भारत की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ और उनका प्रभाव - Major social problems of India and their impact
भारत की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ और उनका प्रभाव - Major social problems of India and their impact
भारत एक बहुलवादी देश है और यहाँ कई प्रकार की जातियाँ, वर्ग, धर्म, संप्रदाय मत आदि विद्यमान है। विविधता होने के कारण यहाँ सामाजिक समस्याओं को पनपने का प्रयाप्त वातावरण प्राप्त हो जाता है।
भारत की प्रमुख समस्याएँ और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव निम्न वर्णित है निर्धनता निर्धनता एक प्रकार की दशा है, जो समाज को विघटित करता है। सामाजिक समस्याओं के मूल के रूप में कई विद्वानों द्वारा निर्धनता को विश्लेषित किया गया है। सामान्य तौर पर निर्धनता वह स्थिति है, जो शारीरिक आवश्यकताओं (रोटी, कपड़ा और मकान) की पूर्ति कर पाने में असमर्थता व्यक्त करती है।
निर्धनता को पोषण के स्तर द्वारा भी निर्धारित किया जाता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 2,400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में 2,100 कैलोरी निर्धारित किया गया है। निर्धनता को स्पष्ट करने के लिए प्रमुख रूप से तीन परिस्थितियों का इस्तेमाल किया जाता है
• जीवन यापन हेतु आवश्यक धन
निम्नतम जीवनयापन स्तर और समय व स्थान विशेष पर प्रचलित जीवन स्तर
• समाज में समृद्धि और निर्धनता की दशाओं की तुलना
निर्धनता के कारण समाज में कई समस्याओं का जन्म हो जाता है। इसी से समाज में जनसंख्या वृद्धि बेरोजगारी, भुखमरी आदि प्रकार की सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। बेरोजगारी
बेरोजगारी का सीधा अर्थ है रोजगार की अनुपलब्धता बेरोजगार व्यक्ति वह है जिसमें कमाने की क्षमता, सामर्थ्य व इच्छा की उपस्थिति होते हुए भी वह वैतनिक काम से वंचित है और व्यक्ति विशेष की यह दशा ही बेरोजगारी है। बेरोजगारी के लिए मूल रूप से तीन तत्वों को अंकित किया जा सकता है
काम करने की प्रतिभा / क्षमता
काम करने की इच्छा
काम तलाशने का प्रवास
इन सभी तत्वों की उपस्थिति के आधार पर ही हम पूर्ण बेरोजगारों की दशा को समझ सकते हैं। इनमें से किसी तत्व की अनुपस्थिति अथवा किसी एक ही तत्व की उपस्थिति को पूर्ण बेरोजगारी के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी भिखारी को ही ले लिया जाए, तो वह काम करना नहीं चाहता और ना ही वह उसे ढूंढने का प्रयत्न करता है वहाँ कोई अस्वस्थ्य व्यक्ति किसी काम करने के लिए अपनी योग्यता को प्रस्तुत नहीं कर सकता। ये दशार बेरोजगारी की दशा में शामिल नहीं की जा सकती। ऐसा तभी हो सकता है, जब उनकी निष्क्रियता अथवा उदासिनता की अवधि अत्यंत न्यून हो। बेरोजगारी बहुत बड़ा अभिशाप माना जाता है और अनेक विद्वानों की वैचारिकी में इससे संबंधित मंथन भिन्न-भिन्न प्रकार का है। कुछ इसलिए औद्योगिक संरचना में आई मंदी का परिणाम मानते हैं तो कुछ आर्थिक प्रतिस्पर्धा की अवैयक्तिक शक्तियों का परिणाम मान कुछ विद्वानों का मानना है कि बेरोजगारी मात्र आर्थिक कारणों से ही उत्पन्न नहीं होती है, अपितु इसके लिए सामाजिक और वैयक्तिक भौगोलिक गतिहीनता, आदि प्रकार के सामाजिक कारण इसके लिए जिम्मेदार हैं और अस्वस्थता, अनुभवहीनता, अकुशलता, असमर्थता आदि वैयक्तिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। सांप्रदायिकता
