सदस्यों के दायित्व के आधार पर पंजीकृत कंपनियों के प्रकार - Types of companies registered on the basis of liability of the members

सदस्यों के दायित्व के आधार पर पंजीकृत कंपनियों के प्रकार - Types of companies registered on the basis of liability of the members


कंपनी अधिनियम सदस्यों के दायित्व के आधार पर निम्नलिखित तीन प्रकार की कंपनियों के पंजीकरण की व्यवस्था करता है :


क) शेयरों द्वारा सीमित कंपनियों


ख) गारंटी


ग) असीमित कंपनियों


ये सभी कंपनियों सार्वजनिक कंपनीया निजी कंपनी या एकजन कंपनी हो सकती है।


क) शेयरों द्वारा सीमित कंपनियों :- कंपनी अधिनियम की धारा 2 (22) के अनुसार, “यदि किसी कंपनी के सदस्यों का दायित्व संस्था के ज्ञापन पत्र के अधीन सदस्यों द्वारा खरीदे गये शेयरों की अदल राशि,

यदि कोई हो तक ही सीमित हो, तो ऐसी कंपनी को शेयर द्वारा सीमित कंपनी कहते है।" सदस्यों के दायित्व का प्रवर्तन कंपनी के जीवनकाल में अथवा उसके समापन के समय किया जा सकता है। ऐसी कंपनी में सदस्यों की दायित्व सीमा उनके द्वारा लिये गये शेयरों के अंकित मूल्य द्वारा ही निश्चित की जाती है। अपने देश में अधिकांश कंपनियों इसी प्रकारकी है और वास्तव में इसी प्रकार की कंपनियों से हम मुख्यत: संबंधित हैं।


ख) गारंटी द्वारा सीमित कंपनियों :- कंपनी द्वारा धारा 2 (21) के अनुसार, "यदि किसी कंपनी के सदस्यों का दायित्व उसके ज्ञापन पत्र के अधीन ऐसी राशि तक सीमित है जितनी उसके सदस्यों ने कंपनी के समापन के समय कंपनी की संपत्ति में देना स्वीकार किया है,

तो ऐसी कंपनी को गारंटी द्वारा सीमित कंपनी कहते है।" इस प्रकार की कंपनियों में सदस्यों का दायित्व केवल तभी उत्पन्न होता है जब कंपनी के समापन की प्रक्रिया शुरू हो जाये, जबकि शेयरों द्वारासीमित कंपनियों की दशा में दायित्व, यदि कोई हो, कंपनी के जीवनकाल में एवं समापन के दौरान कभी भी उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए वाणिज्य, कला, विज्ञान, संस्कृति, खेल-कूद आदि को प्रोत्साहन देने के लिए बनायी जानेवाली गैर-व्यापारिक कंपनियों का समामेलन गारंटी द्वारा सीमित कंपनियों के रूप में होता है।


ग) असीमित कंपनियाँ :- कंपनी अधिनियम की धारा 2(92) के अनुसार, “यदि किसी कंपनी के सदस्यों के दायित्व की कोई सीमा न हो तो उसे असीमित कंपनी कहते है।" इस प्रकार की कंपनियों मैं सदस्यों का दायित्व कंपनी में उनके हित के अनुपात में होता है

तथा कंपनी के दायित्व के भुगतान के लिए सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्तियों को भी प्रयुक्त किया जा सकता है। इस प्रकार की कंपनी तथा एक साझेदारी संस्था में यह महत्वपूर्ण अंतर होता है कि ऐसी कंपनी के ऋणदाता भुगतान न मिलने की दशा में कंपनी के सदस्यों पर, साझेदारों के समान, व्यक्तिगत रूप में वाद प्रस्तुत नहीं कर सकते और उन्हें कंपनी पर ही वाद चलाना पड़ता है या कंपनी के समापन की कार्यवाही आरंभ करनी पड़ती है क्योकि पंजीयन होने के कारण कानून की दृष्टि में कंपनी एक पृथक वैधानिक अस्तित्व रखती है। ऐसी कंपनी के सदस्यों को केवल समापन के समय ही दायी ठहराया जा सकता हैं। इस प्रकार की कंपनी धारा 67 द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से मुक्त होती है। ये अपने शेयर खरीद सकती है अथवा अपने शेयर खरीदने के लिए किसी व्यक्ति को अग्रिम राशि दे सकती है। वर्तमान समय में ऐसी कंपनियाँ बहुत कम पाई जाती है।