भारतीय साहित्य में देशी भाषाओं की प्रतिष्ठा की समस्या

भारतीय साहित्य में देशी भाषाओं की प्रतिष्ठा की समस्या

भारतीय भाषाओं में साहित्य रचने की प्रक्रिया एक साथ आरम्भ नहीं होती। इसका कारण क्या है? जिन भाषाओं में विलम्ब से साहित्य रचा गया, क्या यह माना जाए कि उनका जन्म विलम्ब से हुआ था ? जहाँ तक द्रविड़ भाषाओं का सम्बन्ध है, उनमें इस समस्या का एक रूप है, आर्य भाषाओं के सम्बन्ध में इसी समस्या का रूप दूसरा है । द्रविड़ भाषाओं में सबसे पहले तमिल में कम से कम चौथी सदी ईसा पूर्व से साहित्य रचना होने लगती है। मलयालम में यह क्रम लगभग दो हजार साल बाद आरम्भ होता है। कुछ लोग मानते हैं कि पहले मलयालम का स्वतन्त्र अस्तित्व ही न था। 14वीं सदी में मलयालम में साहित्य रचा जाने लगा। उससे कुछ पहले इस भाषा का जन्म मान लीजिए। कन्नड़ में साहित्य रचना नवीं सदी से होने लगती है। कन्नड़ तमिल की बोली है, कोई नहीं कहता, पर इस विलम्बित साहित्य रचना का कारण क्या है ? क्या कन्नड़ का जन्म भी विलम्ब से हुआ ?


तमिल साहित्य के आरम्भिक काल में तमिलनाडु भारत से कटी हुई अलग इकाई था शेष भारत से उसका सम्पर्क भी था ? उत्तर भारत में जो साहित्य संस्कृत में रचा जा रहा था, क्या उससे तमिल साहित्यकार परिचित थे ? जिस समय तमिल भाषा साहित्य में प्रतिष्ठित हो चुकी थी, उस समय अन्य द्रविड़ भाषाओं का अस्तित्व था या नहीं ? इसी के साथ इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए। तमिल के समानान्तर उत्तर भारत में लोक भाषाओं का अस्तित्व था या नहीं ? इस प्रश्न के साथ ही और बहुत सी समस्याएँ सामने आ जाती हैं। संस्कृत बोलचाल की भाषा थी या नहीं ? यदि बोलचाल की भाषा नहीं थी तो कब से नहीं थी ? क्या प्राकृते वास्तविक लोकभाषाएँ थीं ? क्या अपभ्रंश भाषा प्राकृतों का सहज विकास है? जिन भाषाओं को देशी कहा गया है, वे प्राकृत अपभ्रंश से भिन्न हैं या उन्हीं का दूसरा नाम देशी भाषा है ? क्या आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म अपभ्रंश से अपभ्रंश में किन देशी भाषाओं के तत्त्व मिलते हैं? जिस समय अपभ्रंश काल समाप्त होता है, उस समय भारत पर तुर्क आक्रमण होते हैं, भारत में तुर्क राज्य स्थापित होता है। अपभ्रंश से भिन्न देशी भाषाओं में साहित्य रचा जाने हुआ है? लगता है। क्या तुर्कों को युग परिवर्तक माना जाए, साहित्य में देशी भाषाओं की प्रतिष्ठा का श्रेय उन्हें दिया जाए ? संस्कृत-प्राकृत देशी भाषा, इस विकास प्रक्रिया से भिन्न क्या आधुनिक भाषाएँ एक दूसरे के विकास में सहायक हुई हैं? क्या इन भाषाओं को बोलने वाली जातियाँ किसी के साहित्यिक विकास में बाधक भी हुई हैं ?


क्या पुरानी हिन्दी, पुरानी गुजराती, पुरानी बांग्ला जैसी कोई भाषाएँ थीं ? इनका अपभ्रंश से क्या सम्बन्ध था ? जहाँ किसी साहित्य सामग्री को एक से अधिक जातियाँ अपनी सम्पत्ति कहती हैं, वहाँ निर्णय कैसे हो ? जिस समय आधुनिक भाषाओं में साहित्य रचा जाने लगता है, उसे भारतीय साहित्य का आधुनिककाल माना जाए या मध्यकाल ? साहित्य के विभाजन में कालविभाजन का आधार क्या हो ? जो भी भारतीय साहित्य का इतिहास लिखेगा, उसे इन प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होगा।