध्यम से कार्य किए। जाते है।


• समाजिक समस्याएं अपराध, बाल अपराध, मद्यपान, मादक द्रव्य व्यसन, भिक्षावृत्ति वैश्यावृत्ति, बरोजगारी, जातिवाद, संप्रदायवाद, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय एकीकरण इत्यादि के माध्यम से व्यावसायिक समाज कार्य, कार्य करता है।



• निपुणताएं प्रविधियां तथा यंत्र समाज कार्यकर्ता में निपुणताओं का विकास शिक्षण तथा प्रशिक्षण द्वारा किया जाता है। समाज कार्यकर्ता कार्यक्रम की निपुणता द्वारा ही सेवार्थी के साथ उद्देश्यपूर्ण संबंध स्थापित करता है तथा किसी प्रकार्यात्मक समझौते पर पहुंचता है। वह सामाजिक स्थितियों के विश्लेशण में निपुण होता है। उसमें व्यक्तियों तथा समूहों की भावनाओं को समझने तथा उनसे निपटने की क्षमता पाई जाती है। वह सेवार्थी को आत्मनिर्भर बनाने में निपुण होता है। यह समुदाय तथा संस्था के स्रोतों एवं साधनों को समयानुसार उपयोग में लाता है।



• समाजकार्य शिक्षा समाज कार्य की शिक्षा अलग से व्यवस्था की गई है। इसकी शिक्षा स्नातक स्नातकोत्तर, पी-एच.डी. स्तर की दी जाती है। यह शिक्षा विश्वविद्यालयों के विभागों तथा स्वतंत्र रूप से कार्यरत समाज कार्य विद्यालयों के माध्यम से दी जाती है। सिद्धांत तथा व्यवहार दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती है। विद्यार्थियों को समाज कार्य अभ्यास के लिए विभिन्न संस्थाओं में भेजा जाता है। उन्हें चिकित्सालयों श्रम कल्याण केंद्रों, आवास गृहों, विद्यालयों, मलिन बस्तियों, सामुदायिक विकास केंद्रों, निर्देशन केंद्रों आदि में क्षेत्रीय कार्य करने के लिए भेजा जाता है।





• व्यावसायिक संगठन: जैसे-जैसे समाज कार्य का विकास हुआ वैसे-वैसे इसके व्यावसायिक संगठन भी बनते गए। इन व्यावसायिक संगठनों का कार्य समाज कार्य व्यवसायके स्तर को ऊंचा उठाना तथा कार्यकर्ताओं में उच्चतर बोग्यताओं क्षमताओं एवं निपुणताओं का विकास करना है। ये संगठन कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा करते तथा व्यावसायिक व्यवहार पर नियंत्रण रखते हैं अमरीका में पाए जाने वाले प्रमुख संगठन ये हैं न्यूयॉर्क शहर के अंतर्गत वर्ष 1911 में इण्टर कालेजिएट ब्यूरो ऑफ ऑकुपेशन नामक व्यावसायिक संगठन की स्थापना की गई। शैक्षणिक समुदाय में स्वीकृति पाने के प्रयास करने के उद्देश्य से समाज कार्य शिक्षकों द्वारा व्यावसायिक संघों के निर्माण ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सोशल वर्क्स (1918), द नेशनल एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सोशल वर्क्स (1919), द एसोसिएशन फॉर इ स्टडी ऑफ कम्युनिटी ऑर्गेनाइजेशन (1946) जैसे संगठनों का उदय हुआ। आगे चलकर भारत में भी कुछ प्रमुख व्यसायिक संगठनों को देखा जा सकता है इण्डियन एसोसिएशन ऑफ द एलुमिनाई स्कूल ऑफ सोशल वर्क (1951), इण्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ सोशल वर्क्स (1952 मद्रास), एसोसिएशन ऑफ स्कूल्स ऑफ सोशल वर्क, इण्डियन एसोसिएशन ऑफ ट्रेन द एलुमिनाई स्कूल ऑफ सोशल (1951), इण्टरनेशनल फेडरेशन ऑफ सोशल (1952, मद्रास), एसोसिएशन ऑफ स्कूल्स ऑफ सोशल वर्क, इण्डियन एसोसिएशन ऑफ ट्रेन सोशल वर्क्स इण्डियन एसोसिएशन ऑफ साइकिल सोशल वर्क्स, साइकेट्रिक सोशल वर्क्स (बंगलुरू, पत्रिका-लखनऊ एसोसिएशन लखनऊ यूनिवर्सिटी जर्नल ऑफ सोशल वर्क पत्रिका टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइसेज, इण्डियन जर्नल ऑफ सोशल वर्क