भारतीय साहित्य का अध्ययन अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में करने की समस्या - The problem of studying Indian literature in an all-India perspective

भारतीय साहित्य का अध्ययन अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में करने की समस्या

किसी एक भाषा के साहित्य का अध्ययन अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में हो, इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि यह अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य स्थापित किया जाए। पर उसकी स्थापना तभी हो सकती है जब विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त कर लिया जाए। भारत की सभी भाषाओं के साहित्य का इतिहास अभी अनेक समस्याओं में उलझा हुआ है। किसी को समस्यों का ज्ञान न हो और वह प्राप्त इतिहासों से संतुष्ट हो, वह बात अलग है। प्रत्येक भाषा के साहित्य में निरन्तर अनुसन्धान हो रहा है, नई सामग्री सामने आ रही है, इतिहास की टूटी हुई कड़ियाँ जोड़ी जा रही हैं। यह प्रक्रिया अभी काफी दिन चलेगी। इसलिए भारतीय साहित्य का इतिहास लिखना दुष्कर है।


किन्तु इस कारण इतिहास लिखने का काम छोड़ न देना चाहिए। यदि अधूरे ज्ञान के बल पर दूसरों की - भाषाओं के साहित्य का ही अधूरा ज्ञान नहीं, अपनी भाषा के भी अधूरे ज्ञान के बल पर कोई भारतीय साहित्य - के इतिहास की मुख्य समस्याओं का विवेचन करे, तो इस कार्य की सीमित उपयोगिता स्वीकार करनी चाहिए । यदि समस्याओं का विवेचन संतोषजनक न हो, विवेचन के लिए पर्याप्त सामग्री का उपयोग न किया गया हो, यदि सभी समस्यों पर ध्यान केन्द्रित न किया गया हो, पर कुछ समस्याएँ ऐसी प्रस्तुत की गई हों जो इतिहास-लेखन के लिए आधारभूत हों, तो भी यह कार्य अंशतः उपादेय होगा ।