लोक कला की शिल्प कलाएँ - folk art crafts

लोक कला की शिल्प कलाएँ - folk art crafts


भारतीय लोक कलाओं में शिल्प कला का विशेष महत्त्व है। शिल्प से तात्पर्य ऐसे कलात्मक कार्य से है जो दैनिक व्यवहार में उपयोगी होने के साथ ही साज-सज्जा के काम भी आता है। ये कलाएँ धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्त्व रखती हैं। भारत के विभिन्न प्रदेशों में हस्तशिल्प कलाओं का अकूत खजाना विद्यमान है। यहाँ के शिल्पकार अपने हाथों के कौशल और साधारण औजारों से ऐसी अनेक कलात्मक वस्तुओं का सृजन करते हैं जो दैनिक जीवन में उपयोगी होने के साथ ही हमारी सौन्दर्य-पिपासा को भी तृप्त करती हैं। भारत में प्रचलित विभिन्न शिल्प कलाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-



1. मृदा शिल्प


भारत में मृदा शिल्प की परम्परा प्राचीन है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में सिन्धुघाटीकालीन मिट्टी के बर्तन और खिलौने प्राप्त हुए हैं जो सुन्दर नक्काशी से युक्त हैं। ये तत्कालीन कला-प्रेम और शिल्प-कौशल को दर्शाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले जनसाधारण के लिए मृदा शिल्प आजीविका का पारम्परिक साधन है। विरासत से प्राप्त इस कला का प्रयोग कुम्हार जाति के लोग दैनिक उपयोग की वस्तुओं के साथ ही कलात्मक शिल्प के निर्माण में भी करते हैं। उत्तरप्रदेश में खुर्जा परम्परागत मिट्टी के बर्तनों का प्रसिद्ध केन्द्र है, वहीं जयपुर के नीली मिट्टी के बर्तन विश्व प्रसिद्ध हैं।


2. पाषाण शिल्प


पाषाण शिल्प के अन्तर्गत पत्थर से बनी विविध उपयोगी वस्तुएँ, मूर्तियाँ और भवन आदि की गणना की जा सकती है। इस कला का विकास प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था। पाषाण शिल्प में आम उपयोग की वस्तुएँ, जैसे पत्थर की कूँडी, चकला, सिलबट्टा, घट्टी, ओखली आदि बनाए जाते हैं। वहीं धार्मिक आस्था के रंग में डूबा लोक शिवलिंग, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को भी बड़ी श्रद्धा के साथ स्वीकारता है। विविध प्रकार के पत्थरों का प्रयोग आभूषणों में भी किया जाता है। पत्थरों पर नक्काशी कर सुन्दर भवन निर्माण की परम्परा भी प्राचीन है। विभिन्न प्राचीन मन्दिर और महल इस कला के सुन्दर उदाहरण हैं।


3. काष्ठ शिल्प


भारत में उन्नत किस्म की लकड़ी यथा सागौन, रोजवुड, शीशम, चीड़ आदि बहुतायत में मिलती है। इस लकड़ी का प्रयोग करते हुए काष्ठ शिल्पकार विविध प्रकार की कलात्मक मूर्तियाँ, खिलौने, आभूषण आदि का निर्माण करते हैं। दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले सामान जैसे, दरवाजे, सन्दूक, अलमारी, मेज आदि को काष्ठ- शिल्पकार अपनी कलात्मक सोच और कौशल से उत्कृष्ट सौन्दर्य प्रदान करते हैं। भारत में बनी विविध काष्ठ- शिल्प कलाकृतियों की विदेशों में बहुत माँग रहती है।


4. लाख शिल्प


लाख एक प्राकृतिक राल है। लाख शिल्पकार इसे पिघलाकर इसमें रंग मिलाते हैं और फिर उसे साँचों में ढालकर विविध उपयोगी और सुन्दर वस्तुएँ बनायी जाती हैं। उन पर काँच-मोती द्वारा सजावट की जाती है। चूड़ी बनाने के लिए लाख को तपाकर रस्सी की तरह डोर बनायी जाती है और फिर उसे चूड़े का आकार दिया जाता है। शिल्पकार साधारण उपकरणों और अपने विशिष्ट कौशल का समन्वय कर सुन्दर चूड़े बनाता है। लाख का शिल्पी लखारा कहलाता है।


5. जूट शिल्प


विविध लोक-कलाओं और शिल्प की यह प्रमुख विशेषता है कि वे सहज उपलब्ध साधनों से निर्मित होते हैं।

इस श्रेणी में जूट शिल्प भी आता है। जूट शिल्प के कारीगर जूट द्वारा विविध कलात्मक वस्तुओं का निर्माण करते हैं। जूट द्वारा निर्मित बैग, दीवार पर लगाई जाने वाली कलात्मक आकृतियाँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। ग्रामीण परिवेश में सोने और बैठने के लिए चारपाई का प्रयोग किया जाता है जिसमें जूट की बुनाई की जाती है । इस कार्य को भी शिल्पकार अत्यन्त कुशलता से करते हुए बुनाई में सुन्व कलाकृतियाँ बना कर साधारण-सी चारपाई को अद्भुत कलाकृति में बदल देता है।


6. शैल शिल्प


समुद्री किनारों पर रहने वाले लोक समाज ने वहाँ से नित्यप्रति प्राप्त होने वाली सीपियों, शैलों का प्रयोग कर शैल शिल्प का मार्ग प्रशस्त किया।

शैल-शिल्पी इन शैल-सीपियों को कलात्मक आभूषण, झालर (पर्दे) आदि विविध आकृतियाँ बनाने में प्रयुक्त करते हैं। समय की माँग को देखते हुए शिल्पकारों ने अपनी कला और सोच में पर्याप्त बदलाव किये परिणामस्वरूप आज शैल के प्रयोग से विविध सजावट की वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है।


7. बँधेज


यह राजस्थान की शिल्प कला है। बंधेज का अर्थ है, 'कपड़े को विविध आकृतियों के अनुरूप बाँधकर या गाँठ लगाकर रंगना।' इस प्रक्रिया में साधारण सा वस्त्र भी सुन्दर आकृतियों और रंगों से युक्त हो जाता है।

राजस्थान की यह कला भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है। बँधेज सौन्दर्य के साथ सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है । अतः राजस्थान की प्रत्येक नारी के पास बँधेज के वस्त्रों की शृंखला मिल जाती है। विभिन्न त्योहारों और अवसरों के अनुकूल अलग-अलग बँधेज का प्रचलन है।


प्रस्तुत हस्तशिल्प कलाएँ तो एक संकेत मात्र हैं। वास्तव में भारत के विभिन्न प्रदेशों में हस्तशिल्प कला के इतने रूप प्रचलित हैं

कि उनकी गणना करना दुकर है। लोक समाज की प्रत्येक गतिविधि किसी-न-किसी रूप में कला को सहेजती है। इस प्रकार लोक समाज विविध कलाओं को संरक्षण देता है और अप्रत्यक्ष रूप में अपनी संस्कृति और परम्परा को सहेजता है। ये कलाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती हैं। इस प्रकार ये कलाएँ कल-आज-कल को जोड़ने वाली बेहतरीन कड़ियाँ हैं जो परिवार-समाज- देश को एकता के सूत्र में पिरोती हैं।