सामान्यतः सांप्रदायिकता अथवा संप्रदायवाद से लोगों का यह आशय होता है कि यह धर्म भाषा, संप्रदाय, क्षेत्र, प्रजाति, भाषा में से किसी भी एक आधार पर किया गया विरोध है, जो एक समूह को दूसरे से पृथक रहने की भावना से ग्रसित होता है, परंतु वास्तविकता यह है कि सांप्रदायिकता में संस्कृति भाषा, क्षेत्र आदि के पृथक्करण का कोई महत्व नहीं होता है। अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप के कतिपय भागों में प्रजातीय आधार पर सांप्रदायिक संघर्ष हुए, परंतु भारत में यह धारणा पूर्णरूप से धार्मिक अधभक्ति से प्रेरित है। नई आर्थिक नीति और वैधीकरण के दौर ने भारत में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की प्रमुख गतिविधियों में सांप्रदायिकता को शामिल कर दिया बाबरी मस्जिद विध्वस का गोधरा कांड के फलस्वरूप गुजरात में उभरे दंगे मुंबई कांड मुजफ्फरनगर कांड पंजाब में अकाली दल और डेरा सच्चा सौदा के मध्य सांप्रदायिक तनाव आदि ने इसे अंतरराष्ट्रीय फलक के मुद्दे के रूप में स्थापित कर दिया।
सांप्रदायिकता के दुष्परिणाम निम्न है
1. आपसी संघर्ष के कारण राष्ट्रीयता पर दुष्प्रभाव
2. राजनैतिक अस्थिरता और अविश्वास
3. सार्वजनिक जन-धन की हानि
4. विभिन्न समूहों में पारस्परिक अविश्वास की भावना
5. औद्योगिक विकास में रुकावट
6. अराजक तत्वों में वृद्धि मद्यपान
मद्यपान वह स्थिति है, जिसमें एक व्यक्ति मदिरा लेने की मात्रा पर नियंत्रण इस कदर खो बैठता है कि वह मंदिरा पीना शुरू करने के पश्चात उसे बंद करने में सदैव असमर्थ रहता है। मद्यपान का व्यसन
अल्पकालिक सुखद मनोदशा उत्पन्न करने के प्रयोजन से किया जाता है, परंतु इसके परिणाम अत्यंत
घातक हो सकते हैं। मोटे तौर पर मद्यपान को निम्न कारकों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है
• मदिरा का अत्यधिक सेवन
● व्यक्ति द्वारा स्वयं के पीने पर बढ़ती हुई चिता
• मंदिरा पान करने वाले का स्वयं पर नियंत्रण खो देना
● अपने सामाजिक विश्व में कार्य करने में कठिनाई का अनुभव करना
भ्रष्टाचार शांति मैत्री 'भ्रष्टाचार' शब्द दो शब्दों के युग्म से बना है भ्रष्ट और आचार भ्रष्ट अर्थात् बुरा या बिगड़ा हुआ और आचार का अभिप्राय आचरण से है। भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है, वह आचरण, जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो। सरल शब्दों में भ्रष्टाचार को रिश्वत का काम कहा जा सकता है। वैयक्तिक लाभ हेतु सार्वजनिक शक्ति का प्रयोग कानून का उल्ल्चन सामाजिक मानदंडों की अवहेलना आदि को इसमें सम्मिलित किया जा सकता है। इसमें टैक्स चोरी, ब्लैकमेल करना, झूठी गवाही अथवा मुकदमा करना, परीक्षा में नकल करना/कराना, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन करना (सही उत्तर पर अंक न देना और गलत अथवा अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना), विभिन्न पुरस्कारों के लिए चयनित लोगों में पक्षपात करना, पैसों के लिए वोट देना, बोट के लिए पैसा और शराब आदि बाँटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना आदि भी भ्रष्टाचार के अंतर्गत ही सम्मिलित किए जाते हैं।
सामाजिक समस्याओं की अवधारणा और कई विद्वानों की परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया कि सभी प्रकार की समस्याएँ सामाजिक समस्याओं की सूची में सम्मिलित नहीं होती हैं, इसके लिए आवश्यक है कि समस्या के प्रति समाज का एक बड़ा जनसमूह गंभीर और चिंतित हो। इसके अलावा इस इकाई में सामाजिक समस्याओं की विशेषताओं उत्पत्ति और उसके लिए उत्तरदायी कारकों पर भी चर्चा की गई है। अंततः इस इकाई में भारत की प्रमुख सामाजिक समस्याओं यथा- निर्धनता, बेरोजगारी, मद्यपान, सांप्रदायिकता व भ्रष्टाचार बारे में विश्लेषण प्रस्तुत किया गया और साथ ही इसके परिणामों से भी अवगत कराने का प्रयास किया गया है।
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