मानवीय चेतना का काव्य - poetry of human consciousness
'राम की शक्ति-पूजा' में राम को पौराणिक पात्र होते हुए भी आधुनिक मानव के रूप में चित्रित किया गया हैं। तुलसीदास कृत रामचरितमानस में कहा गया है कि "रामकथा सुन्दर करतारी, संशय विहंग उड़ावन हारी" - अर्थात् रामकथा को सुनने मात्र से संशय का अन्त हो जाता है। वहीं 'राम की शक्ति-पूजा' में निराला ने राम का सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही संशय पर निर्मित किया है। उन्हें रावण पर विजय प्राप्त करने में संशय है-
स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय, रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय
इस दशा में जाम्बवन्त का परामर्श-
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण, हे पुरुष - सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण, आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर,
जाम्बवन्त की सलाह उनमें एक नयी चेतना का संचार करती है कि मनुष्य अपनी जिजीविषा और लगन से समस्त बाधाओं को पार कर सकता है। इस प्रकार निराला ने 'पुरुषोत्तम नवीन' राम के माध्यम से मानव समाज में एक नयी चेतना का संचार करने का प्रयास किया है।
मनुष्य यदि सत्य और धर्म के पथ पर बढ़ता है तो वह अपनी आन्तरिक शक्ति से मार्ग में आने वाली बाधाओं को सहज ही पार कर सकता है। लेकिन इसके लिए यह अनिवार्य है कि वह अपनी क्षमता और शक्ति को पहचाने और लक्ष्य पर अडिग रहे। 'राम की शक्ति-पूजा' में संघर्ष की परिस्थितियों को विजय की परिस्थितियों से अधिक उभारा गया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि निराला मनुष्य की चेतना को जाग्रत करना चाहते हैं कि कठिन से कठिन और विषम से विषम परिस्थितियों में भी हार स्वीकार नहीं करनी चाहिए। बार-बार गिरकर भी जो उठने का प्रयास करता है, उसे जीवन में विजयश्री अवश्य प्राप्त होती है।
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