विभिन्न माध्यम, संचार और सम्प्रेषण का अन्तरसम्बन्ध - Interrelationship of different media, communication and communication
विभिन्न माध्यम, संचार और सम्प्रेषण का अन्तरसम्बन्ध - Interrelationship of different media, communication and communication
अब तक आपने जाना कि विचार / अभिव्यक्ति को किसी माध्यम द्वारा ही सम्प्रेषित किया जा सकता है और सम्प्रेषण की प्रक्रिया में माध्यम की अपनी भूमिका होती है। अब आपके सामने यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि माध्यम कितने प्रकार के हो सकते हैं तथा संचारसाधनों को लेकर, विचार सम्प्रेषण एवं सन्देश स्थापना के बीच, क्या कोई तकनीकी अन्तस्सम्बन्ध हो सकता है? आइए, इस पर विचार करें...
(1) विचार सम्प्रेषण, माध्यम और सन्देश स्थापन
भावोत्पत्ति से लेकर सन्देश स्थापन की प्रक्रिया में अनेक घटक कार्य करते हैं। इन्हें आधार बनाकर, आदि-विचारकों (अरस्तु) से लेकर अब तक के कई विद्वानों (नॉम चॉमस्की) ने अपने-अपने सिद्धान्त और उनके प्रकार्यों को लेकर कई प्रतिरूप (प्रादर्श / मॉडेल / Models) प्रस्तुत किए। परन्तु इन सबमें, अरस्तू (ई.पू. 384- 322) द्वारा प्रतिपादित आधार- प्रतिरूप के तत्त्व, बराबर मौजूद हैं। आइए देखते हैं, अरस्तू के मॉडल के तत्त्व क्या बताते / दर्शाते हैं
अरस्तू मॉडल
हम जानते हैं अरस्तू महान् दार्शनिक और श्रेष्ठ सम्प्रेषक थे। सन्देश सम्प्रेषण के सन्दर्भ में, अरस्तू मॉडल एक आदि मॉडल के रूप में आधारभूत मॉडल जाना जाता है, चूँकि इसमें प्रयुक्त तात्विक मुद्दे अब भी लगभग, सभी मॉडलों में पाए जाते हैं। कथित मॉडल इस प्रकार है-
जाहिर है, सार्थक सम्प्रेषण हेतु इसमें वक्ता -> माध्यम श्रोता एवं सन्देश का तारतम्य / अन्तरसम्बन्ध निहित है। आगे चलकर, इसमें मनोविज्ञान / व्यवहारविज्ञान के के सिद्धान्तों के आधार पर और भी कई तकनीकी मुद्दे जुड़ते चले गए जैसे वक्ता प्रस्तोता -> श्रोता की / का आयु / लिंग / आपसी सम्बन्ध / रिश्ते / शिक्षा / सांस्कृतिक-सामाजिक-पृष्ठभूमि हैसियत आदि प्रस्तुति-माध्यम प्रकार -> श्रव्य / दृश्य / श्रव्य-दृश्य / पारम्परिक भाषा / शारीरिक क्रियाएँ आदि एवं विषय-वस्तु एवं सन्देश / स्थापना : असीम विषय (सांस्कृतिक धार्मिक / सामाजिक / आर्थिक / राजनैतिक / शैक्षणिक : (कला-विज्ञान-वाणिज्य आदि) -> अन्त में, श्रोता का फीड बैक । / इसी / फीडबैक के आधार पर वक्ता प्रस्तोता -> पुनः अपनी अगली प्रस्तुति के लिए स्वयं को तैयार करता है । सन्देश सम्प्रेषण के सन्दर्भ में, यह प्रक्रिया संचार को लेकर, वर्तुल रूप में घूमती रहती है।
इसी आधारभूत प्रक्रिया को ध्यान में रख कर, अब हम अगले केन्द्रीय मुद्दे माध्यम, भाषा और अभिव्यक्ति प्रक्रिया को संचार के सन्दर्भों में समझते जाएँ-
माध्यम, भाषा और अभिव्यक्ति प्रक्रिया
पिछले मुद्दों में आपने भाव, विचार और अभिव्यक्ति- पारम्परिक भाषा की अवधारणात्मक जानकारी प्राप्त करते हुए उन्हें, अभिव्यक्त करने के विभिन्न माध्यमों, उनके प्रकार्यों को लेकर, इन सबके अन्तस्सम्बन्धों के सन्दर्भ में जाना । अब हम विभिन्न माध्यमों में प्रयुक्त भाषा (प्रचलित पारम्परिक अर्थों में (*)) को, हिन्दी उदाहरणों के साथ समझने का प्रयास करेंगे। आइए, इसी कड़ी में पहले हम यह समझने का प्रयास करें कि किसी माध्यम की भाषा और किसी माध्यम में प्रयुक्त भाषा से क्या तात्पर्य हो सकता है ?
