वृद्धावस्था की समस्याएँ - Old Age Problems

वृद्धावस्था की समस्याएँ - Old Age Problems

वृद्धावस्था की खास समस्याएँ होती है जो इसी उम्र में सर उठाने लगती है। इस अवस्था में व्यक्ति कार्य से अवकाश प्राप्त कर चुका होता है जिसका कारण होता है उसका शारीरिक हास। आपने ऐसे कई नौकरी पेशा में लोग देखें होंगे जिन्हें शारीरिक अक्षमता के कारण इस उम्र में सेवा मुक्त किया गया हो। जैसे आँखों की रोशनी का कम होना, चलने में तकलीफ होना, घुटनों में दर्द होना आदि समस्याओं के कारण इस उम्र में उन्हें न चाहते हुए भी कार्य से मुक्ति लेनी पड़ती है। ऐसे में इस आयु वर्ग के लोगों के पास बहुत सारा खाली समय होता है, जिसकी बिताना स्वयं में एक समस्या है। पाचन प्रक्रिया रक्तसंचार प्रक्रिया जैसे अनेक शारीरिक प्रक्रियाओं कामद होना या धीमा होना इस उम्र की प्रमुख शारीरिक समस्या है।

उनकी देखने, सुनने, स्वाद तथा निद्रा जैसे क्षमताओं में धीमापन आने लगता है। ऐसे कई सारी शारीरिक समस्याओं के साथ वृद्ध अपना जीवन बिताते हैं। पारपारक समाज में ऐसे व्यक्तियों की देखभाल के लिए संयुक्त परिवार में खास जगह हुआ करती थी, जिसे एकल परिवार ने खत्म कर दिया है। आधुनिक समाज में परिवार से वृद्ध धीरे-धीरे गायब होने लगे है। उनके लिए घरों में जगह नहीं है जैसे पहले हुआ करती थी। यही कारण है कि आज बुद्धों की समस्या ने भारत जैसे विकासशील समाज में विकरालस्वरूप धारण किया है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोषका यह आकलन है कि वर्ष 2050 तक समूचे विश्व के प्रत्येक छ सर्वाधिक बुजुगों में से एक भारतीय होगा।


मानसिक समस्याएँ:-

 व्यक्ति के शरीर में बाहरी कारकों से प्राप्त सूचनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाने के लिए तंत्रिका तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है विकासात्मक मनोविज्ञान में हम देखते हैं कि इस अवस्था में व्यक्ति के व्यक्तित्व में नए प्रतिमान बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और शरीर हासोन्मुख होता है। ऐसे में बाह्य पर्यावरण की सूचनाओं को ग्रहण करने में वे कमजोरीमहसूस करने लगते हैं। इंद्रियों की क्षमता में गिरावट के कारण सामान्य जीवनयापन करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। अपने इन शारीरिक कमजोरियों के कारण मुख्य धारा समाज से अलग हो जाते है जिसका रूपांतरण अकेलेपन के वृद्धि से होता है। अत्याधिक खाली समय और अकेलापन उनमें तनाव की स्थितियाँ पैदा करता है। उनमें चिडचिडापन, भूलना जैसे समस्याओं के निर्माण में सहायक वातावरण पैदा होने लगता है।

सांवेगिक क्षमता की कमी और गलत प्रत्यक्षीकरण उनमें भ्रम की स्थितियाँ उत्पन करती है। साथ ही वृद्धावस्था में मुख्य भय होता हैमृत्यु का और उसके लिए वह व्यक्ति तैयार नहीं होता है। इस कारण वह प्रत्येक को संशय की नजर से देखने लगता है। दूसरी ओर पालनकर्ता पराश्रित होने की इस भूमिका के लिए वे तैयार नहीं होते हैं। बावजूद पारिवारिक उपेक्षा उनमें हीनता ग्रंथि को बढ़ाने में कारगर बन जाती है वृद्धावस्था स्वयं में अवमूल्यन की अवस्था होती है जिसके कारण इस अवस्था में व्यक्ति का अवमूल्यन बढ़ जाता है। ऐसे में व्यक्ति का स्वयं के प्रति आत्म अवमूल्यन भी बढ़ जाता है। क्या था और क्या हुआ जैसे प्रश्नों से यह अवस्था लगातार गहराती जाती है, जिससे शरीर और बुद्धि के बीच तादात्म्य नहीं बैठ पाता और समस्याएँ सर उठाने लगती है, जैसे-लगातार बडबडाना, बेमतलब की बातें करना, आदि समस्याएँ इसमें शामिल हैं। साथी के गुल जाने के बाद इन समस्याओं में और भी बढ़ोतरी होने लगती है।


सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएं पारंपरिक समाज में वृद्धों के लिए खास जगह थी। इनके जीवन अनुभवों की आवश्यकता को उस समय में महसूस किया जाता था किंतु औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण जैसे तमाम परिवर्तनों ने परिवार, समुदाय, समाज तथा राष्ट्र के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन की मांग की जिसमें वृद्ध अपने आप हाशिए पर चले गए। एक समय में बुजुर्गों के सलाह के बगैर घर के कोई काम नहीं होता था, किंतु सूचना क्रांति ने उनके इस अस्तित्व पर आघात किया है। बुजुर्ग जहाँ एक विरासत के रूप में स्थापित थे उनकी जगह भरने के लिए आज बहुत सारे विकल्प मौजूद है। किसी भी राष्ट्र के विकास के विकास में इस अनुत्पादक इकाई के सहभागिता को शून्य में मापा जाता है। ऐसे में कोई भी राष्ट्र यह चाहेगा कि इस आयु वर्ग की जनसंख्या कम ही हो। क्योंकि इसका अधिक भार बाकी आयु वर्ग के लोगों को उठाना पड़ता है। ऐसे में अपनी अक्षमताओं के कारण अलथलग पड़े इस आयु वर्ग के लोगों का सामाजिक सांस्कृतिक अवमूल्यन होना तय है।


आर्थिक समस्याएँ: 

वृद्धावस्था में व्यक्ति की शारीरिक क्षमताओं के हास के कारण वे स्वयं आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हो पाते हैं। ऐसे में उनके सामने तमाम प्रकार की आर्थिक समस्याएँ सर उठाने लगती हैं । वे पहले जैसे उत्पादक न होने के कारण अपना जीवन यापन स्वयं नहीं कर पाते और बुवा तथा प्रौढ़ावस्था में प्राप्त पूंजी का उपयोग से अपने बच्चों के पालनपोषण में कर चुके होते हैं। इसी समय में अगर वे अपनी पूँजी में से कुछ अपनी वृद्धावस्था के लिए बचाएँ रखते हैं तो ऐसे वृद्धों के समाने आर्थिक समस्या कम ही आती है, लेकिन परिवार के बोझ तले वे अपने भविष्य के बारे में नहीं सोच पाते। ऐसे समय में जब वे अनुत्पादक हो चुके है उनके बच्चे एक स्पर्धा का हिस्सा है जिसमें आगे बढ़ने के लिए लगातार आर्थिक सुरक्षा की आवश्यकता होती है। तब वे अपने मातापिता को अपने आर्थिक गणित में जोड़ना भूल जाते हैं। वृद्धावस्था में बच्चों पर आश्रितता बढ़ जाती हैं छोटीमोटी जरूरतों के लिए भी उन्हें दूसरों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं।

कई बार देखा गया है कि जिन वृद्धों के पास धनसंपत्ति है, तब तक उनकी अच्छे से देखभाल हो रही है। साथ में यह भी देखा होगा कि माता-पिता की धन-संपत्ति हथियाने के लिए उनके रोजमर्रा के जीवन को नरक बना दिया जाता है जिससे हताश होकर कई वृद्ध अपने घरों को त्यागने पर मजबूर हो जाते हैं। दूसरी तरफ ऐसे कई सारे मामले दिखते हैं जिसमें वित्तीय कमी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं से उन्हें वंचित रहना पड़ता है। वृद्धावस्था आर्थिक रूप से अनुत्पादकता की अवस्था होने के कारण किसी भी प्रकार की बाहरी आर्थिक सहायता को प्राप्त करने में वृद्ध असमर्थ होता है। ऐसे में उनका जीवन और भी दुखद और दयनीय बन जाता है। स्वास्थ्य की समस्याएँ:- जैसे कि वृद्धावस्था की परिभाषा में ही निहित है कि वृद्धावस्था स्वयं एक बीमारी की अवस्था है। ऐसे में उन्हें खास देखभाल की आवश्यकता होती है। उनका स्वास्थ्य ठीक हो तो वृद्धावस्था का बोझ सहनीय हो जाता है किंतु विभिन्न सर्वेक्षण बताते हैं कि बृद्धोंका एक बड़ा हिस्सा मधुमेह दृष्टिदोष, आर्थरायटिस, रक्तचाप जैसे बीमारियों का शिकार बन जाता है।

