माध्यम, संचार भाषा कौशल अर्जन की दिशाएँ - Medium, directions of acquisition of communication language skills
माध्यम, संचार भाषा कौशल अर्जन की दिशाएँ - Medium, directions of acquisition of communication language skills
(i) समाचार-लेखन / वाचन, संचालन ( Anchoring), पर्यटन - गाइड, विपणन (Marketing) -एजंट, विज्ञापन-लेखन (Copy-writing), वृत्तान्त-लेखन / वाक्-प्रस्तुतिकार / खेल-वृत्तकार, (Commentary Writer / Commentator) पटकथा-लेखन (Script-writing) आदि क्षेत्र हैं
जहाँ हिन्दी प्रशिक्षित कर्मियों की बड़ी माँग है। (ii) ज़ाहिर है, इस तरह के हिन्दी ज्ञान / कौशल के अधिगम (Learning) और अध्यापन (Teaching) के लिए, एक विशेष प्रकार की भाषा तकनीक (शब्द / वाक्य विन्यास / उच्चारण- प्रस्तुति आदि) की माँग रहती है, अतः इस क्षेत्र में भी कुशल कर्मियों की कमी है।
आप इस पाठ्य इकाई में दी गई तकनीकी जानकारी को लेकर आगे बढ़ सकते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: आदिकाल से भारतेन्दु युग तक
हिन्दी भाषा के विकास के समस्त इतिहास को मुख्यतः तीन कालखण्डों में विभाजित किया जाता है - आदिकाल (1000 ई. से 1500 ई.), मध्यकाल (1500 ई. से 1850 ई.), आधुनिककाल (1850 ई. से आज तक) । आधुनिक हिन्दी का वास्तविक आरम्भ भारतेन्दु युग में हुआ जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा तात्कालिक सामाजिक परिस्तिथियों के कारण भारतीय जनमानस में भाषिक एवं साहित्यिक चेतना जगाने हेतु 'हिन्दी' को साहित्य की भाषा के रूप में स्थापित किया गया। किन्तु हिन्दी के भाषिक प्रयोगों के उदाहरण सन् 1000 ई. के आसपास से ही मिलने लगते हैं। अतः आधुनिक हिन्दी के विकास को समझने से पूर्व इस खण्ड में हिन्दी के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है, जिसे तीन उपभागों में बाँटा गया है-
आदिकाल
हिन्दी और अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का उद्भव 1000 ई. के आसपास माना जाता है। हिन्दी का आदिकालीन रूप अमीर खुसरो, कबीर, गोरखनाथ, रैदास, नामदेव, एवं रामानन्द आदि की रचनाओं में प्राप्त होता है । इस समय की भाषा में तद्भव और देशज शब्दों का अधिक प्रयोग हो रहा था एवं अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्द अपना स्थान बना रहे थे। खड़ीबोली (या हिन्दवी) का एक नमूना अमीर खुसरो की निम्नलिखित शायरी में देखा जा सकता है-
ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीड को दोउ भए इक रंग ॥
मध्यकाल
मध्यकाल में हिन्दी के भाषा रूपों का सर्वांगीण विकास हुआ और अनेक उन्नत ग्रन्थों की रचना हुई। इस काल में खड़ीबोली हिन्दी का प्रत्यक्ष विकास बहुत कम हुआ किन्तु हिन्दी के बोलीगत रूपों में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना हुई। इन रूपों में ब्रजभाषा, अवधी, दक्खिनी तथा उर्दू प्रमुख हैं। भाषिक दृष्टि से अरबी, फ़ारसी, तुर्की और पश्तो के अनेक शब्द खड़ीबोली में आ चुके थे। इस काल के अन्त तक अंग्रेजी, फ्रेंच, डच तथा पुर्तगाली भाषाओं के शब्द भी हिन्दी में प्रवेश करने लगे थे। इस काल के प्रमुख रचनाकार नानक, दादू गंग, मलूकदास, रहीम, आलम आदि हैं जिनकी रचनाओं में हिन्दी का पर्याप्त पुट प्राप्त होता है।
भारतेन्दु पूर्व तात्कालिक प्रयास
18वीं शताब्दी के अन्त से ही हिन्दी प्रयोगों और हिन्दी में रचनाओं के प्रयास दिखाई पड़ने लगते हैं जिनमें आधुनिक हिन्दी की नींव प्राप्त होती है। भारतेन्दु पूर्व तात्कालिक प्रयासों को निम्नलिखित उपशीर्षकों में विभाजित कर समझा जा सकता है:
(क) फोर्ट विलियम कॉलेज: सन् 1800 ई. में गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता की स्थापना की। इधर 1790 ई. तक जॉन बोर्थविक गिलक्राइस्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासकों को हिन्दी सिखाने के लिए 'अंग्रेजी और हिन्दुस्तानी' कोश के दो भाग प्रकाशित किए। उन्होंने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और उस समय की 'हिन्दी' को 'हिन्दुस्तानी' नाम देते हुए 'हिन्दुस्तानी ग्रामर' (1796-98) और 'ओरियेंटल लिग्विस्ट' (1798 ई.) ग्रन्थों की रचना की। (ख) हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ 19वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ हुआ। 'उदन्त मार्तण्ड' (1826 ई.), 'बंगदूत' (1828 ई.), 'बनारस अखबार' ( 1844 ई.), 'बुद्धि प्रकाश' (1852 ई.) आदि जैसे पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से खड़ीबोली का तीव्र विकास एवं प्रसार हुआ। इनकी भाषा बोलचाल की भाषा थी जो मिश्रित एवं ठेठ है।
(ग) राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द' एवं राजा लक्ष्मणसिंह : 1850 ई. के लगभग हिन्दी के इतिहास में दो रचनाकारों राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिन्द' एवं राजा लक्ष्मणसिंह का आगमन हुआ। राजा शिवप्रसाद ने हिन्दी के साथ-साथ उर्दू के प्रयोग पर बल दिया। इधर दूसरी तरफ राजा लक्ष्मणसिंह एवं कुछ अन्य लेखकों ने राजा शिवप्रसाद की भाषा नीति का विरोध किया। इन लोगों ने हिन्दी की संस्कृतनिष्ठता पर बल दिया, अर्थात् हिन्दी में संस्कृत शब्दों के अधिक-से-अधिक प्रयोग का पक्ष लिया।
(घ) ईसाई मिशनरी : इधर धर्मप्रचार के लिए ही सही किन्तु ईसाई मिशनरियों ने भी खड़ीबोली में अनेक धर्म सम्बन्धी पुस्तकों को प्रकाशित कराया। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा अनेक स्कूल और कॉलेज खोले गए जिनके लिए साहित्य, व्याकरण, इतिहास, भूगोल, चिकित्सा एवं विज्ञान आदि से सम्बन्धित पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित की गई।
वार्तालाप में शामिल हों