दीर्घकालिक सृजनात्मक तनाव - chronic creative stress

दीर्घकालिक तनाव से अभिप्राय उस तनाव से है जिसे एक कवि लम्बे अरसे तक कई धरातलों पर अपने भीतर संयोजित करता रहता है। यह तनाव यथार्थ के बदलते रूपों, प्रसंगों, मस्तिष्क पर अपना प्रभाव छोड़ती हुई घटनाओं तथा अनगिनत विचारों को लेकर चलता है। लम्बी कविता का सीधा सम्बन्ध आधुनिक जीवन के विविध रूपों और जटिलताओं के साथ जुड़े हुए तनाव से है। लम्बी कविता में तनाव का दीर्घ फलक रहता है और उसकी अभिव्यक्ति भी वैसी ही दीर्घ फलक पर होती है। तनाव की अभिव्यक्ति हो जाने के बाद, वह तनाव कवि का न रहकर पाठक तक पहुँचता है।

परिणामस्वरूप पाठक भी उन्हीं दीर्घकालिक तनाव की दशाओं में से गुजरता है जिन से कविता सृजन की प्रक्रिया के वक्त स्वयं कवि गुजरा होता है। 'रवि हुआ अस्त' के साथ ही अनिर्णित युद्ध के परिणामस्वरूप उपजे एक विचित्र तनाव की स्थिति से इस कविता की शुरुआत होती है। यह तनाव और हताशा पूरी कविता में बने रहते हैं और पाठक के हृदय को द्रवीभूत करते हैं। निराला ने राम को सामान्य मानव के रूप में चित्रित करते हुए युद्ध में राम को पराजय के भय से शंकित और आक्रान्त दिखाया है। राम चिन्तित और तनाव ग्रस्त हैं कि साक्षात् रणदेवी रावण के पक्ष में खड़ी है।

घोर निराशा और अवसाद से ग्रस्त राम के नेत्रों से अश्रु बिन्दु टपक पड़ते हैं -


" अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।" कहते छल छल हो गए नयन, कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,


इसी प्रकार शक्ति-पूजा के दौरान एक कमल देवी द्वारा चुरा लिए जाने पर भी वह अत्यन्त व्याकुल हो जाते हैं। उनका यह तनाव, व्याकुलता, निराशा, अवसाद इस कविता का केन्द्रीय तत्त्व बनकर इसे संचालित करते हैं। राम की व्याकुलता और तनाव पाठक श्रोता को भी उद्वेलित कर देते हैं।