कामायनी का प्रस्तुत अर्थ - Present meaning of Kamayani

कामायनी का प्रस्तुत अर्थ - Present meaning of Kamayani


जलप्लावन के बाद मनु चिन्तित हैं। उनका परिचय श्रद्धा से होता है और वे कर्म में प्रवृत्त होते हैं। फिर उनका अहं समाप्त हो जाता है परन्तु आसुरी प्रवृत्तियाँ आकुलि और किरात उन्हें फिर दुष्कर्म में लगा देती हैं किन्तु श्रद्धा के प्रभाव से उनका संस्कार होता है। अकस्मात् मनु का अहं फिर प्रबल होता है और वे श्रद्धा को छोड़कर इड़ा की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं। बुद्धि बल से सारस्वत प्रदेश में ऐश्वर्य भोग करते हैं। वहाँ भी अहं की तुष्टि नहीं होती इसलिए बुद्धि पर भी अधिकार चाहते हैं। तब प्रजा विद्रोह कर देती है। मनु हार जाते हैं। उनका फिर श्रद्धा से मिलन होता है। श्रद्धा अपने पुत्र कुमार को इड़ा को सौंपकर, मनु को साथ लेकर कैलाश पर्वत चली जाती है। वहाँ मनु त्रिपुरों का दर्शन करते हैं।

श्रद्धा बताती है कि ये भावलोक, कर्मलोक और ज्ञानलोक हैं। इनके अलग-अलग होने से संसार में अशान्ति हो जाती है और फिर श्रद्धा की मुस्कान के साथ तीनों लोक मिल जाते हैं तब मनु को अखण्ड आनन्द की प्राप्ति होती है। अन्ततः सारस्वत प्रदेश के निवासी मानसरोवर पहुँचते हैं और वृषभ का उत्सर्ग कर अखण्ड आनन्द प्राप्त करते हैं।


प्रतीकात्मक अर्थ


मन अपने प्रकृत रूप में मननशील और अहंकारी है। श्रद्धा के संयोग से उसका परिष्कार होता है परन्तु समय-समय पर आसुरी प्रवृत्तियाँ उसे श्रद्धारहित कर देती हैं जिससे भोग की प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती है तो वह प्राणमय कोश में पहुँच जाता है और बुद्धिचक्र में पड़कर भोग में लिप्त हो जाता है।

वह बुद्धि पर नियन्त्रण चाहता है पर सफलता नहीं मिलती है। वह कुण्ठित हो जाता है किन्तु श्रद्धा के संयोग से वह फिर विकास की ओर बढ़ता है। श्रद्धा के संयोग से उसकी तीनों मूलवृत्तियों इच्छा, क्रिया, ज्ञान में सामंजस्य घटित होता है तो मन का द्वैत समाप्त हो जाता है। तब उसे पूर्णानन्द की प्राप्ति होती है। श्रद्धा द्वारा अपने पुत्र कुमार को इड़ा को सौंपने का अर्थ यह है कि भावी मानवता श्रद्धा बुद्धि समन्वित हो पूर्ण विकास प्राप्त करे। अन्त में सारस्वतप्रदेशवासियों का मानसरोवर जाना दिखाया गया है उसका अर्थ यह है कि सम्पूर्ण मानवता भोग धर्म को त्याग कर अखण्ड आनन्द का प्राप्त करे। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कामायनी में रूपक तत्त्व विद्यमान है। इसमें कोई सन्देह नहीं।


कतिपय विद्वान् कामायनी को रूपक नहीं मानते। उनका कथन है कि यह एक ऐतिहासिक कथा है और पूर्णरूपेण इसमें सभी सांकेतिक अर्थ घटित नहीं होते। डॉ. भगीरथ दीक्षित कामायनी को ऐतिहासिक काव्य कहना उचित मानते हैं किन्तु वे रूपक को भी अस्वीकार नहीं करते। वे केवल मनु, श्रद्धा, इड़ा एवं मानव के ही प्रतीकार्थ लेते हैं, शेष पात्रों के नहीं। उनके अनुसार "जलप्लावन और श्रद्धा के पशु को मैं प्रतीक नहीं मान - पाता, जैसा श्री नगेन्द्र ने माना है। वैसा मानना, मेरे विचार में व्यामोह होगा। डॉ० नगेन्द्र कामायनी में रूपक तत्त्व स्वीकार करते हुए भी कथा के सूक्ष्म ब्योरों में उसकी पूर्ण संगति नहीं स्वीकारते, उनका कथन है- "एक प्रश्न और रह जाता है यह रूपक कहाँ तक संगत है ?

जहाँ तक कथा का सम्बन्ध है, रूपक सामान्यतः संगत और स्पष्ट है। -- उसमें कोई विशेष सैद्धान्तिक असंगति नहीं है। हाँ, कथा के सूक्ष्म अवयवों में संगति पूरी तरह नहीं बैठती । "34


यह सभी लेखकों ने स्वीकार किया है कि कामायनी में मूल कथा के अतिरिक्त एक अन्य कथा भी चलती है । भले उसका स्वरूप पूर्णतः स्फुटित न हुआ हो। अस्तु कामायनी चाहे पूर्णतः रूपात्मक कथाकाव्य न हो परन्तु उसमें प्रतीकों की स्थिति स्पष्ट होने के कारण एक प्रकार की रूपात्मकता है।