भारतीय साहित्य के अध्ययन की समस्याएँ - Problems of studying Indian literature

भारतीय साहित्य के अध्ययन की समस्याएँ


भारतीय साहित्य के अध्ययन की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-


भारतीय साहित्य के स्वरूप के निर्धारण की समस्या


सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि भारतीय साहित्य का स्वरूप और उसका इतिहास कैसा है ? 'भारतीय साहित्य का इतिहास', इतना कहते ही अनेक समस्याएँ सामने प्रस्तुत हो जाती हैं।


क्यों न ऐसा माना जाए कि भारतीय साहित्य नाम की कोई वस्तु नहीं है। किसी समय भारत का बहुत-सा साहित्य संस्कृत में रचा गया था। चाहें तो उसे भारतीय साहित्य की संज्ञा दे सकते हैं। उसके रचने वाले अनेक प्रदेशों के लोग थे। और ये सब प्रदेश अधिकांशतः उत्तर भारत में हैं। यह संस्कृत साहित्य थोड़े से पढ़े-लिखे लोगों की भाषा में रचा गया था। सामान्य जनता न संस्कृत बोलती थी, न संस्कृत पढ़ती थी। ऐसे संकुचित आधार वाले साहित्य को भारतीय साहित्य अर्थात् राष्ट्रीय साहित्य की संज्ञा कैसे दी जा सकती है!


कहा जा सकता है कि संस्कृत के विपरीत पालि लोकभाषा थी। उसमें लिखा हुआ साहित्य राष्ट्रीय साहित्य कहलाएगा । किन्तु इस भाषा में जो कुछ लिखा गया है, वह अधिकतर बौद्ध धर्म से सम्बद्ध है, यह एक अलग समस्या है। प्रश्न उठता है कि एक धर्म विशेष से सम्बद्ध साहित्य को राष्ट्रीय साहित्य कैसे कह सकते हैं! प्राकृतों में बहुत-सा साहित्य रचा गया है पर इसके रचने वाले भी अधिकतर जैन विद्वान् हैं। इसके सिवा प्राकृतें वास्तव में लोक भाषाएँ थीं, यह धारणा संदिग्ध है। इन प्राकृतों में सैकड़ों शब्द णकार से आरम्भ होते हैं जबकि भारत की नदियों, पर्वतों, नगरों, ग्रामों, जनपदों, देवियों, देवताओं, मुनियों, मनुष्यों में किसी का नाम भी णकार से आरम्भ नहीं होता। अतः इस मान्यता पर भी प्रश्न-चिह्न लगता है।


इस तरह क्या यह समझा जाए कि भारत का प्राचीन साहित्य भारतीय कहलाने का अधिकारी नहीं ठहरता। ऐसा समझना भूल होगी। अपभ्रंशों की बात ही करना बेकार है क्योंकि उनका क्षेत्र बहुत ही सीमित हैं। ये लोकभाषाएँ थीं, यह धारणा भी प्रमाण सिद्ध नहीं है। विद्यापति लोकभाषा मैथिल में लिख रहे थे, इसके साथ उनकी कीर्तिलता अपभ्रंश में है। इनमें कौन सी लोकभाषा है, कौन सी कृत्रिम साहित्यिक भाषा है, यह निर्णय करना कठिन नहीं है।


जो साहित्य आधुनिक भारतीय भाषाओं में लिखा गया है, उसे भारतीय कहना और भी कठिन है। जिस युग में इस देश के विभिन्न भागों के पण्डितजन संस्कृत का व्यवहार करते थे, उस युग में भारत राष्ट्र की कल्पना की भी जा सकती है किन्तु जब आधुनिक भाषाओं का उदय हुआ और वे साहित्य का माध्यम बनीं तब जो राष्ट्रीय एकता भी थी, वह छिन्न-भिन्न हो गई। अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले यहाँ राष्ट्रीय एकता की भावना का अभाव था। अंग्रेजी राज्य कायम होने के बाद ही यहाँ राष्ट्रीय एकता का जन्म हुआ और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए वह एकता किसी सीमा तक दृढ़ की गई। इस एकता की वाहक अंग्रेजी भाषा थी। भारतीय भाषाओं में राष्ट्रवादी भावनाएँ भले ही व्यक्त हुई हों, वे राष्ट्रभाषा नहीं थीं, प्रादेशिक भाषाएँ थीं। इनमें हिन्दी को कुछ लोग राष्ट्रभाषा कहते है पर वह किसी प्रदेश की भाषा है, इसमें भी सन्देह है। फिर स्वाधीनता प्राप्ति से पहले और स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से अब तक हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयत्न ही किया जाता रहा है, अभी तक वह राष्ट्रभाषा बनी तो नहीं है। बहुत से ढूंदेश लोग अंग्रेजी को बनाए रखने के पक्ष में इसलिए हैं कि इस भाषा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता का जन्म हुआ और वह एक सीमा तक संवर्धित हुई। उसके न रहने से राष्ट्रीय एकता खण्डित हो जाएगी और भारतीय साहित्य क्या, भारत देश की बात करना भी कठिन हो जाएगा।