पॉल वी लेकर ने वृद्धों की शारीरिक अवस्था का वर्णन करते हुए कहा है कि वृद्धावस्था में शारीरिक गिरावट की गति अपेक्षाकृत तेज हो जाती है और लंबी बीमारी तथा अक्षमताओं की उपस्थिति में वृद्धि हो जाती है। रक्त संचार प्रणाली, जो कि शरीर की विभिन्न प्रणालियों के नियमित संचालन को सुनिश्चित करती है कि क्षमता में उम्र बढ़ने के साथ शरीर में शिथिलता आती है और वृद्ध व्यक्ति को स्वयं आंतरिक और बाह्य पर्यावरण में परिवर्तन से दबाव महसूस होता है। प्राय साठ वर्ष से उपर के व्यक्ति में शारीरिक शक्ति की आवश्यकताओं में कमी आने से माँसपेशियों की गतिविधियों में भी कमी आने लगती है और उसकी पाचन प्रणाली कमज़ोर होने लगती है। इस अवस्था में ऑक्सीजन की खपत भी घटने लगती है। वृद्ध अवस्था में मलमूत्र प्रणाली संबंधित शिथिलता भी आ सकती है और इन पर नियंत्रण कमजोर हो जाता है। वृद्ध व्यक्तियों की चलने-फिरने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे पराश्रित हो जाते है। वृद्ध व्यक्तियों में रोगप्रतिकारक क्षमता की कमी के कारण वे जल्द ही किसी भी बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

तथा उनकी बीमारी को ठीक होने में अन्य की अपेक्षा ज्यादा समय लगता है। अगर वे ठीक हो जाते है तो रोगमुक्ति के बाद उनके संवर्धन की गति धीमी हो जाती है। उनकी स्वाद शाक्ति में कमी आने के कारण भोजन सुरस नहीं लगता, जिससे पाचन में कठिनाई होती है। वय वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति से भूल होने की संभवना बढ़ जाती है। ऐसे में इनके लिए उपचार के साथ-साथ देखभाल भी जरूरी होती है। किंतु बहुत से परिवार के लोग वृद्धों की बीमारियों को बीमारी न मानकर प्राकृतिक नियम मान कर उनके उपचार के प्रति सजग नहीं होते या फिर आर्थिक समस्या के कारण वे वृद्धों के उपचार पर खर्च नहीं करना चाहते। ऐसे में वृद्ध भी कभी-कभार अपनी आर्थिक स्वतंत्रता खोने के कार स्वाभिमानी मृत्यु की अपेक्षा रखने लगते है। छिट-पुट बीमारियों को अनदेखा करने के कारण उनकी बीमारियाँ भयंकर रूप धारण कर लेती है। ऐसे में उपचार संसाधनों की कमी परिवार का निम्नस्तरीय आर्थिक ढाँचा आदि कारण से वे मृत्यु को प्राप्त करते हैं।


पारिवारिक उपेक्षा:-

भारत के केरल, तमिलनाडु महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में हेल्पऐज इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है क्दिन राज्यों में कुल वृद्धों की जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत अकेले ही जीवनयापन कर रहा है। पिछले दो दशकों में इस अनुपात में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। इसमें भी महिलाओं के मामले में यह वृद्धि अधिक पाई गई है।


वृद्धावस्था ऐसी अवस्था होती है जिसमें परिवार के सहारे की अपेक्षा बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें सहारा न मिलने के कारण या परिवार के सदस्यों द्वारा उनकी उपेक्षा करने के कारण उनकी स्थितियाँ अत्यंत दयनीय हो जाती है। परिवार में अपमान प्रताड़ना और विभिन्न प्रकार का शोषण लगातार होने के कारण उनमें विभिन्न विकार उत्पन्न होने की संभावना होती है। 2011 के आँकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में आवासों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। औद्योगीकरण और प्रवासन के कारण युवा वर्ग अपने वृद्ध माता पिता को अकेले छोड़ने के लिए मजबूर है। शहरों के घरों से वृद्ध धरिधीर गायब हो रहे हैं, क्योंकि उनकी जिम्मेदारी लेनेवाला था उनकी देखभाल करने के लिए परिवार में कोई सदस्य उपलब्ध नहीं हैं। 


