रामनरेश त्रिपाठी रचनात्मक प्रतिपाद्य - Ramnaresh Tripathi Creative Design

रामनरेश त्रिपाठी रचनात्मक प्रतिपाद्य - Ramnaresh Tripathi Creative Design


'पथिक' मानवीय आस्था, एकता, समानता, प्रेम और भाईचारे की ललक और आग्रह से परिपूर्ण खण्डकाव्य है। कवि रामनरेश त्रिपाठी गाँधीवाद के समर्थक हैं। मानवीय कल्याण व लोकहित की शक्तियों पर उनकी अटूट आस्था है। 'पथिक' में उनकी गाँधीवाद के प्रति निष्ठा अभिव्यक्त हुई है। रामनरेश त्रिपाठी हताश, निराश, दुखी और मानसिक रूप से हारे मनुष्यों के मन में दबी एक चिनगारी देखते हैं। उन्हें विश्वास है कि मनुष्य कभी-न-कभी उसी आशा, प्रेम और विश्वास से पुनः भर उठेगा। देश के लोग फिर से एकमन, एकप्राण हो सकेंगे। तब देश में कहीं द्वेष और अलगाव नहीं होगा। इसके लिए वे मानवीय विश्वास को खोजने तथा मनुष्य के कर्ममय होने की प्रबल आवश्यकता अनुभव करते हैं-


जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म निरत हैं। धुन है एक न एक सभी को सबके निश्चित व्रत हैं। जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है। तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ॥


(- पधिक द्वितीय सर्ग)


बढ़ती हुई अराजकता के मध्य समाज विकास पर जाने के बजाय एक विचित्र आपाधापी की स्थिति में पहुँच गया है। समाज में जाति, भाषा, धर्म, अर्थ आदि से प्रभावित राजनैतिक परिस्थितियों में पिसते आमजन, शोषित वर्ग को देखकर और उनकी पीड़ा तथा निर्मम, संवेदनहीन यथास्थितिवादी व्यवस्था का अनुभव कर कवि क्रान्तिकारी हो उठता है । पथिक साधारण लोगों की इस मनोदशा को भलीभाँति जानता है। वह जानता है कि प्रजा को छला गया है।

ऐसे में कवि प्रजा को उत्तरदायी स्वर देने का आग्रही है। कवि का पथिक सत्ताधरी लोगों को सचेत करता है और कहता है कि उन्हें (शासक वर्ग) को सत्ता का घटिया खेल बन्द करना होगा, क्योंकि अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए वे जिन मनुष्यों की जीवन सदैव दाँव पर लगाते हैं, वास्तव में वही आमजन देश व समाज के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं।


पथिक के माध्यम से कवि सम्पूर्ण भारतीय समाज की वास्तविक स्थिति उद्घाटित करता है। वह महसूस करता है कि दरिद्रता का दैन्य समाज और देश को खोखला कर रहा है।

पथिक की व्यापक दृष्टि उन परिस्थितियों को तलाश लेती है जो राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उत्तरदायी हैं। इतना होने पर भी 'पथिक' में कहीं भी कवि की तमंचाई उग्रता नहीं है। वहाँ परिवर्तन की आकांक्षा शान्त एवं संयमित स्वर में यातना शिविर को ध्वस्त करना चाहती है । पथिक-साधु संवाद के जरिएकवि सक्रियता उत्पन्न करने का अभिलाषी है-


फिर कहता हूँ डरो न दुःख से कर्म मार्ग सम्मुख है। प्रेम-पंथ है कठिन यहाँ दुःख ही प्रेमी का सुख है ॥ कर्म तुम्हारा धर्म अटल हो कर्म तुम्हारी भाषा । हो सकर्म मृत्यु ही तुम्हारे जीवन की अभिलाषा ॥


'पथिक' खण्डकाव्य रामनरेश त्रिपाठी की संवेदनशीलता और जनमानस के प्रति उनके गहरे लगाव का प्रबल साक्षी है।

कवि की बेचैनी जो उनकी पूर्ववर्ती रचनाओं में करुणार्द्र आत्मा का हिस्सा बनी रही, 'पथिक' में सफलतापूर्वक अभिव्यक्ति पा गई है। पथिक के निर्भय और निर्भीक कर्ममय चेतनापूर्ण मन ने सामाजिक भय और आतंक के बीच सच कहने की शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त कर ली है। लम्बी यात्रा से गुजरता हुआ पथिक कवि के निश्छल मन व मार्मिक संवेदना का परिचय देता है। कई बार तो पथिक स्वयं के विरोध में खड़ा दिखाई देता है जिसे काव्य विकास का मूल माना जा सकता है। इस प्रकार पथिक के माध्यम से अपने जीवनानुभवों को पाठकों के समक्ष रखता हुआ कवि मानवीय संवेदना व कर्ममय दृष्टि को अभिप्रेरित करता है।