चिपको आंदोलन - Chipko Movement
चिपको आंदोलन - Chipko Movement
चिपको आंदोलन की शुरुआत सन् 1973 में उत्तराखंड के चमोली ग्राम (तब उत्तर प्रदेश था) में हुई थी। इस आंदोलन में किसानों ने सूखे वृक्षों की कटाई का शांत और अहिंसक विरोध किया था। यह आंदोलन तब शुरू होता है जब वन विभाग ने कृषि उपकरण बनाने वाले एक स्थानीय संगठन दसौली ग्राम स्वराज्य संघको एक वृक्ष देने से मना कर दिया और वन विभाग ने एक निजी कंपनी को वृक्ष दे दिया। इस घटना से आक्रोशित होकर उक्त संघ के नेतृत्व में सभी ग्रामीण लकड़ी से भरे टुकों के आगे लेट गए और लकड़ी के गोदाम में आग लगा दी। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के लिए हो रही बना की कटाई पर रोक लगाना था और इसे रोकने के लिए बाद में महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गई। पेड़ों की नीलामी के प्रति स्थानीय महिला गौरा देवी व अन्य महिलाओं द्वारा विरोध किया गया परंतु ठेकेदार और सरकार पर इस विरोध का कोई असर नजर नहीं आया। बाद में एक नेता चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में इस प्रयास ने एक प्रभावकारी आंदोलन का रूप ले लिया। फलतः महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गई और वे कहने लगी कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को भी काट लेना इस आंदोलन के प्रमुख नेता सी.पी. भट्ट सुंदरलाल बहुगुणा और गौरा देवी थीं यह आंदोलन महिलाओं द्वारा पर्यावरण के संरक्षण को लेकर किया गया था।
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