ऐसे कई कारणों से परिवार में वृद्धों की उपेक्षा लगातार हो रही है या इसके लिए परिवार के सदस्य मजबूर हैं। हिंदी फ़िल्म 'पेइंग गेस्ट' तथा पीकु' में वृद्धों की पारिवारिक उपेक्षा को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। आर्थिक स्वतंत्रता के खत्म होने के कारण उनको अपने परिवार पर निर्भर होना पड़ता है किंतु ऐसे में उनके प्रति परिवार के सदस्यों का गैर-जिम्मेदार होना वृद्धों के लिए किसी आपात से कम नहीं है। राम अहुजा (2016) अपनी पुस्तक सामाजिक समस्याएँ में वृद्धावस्था और वृद्धों से दुर्व्यवहार में वृद्धावस्था की समस्याओं को निम्नलिखित रूप से रेखांकित करते हैं


1. स्वास्थ्य में गिरावट 


2. आर्थिक सुरक्षा


3. पृथकता / अलगाव 


4. उपेक्षा


5. दुर्व्यवहार


6. भव


7. बोरियत


8. आत्म सम्मान की कमी


9. नियंत्रण की कमी


10. वृद्धावस्था के लिए तैयारी की कमी


इसके साथ ही वृद्धों के साथ होने वाले दुराचारों के प्रकारों को भी वे दर्शाते है जिसमें निम्नलिखित प्रकार के मुख्य दुराचार भारतीय परिप्रेक्ष्य में दिखाई देते हैं.


1. शारीरिक शोषण:-

 उदाहरण के लिए खरोंच, कांटना थप्पड़ मारना, धक्का देना, मारना, जलाना तथा हथियार से बार या धमकी आदि शामिल है। 


2. यौन शोषण:- 

अपमानजनक यौन संपर्क बुजुर्गों के मर्जी के खिलाफ़ जानबूझकर सीधे जनानांग गुदा, कमर, स्तन, मुंह बांप नितंबों को छूना या उसके साथ छेड़खानी करना आदि 3. आवश्यकताओं पर रोक लगाना तथा संपत्त को हानि पहुँचाना:- इसमें धमकी कार्य, आक्रामक रणनीति, आपात का अनुभव मानसिक भावात्मक शोषण, अपमान या शर्मंदगी, व्यवहार नियंत्रित करना (परिवहन, टेलीफोन, पैसा या अन्य संसाधनों के उपयोग पर रोक लगाना), सामाजिक अलगाव बहिष्कार आदि इसमें शामिल है।


4. आवश्यकताओं की उपेक्षा एक बूढ़े व्यक्ति की शारीरिक भावात्मक या सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए देखभाल करने वाले या अन्य जिम्मेदार व्यक्ति की विफलता या इनकार इसी उपेक्षा के अंतर्गत आती है। उदाहरण के तौर पर पर्याप्त पोषण स्वच्छता, वस्त्र, आवास, या आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल या सुरक्षित वातावरण आदि के प्राप्ति में अवरोध खड़े करना।


5. परित्याग:- 

देखभालकर्ता या अन्य जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा वृद्धों का जान-बूझकर परित्याग करना इसमें शामिल हैं।


6. आर्थिक शोषण:-

 मौद्रिक दुरूपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए संसाधनों का अनुचित अनधिकृत दुरूपयोग उदाहरण के लिए जालसाजी पैसे या संपत्ति की चोरी वित्त या संपत्ति का आत्मसमर्पण कराने के लिए बलात्कार या धोखे का उपयोग, संरक्षणकर्ता या वकीलों की शक्ति का अनुचित उपयोग आदि।


हेल्पाऐज इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार भारत में बुजुर्गों के प्रतिदु व्यवहार की मात्रा में लगातार वृद्धि दर्ज हुई है।