इस स्थिति का एक पक्ष यह भी है कि अंग्रेजी राज से मुक्ति पाने के लिए जो एकता कायम की गई वह नकारात्मक थी। अंग्रेजों का विरोध करना था, इसलिए विभिन्न प्रदेशों के लोग एकता की बातें करने लगे। जब वह विरोध समाप्त हो गया, तब एकता की बातें भी समाप्त हो गई। राष्ट्रीय एकता को प्रेरित करने वाली कोई ऐसी सकारात्मक भावना यहाँ नहीं थी जिसका अंग्रेजों के आने-जाने से कोई सम्बन्ध न होता ।


निष्कर्ष यह निकला कि भारतीय साहित्य का इतिहास लिखना ही हो तो अंग्रेजी में भारतवासियों ने जो कुछ लिखा है, उसका इतिहास लिखा जा सकता है। इससे पहले का और भी साहित्य जोड़ना हो तो अधिक से अधिक संस्कृत साहित्य उसमें जोड़ा जा सकता है। इस तरह भारतीय साहित्य के इतिहास का अर्थ होगा अंग्रेजी और संस्कृत में भारतवासियों द्वारा लिखे गए साहित्य का इतिहास इसमें वह संस्कृत साहित्य भी सम्मिलित किया जा सकता है जो 20वीं सदी में, विशेषतः उसके उत्तरार्द्ध में रचा जाता रहा है। इसके अतिरिक्त और किसी साहित्य को भारतीय साहित्य नहीं कहा जा सकता।


राष्ट्र की पहचान क्या है ? शायद यह अंग्रेजी के नेशन शब्द का हिन्दी पर्याय है। ब्रिटेन एक राष्ट्र है। वहाँ के रहने वाले एक नेशन हैं, उनकी नेशनल लैंग्वेज या राष्ट्रभाषा अंग्रेजी है। भारत में बहुत-सी भाषाएँ बोली जाती हैं। यही नहीं, इतिहासकार चाहे मार्क्सवादी हो, चाहे गैर-मार्क्सवादी, भारतीय साहित्य का इतिहास लिखेगा तो उसे विभिन्न भाषाओं के साहित्य में आपसी सम्बन्धों पर ध्यान देना होगा। यदि उसे किसी एक भाषा का साहित्य लिखना हो तो भी अन्य भाषाओं के साहित्य से उसके सम्बन्धों पर ध्यान देना होगा। वास्तविकता यह है कि भारत की किसी भी भाषा के साहित्य का इतिहास सही ढंग से अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में ही लिखा जा सकता है ।


इस सम्बन्ध में रामविलास शर्मा के इस मत को निर्णायक माना जा सकता है कि "इस भारत में किसी भी काल, किसी भी भाषा में जो भी साहित्य रचा गया है, उसका विवेचन भारतीय साहित्य के अन्तर्गत होना चाहिए। किसी भी भाषा के साहित्य का विवेचन अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में ही करना उचित है। यह इसलिए नहीं कि हमें भारतीयता पर कोई एहसान करना है वरन् इसलिए कि इस परिप्रेक्ष्य के बिना हम किसी एक भाषा के साहित्य का विवेचन कर ही नहीं सकते। जैसे आर्य या द्रविड़ भाषाओं का विकास दोनों परिवारों को अलग रखने से समझ में नहीं आ सकता अर्थात् वैज्ञानिक दृष्टि से उसका इतिहास नहीं लिखा जा सकता। जो आर्य परिवार की भाषाएँ हैं, उनमें रचा हुआ साहित्य तो सम्बद्ध इकाई है ही, जो द्रविड़ भाषाएँ हैं उनमें रचा हुआ साहित्य भी आर्यभाषाओं में निर्मित साहित्य से सुदृढ रूप से सम्बद्ध है। "