भारतीय वाक्य की रागात्मक एकता - Melodic Unity of Indian Sentence

भारतीय वाक्य की रागात्मक एकता - Melodic Unity of Indian Sentence

विदेशी धर्म प्रचारकों और शासकों के प्रयत्नों के फलस्वरूप पाश्चात्य सभ्यता तथा संस्कृति के साथ सम्पर्क एवं संघर्ष और उससे पुनर्जागरण युग का उदय, राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रेरणा से साहित्य में राष्ट्रीय- सांस्कृतिक उत्कर्ष, साहित्य में नीतिवाद और सुधारवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया और नयी रोमानी सौन्दर्य दृष्टि का उन्मेष, चौथे दशक में साम्यवादी विचारधारा के प्रचार से द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का प्रभाव, इलियट आदि के प्रभाव से नये जीवन की बौद्धिक कुण्ठाओं और स्वप्नों को शब्दरूप देने के नए प्रयोग, स्वतन्त्रता के बाद विश्व- कल्याण की भावना से प्रेरित राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का विस्तार और अन्त में युवा समाज की नवीनीभूत समाज की आशा-आकांक्षाओं की विफलताजन्य अवसाद और मोहभंग की भावना यही संक्षेप में आधुनिक 'भारतीय वाक्य के विकास की रूपरेखा है जो सभी भाषाओं में समान रूप से लक्षित होती है।


भारतीय वाक्य में, इन चिर-प्रवाहित धाराओं के अतिरिक्त कुछ स्फुट प्रवृत्तियाँ भी ऐसी हैं जिनमें एक प्रकार का सुखद साम्य मिलता है। उदाहरण के लिए महाभारत और रामायण पर आश्रित काव्यों की अजस्र परम्पराएँ प्रायः सम्पूर्ण देश में मिलती हैं। तमिल में कम्ब रामायण, तेलुगु में रंगनाथ रामायण तथा भास्कर रामायण आदि, कन्नड़ में पम्प रामायण, मलयालम में एजुतच्चन की अध्यात्म रामायण, मराठी में मोरोपंत की रामकथा, बांग्ला में कृत्तिवास रामायण, असमिया में माधव कंदलि की रामायण, उड़िया में सारलादास की विलं का-रामायण, तथा बलरामदास की रामायण और हिन्दी में तुलसी रामायण (रामचरितमानस) एक व्यापक परम्परा के ही अंग हैं। इसी प्रकार महाभारत-काव्य की शृंखला भी समस्त भारत में फैली हुई है तेलुगु में तीन प्राचीन महाकवियों नन्नय, तिक्कन् और एन् ने क्रमशः महाभारत की रचना की, कन्नड़ में पम्प और कुमार व्यास के महाभारत अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। मलयालम में एजुत्तच्चन का महाभारत उनकी रामायण से भी अधिक मौलिक और पूर्ण है । मराठी में श्रीधर ने 'पाण्डव- प्रताप' लिखा है किन्तु उसका महत्त्व अधिक नहीं है, सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में बांग्ला में महाभारत के तीस से अधिक रूपान्तर हुए जिनमें काशीरामदास कृत महाभारत सर्वश्रेष्ठ है। असमिया में रामसरस्वती ने महाभारत के आधार पर अनेक वध काव्यों की रचना की, उड़िया में महाभारत के रचयिता हैं. सारलादास जो उत्कल व्यास के नाम से प्रसिद्ध हैं। पंजाबी ने कृष्णलाल ने महाभारत का पद्यानुवाद प्रस्तुत किया और हिन्दी में मध्ययुग में अनेक महाभारत लिखे गए जिनमें गोकुलनाथ आदि और सबलसिंह चौहान के महाभारत और आधुनिक युग में मैथिलीशरण गुप्त का 'जय भारत' सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसी प्रकार भागवत के रूपान्तर भी प्रायः सभी भाषाओं में होते रहे हैं। ये रूपान्तर भारतीय भाषाकाव्यों के लिए दृढ सम्बन्ध सूत्र रहे हैं। इनके अतिरिक्त संस्कृत काव्यशास्त्र का सार्वभौम प्रभाव भी भारतीय वाक्य की एकता का स्थायी आधार है। भरत का 'नाट्यशास्त्र', आनन्दवर्धन का 'ध्वन्यालोक', दण्डी का 'काव्यादर्श', मम्मट का 'काव्यप्रकाश', विश्वनाथ का 'साहित्यदर्पण' और पण्डितराज जगन्नाथ का 'रसगंगाधर' आदि भारत की सभी भाषाओं के काव्य पण्डितों में लोकप्रिय रहे हैं और इनके समय-समय पर अनुवाद या आख्यान होते रहे हैं। इसी कारण से भारतीय भाषाओं के काव्यशास्त्रों में एक ही स्रोत से उद्भूत होने के कारण एक तरह की मौलिक समानता विद्यमान है।