कंपनी अधिनियम के सिद्धांत - principles of companies act
कंपनी अधिनियम के सिद्धांत - principles of companies act
भारतीय कंपनी अधिनियम कुछ सिद्धांतों पर आधारित हैं। इन सिद्धांतों का क्रमवार विश्लेषण निम्नलिखित हैं:
1) विशिष्ट उद्देश्य : प्रत्येक कंपनी की स्थापना कुछ विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। कंपनी की समस्त क्रियायें इन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है। कंपनी के उद्देश्यों से भिन्न की गई क्रियायें व्यर्थ मानी जाती है, जिसके लिए कंपनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
2) लोकतांत्रिक प्रबंधन :- कंपनीकी प्रबंधन व्यवस्था कंपनी के सदस्यों द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों के द्वारा की जाती है जिन्हें कंपनी के संचालन के नाम से जाना जाता है। संचालकों के कार्य से संतुष्ट न होने पर सदस्य कभी भी संचालकों को उनके पद से हटा सकते हैं।
3) सीमित दायित्व :- यह कंपनी का आधारभूत सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार कंपनी के सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों के अंकित मूल्य तक ही सीमित रहता है, उससे अधिक सदस्यों से मांग नही की जा सकती है चाहे कंपनी को कितना ही नुकसान क्यो न थे।
4) अल्पमता एवं विनियोक्ताओं के हितों की सुरक्षा :- कंपनी अधिनियम के अंतर्गत अल्पत वाले सदस्यों एवं विनियोक्ताओं के हितोंकी सुरक्षा के लिए कंपनी अधिनियम में विभिन्न प्रावधानों का समावेश किया गया है।
5) पृथक अस्तित्व :- कंपनी का अस्तित्व उसके सदस्यों से पृथक रहता है।
कंपनी द्वारा किये गये समस्त कार्यों के लिए कंपनी स्वयं एवं सदस्यों द्वारा किये गये कार्यों के लिए सदस्य स्वयं उत्तरदायी रहात है। दोनों एक दूसरे को अपने द्वारा किये गये कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं बना सकते।
6) शाश्वत अस्तित्व :- कंपनी का अस्तित्व शाश्वत एवं चिरस्थायी होता है। नये सदस्यों के आने तथा पुराने सदस्यों के जाने से कंपनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किसी सदस्य के दिवालिया में जाने, पागल हो जाने, मृत्यु हो जाने आदि घटनाओं का कंपनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
7) अंशों का हस्तांतरण :- कंपनीमें उसके अंतरनियमों के अधीन अंश हस्तांतरणीय होते हैं
अर्थात अंशधारी अपने द्वारा धारित किये गये समस्त अथवा कुछ अंशों का हस्तांतरण कर सकता है।
8) नियंत्रण, निरीक्षण, पर्यवेक्षण एवं जाँच :- कंपनी के मामलों में नियंत्रण, निरीक्षण, पर्यवेक्षक एवं जाँच का आदेश केन्द्रीय सरकार अथवा न्यायालय द्वारा किया जा सकता है तथा दोषी व्यक्ति को अनियमितता के लिए दंडित किया जा सकता है।
9) समामेलन एवं समापन :- कंपनी का समामेलन एवं समापन दोनों ही कार्य कंपनी अधिनियम के अंतर्गत ही किया जा सकता है।
10) सामूहिक स्वामित्व :- कंपनी पर किसी व्यक्ति विशेष का स्वामित्व न होकर व्यक्तियों के समूह जो कंपनी के अंशधारी होते हैं,
का स्वामित्व होता है। व्यक्तियों का यह समूह अपने अधिकारों का उपयोग पृथक-पृथक न कर कंपनी की सभा में प्रस्ताव पारित कर करता है।
11) पृथक्करण का सिद्धांत :- यह कंपनी का आधारभूत सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार कंपनी का स्वामित्व एवं प्रबंधन भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के पास हो सकता है।
12) न्याय एवं समता :- कंपनी में समान प्रकार के ऋणदाताओं तथा अंशधारियों के साथ न्यायपूर्ण एवं समानता का व्यवहार किया जाता है।
13) सार्वमुद्रा का उपयोग :- कंपनी के समस्त दस्तावेजों एवं प्रलेखों तथा कंपनीके अधिकारियों द्वारा किये गये हस्ताक्षरों के साथ कंपनी की सार्वमुद्रा का उपयोग करना आवश्यक होता है क्योंकि कंपनी की सार्वमुद्रा कंपनी के हस्ताक्षर तथा उसके अस्तित्व का प्रतीक होता है। ऐसा अनुबंध जिसपर कंपनी की सार्वमुद्रा अंकित नहीं है, के लिए कंपनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
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