माध्यम की भाषा और माध्यम में प्रयुक्त भाषा तात्पर्य
(i) पूर्व मुद्दों में आपने, माध्यम और भाषा के सन्दर्भों की चर्चा के दौरान भाषा (*), भाव, विचार, अभिव्यक्ति एवं माध्यम को पारिभाषिक एवं अवधारणामूलक सन्दर्भों में विस्तार से जानते हुए, आपने ध्यान दिया होगा कि विचार अभिव्यक्ति की प्रक्रिया में हम किसी माध्यम और उसके द्वारा अभिव्यक्त करने वाले अपने आशय / विचार के लिए किसी न किसी भाषा (संवाद/ उद्घोषणा / केप्शन के रूप में) (") आदि का सहारा लेते हैं। इससे, अब हम यह जानेंगे कि एक ओर किसी माध्यम के प्रचालन / प्रयोग के सन्दर्भ में, उस माध्यम की अपनी तकनीकी अनुप्रयोगात्मक भाषा (माध्यम-भाषा) होती है, जिसके सहारे वह माध्यम स्वयं को सम्प्रेषित करता है तो दूसरी ओर उस माध्यम में, माध्यम प्रयोक्ता द्वारा स्वयं को (आशय / विचार आदि के लिए) सम्प्रेषित करने हेतु कोई प्रयुक्त भाषा (*) भी होती है जिसे माध्यम में प्रयुक्त भाषा के रूप में जान सकते हैं। इसे उदाहरण के साथ समझते हैं
(ii) पहले माध्यम भाषा लेते हैं। 20वीं सदी के क्रान्तिकारी मीडिया-विचारक मार्शल मेकलुहान (Herbert Marshall McLuhan, Canadian professor, philosopher and intellectual (21.7.1911 31.12.1980) की जगप्रसिद्ध उक्ति है "The medium is the message."; जिससे इस विचार को बल मिला कि माध्यम अपने आप में एक ऐसा उपकरण है जो अपने प्रकार्यात्मक प्रभावों द्वारा प्रयोक्ता के विचार को, अपने तकनीकी प्रभाव से एक स्वतन्त्र / दृश्य / सन्देश में तब्दील कर स्थापित कर देता है। उदाहरणार्थ, अगर हम किसी विचार को मूवी- कैमरा (माध्यम) द्वारा अभिव्यक्त करना चाहते हैं तो कैमरा (माध्यम) की अपनी तकनीकी / प्रभावशाली व्यवस्थाएँ (शॉट्स / ज़ूम / लाईट्स / शेड्स / स्पीड / रेंज आदि) भी, हमारे कल्पित / अपेक्षित विचार को और भी शक्तिशाली / कमज़ोर ढंग से प्रस्तुत कर एक स्वतन्त्र सन्देश की स्थापना कर सकती हैं जो मनोवैज्ञानिक रूप से हमारे लिए लाभप्रद या खतरनाक साबित हो सकता है। चूँकि, इस माध्यम द्वारा रचित दृश्य वास्तविकता से काफ़ी परे की चीज हो सकते हैं, और दर्शक, कैमरा (माध्यम) द्वारा रखे गए अवास्तविक दृश्य को वास्तविक (Real) मान कर मनोवैज्ञानिक रूप से उनसे सम्मोहित (Hypnotize) होकर अपना नाश भी कर सकता है... ऐसे कई उदाहरण हैं : शक्तिमान धारावाहिक के प्रभाव से हुए कई हादसे ... आदि। अतः