मानव विकास के आयाम - Dimensions of human development
मानव विकास के आयाम - Dimensions of human development
मानव विकास के आयामों को निम्न पाँच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. शारीरिक विकास जन्म से पूर्व ही माता के गर्भ में शिशु का शारीरिक विकास प्रारंभ हो जाता है, यह एक स्वाभाविक, प्राकृतिक और निरंतर गतिशील प्रक्रिया है जिस पर वातावरण और वंशानुक्रम आदि का प्रभाव पड़ता है। शारीरिक विकास की मुख्य रूप से तीन अवस्थाओं को यहाँ उल्लेखित किया जा सकता है
किशोरावस्था
2. सामाजिक/सांवेगिक विकास संवेग अर्थात भावनाएँ यथा प्रेम, ईर्ष्या, क्रोध, चिंता आदि परिस्थितियों की एक जटिल व्यवस्था है, जो कभी व्यक्ति के कार्य में अवरोध उत्पन्न करती हैं तो कभी उसके कार्य में बेहतर प्रदर्शन हेतु प्रेरणास्पद भूमिका में होती है। संवेग के कारण व्यक्ति क्रियाएँ संपन्न करता है और ये क्रियाएँ ही धीरे-धीरे उसकी आदतों में शुमार हो जाती है। यहाँ संवेग की कुछ विशेषताओं को प्रस्तुत किया जा रहा है.
• बालकों में संवेग की उपस्थिति अल्पकालिक होती है।
• संवेग जल्दी जल्दी पैदा होते हैं।
• बालकों में संवेग प्रायः पातक नहीं होते, परंतु किशोरावस्था में हानिकारक हो सकते हैं।
3. नैतिक विकास परिवार, समाज, समुदाय आदि द्वारा बालक में नैतिक व्यवहारों का सृजन किया जाता है, यथा-बड़ों का आदर करो, मेहमान का स्वागत करो, अतिथि देवो भवः भगवान की प्रार्थना करो, जानवरों पर दया करो, विनम्रता से बात करो आदि। नैतिक विकास के आधार पर बालकों को सामाजिक रूप से स्वीकृत व्यवहारों के प्रति जागरूक करना मूल प्रयोजन होता
4. संज्ञानात्मक विकास संज्ञान का तात्पर्य है जानना समझना, देखना। अर्थात संज्ञानात्मक विकास से अभिप्राय परिपक्वता और पर्यावरण के साथ अंतः क्रिया करने के लिए ज्ञान में संवर्धन व समयानुसार समझने की क्षमता है। संजय मानसिक प्रतिमानों की संरचना को शामिल करने का कौशल होता है और इसमें विचार, भाषा, तर्क, स्मृति की भूमिका अहम होती है। इसी के आधार पर व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के बारे में समझ विकसित कर पाता है।
5. भाषिक विकास भाषा व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया से ही सीखता है और यह समाजीकरण परिवार व समाज से होता है। कुछ परिवार, जो व्यक्ति केंद्रित होते हैं, वहाँ प्रायः संप्रेषण सीमित होता है और बालकों की बातों पर कम ध्यान दिया जाता है उन बालकों का भाषिक विकास अपेक्षाकृत कम हो पाता है, जबकि जिन परिवारों में बालकों की बातों को पर्याप्त महत्व दिया जाता है और संप्रेषण मुक्त रूप से होता है वहाँ बालकों में भाषिक विकास सहजता से होता है।
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