हमें, माध्यम / की / -भाषा को समझना चाहिए। इसी प्रकार श्रव्य माध्यम रेडियो द्वारा विशेष ध्वनि प्रभावों से निर्मित / प्रस्तुत कार्यक्रम, श्रोताओं के लिए एक स्वतन्त्र सन्देश सम्प्रेषित करते हैं... इसी तरह अन्य कला-माध्यम मसलन, चित्र, नृत्य, नाट्य, वास्तु, संगीत या लेखन आदि अपना-अपना सन्देश सम्प्रेषणीय प्रभाव छोड़ते हैं। ये सब माध्यम भाषा के अर्थों में आएँगे। चलिए, अब हम माध्यम में प्रयुक्त भाषा पर चर्चा करते हैं.....
(iii) माध्यम में प्रयुक्त भाषा: पिछले मुद्दे में आपने जाना कि आज अपने आशय / विचार की अभिव्यक्ति / सम्प्रेषण के लिए हमारे पास कई माध्यम हैं। ये माध्यम स्वतन्त्र रूप से या किसी अन्य माध्यम / माध्यमों के साथ मिलकर कार्य करते हैं। जैसे, किसी राग की केवल धुन का बजाना संगीत के ध्वनि-स्वरों / सुरों की संगीति भाषा की बात करता है परन्तु अगर, राग में भजन की प्रस्तुति की जाए तो वहाँ संगीति-भाषा और पारम्परिक भाषा का मिश्रण हो जाता है। ऐसी अवस्था में, संगीत- माध्यम * में (राग) प्रयुक्त पारम्परिक भाषा, माध्यम में प्रयुक्त भाषा के रूप में जानी जाएगी। उदाहरण के रूप में, हिन्दी के सूर्य कवि सूरदास का भजन "श्री कृष्णचन्द ने मथुरा ते गोकुल को आइबो छोड़ दियो" (=) का गायन पण्डित जसराजजी, राग भैरवी में प्रस्तुत करते / गाते हैं तो उन्हें कथित भजन की ( प्रयुक्त) पारम्परिक भाषा (=) में, राग भैरवी की संगीति-भाषा ( आरोही स्वर : सा रेगमपधनिसा' और अवरोही स्वर: 'सानिधपमगरेसा' तथा पकड़ 'म ग रेग, सारे सा, ध नि सा' ; लय / भाव आदि) का प्रयोग होगा। राग और पारम्परिक भाषाएँ मिल कर शास्त्रीय संगीत-भाषा की रचना करेंगी। उसी प्रकार, सिनेमा जैसे मिश्रित / सामासिक-कला माध्यम में, जहाँ संवादों / उद्घोषणा आदि के रूप में किसी पारम्परिक भाषा का प्रयोग है तो वहीं, नाट्य-नृत्य, संगीत / ध्वनि, वास्तु, चित्र, साहित्य / लेखन, चलचित्र छायांकन, शृंगार आदि कला-भाषाओं का भी समावेश / मिश्रण है। माध्यम में प्रयुक्त भाषा की समग्र अवधारणा को प्रस्तुत संक्षिप्त विवरण के आधार पर परिचयात्मक / सन्दर्भगत रूप में समझा जा सकता है। परन्तु यहाँ हमारा सम्बन्ध किसी माध्यम में प्रयुक्त पारम्परिक भाषा के भाषिक रूप / शैली आदि से है जिसे हम हिन्दी के सन्दर्भों उदाहरणों के साथ अगले मुद्दे में उठाएँगे।
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